प्रयागराज: संगम नगरी में एक ऐसा वृक्ष है, जिसकी हिन्दू लोग पूजा करते हैं तो मुस्लिम भी उसकी इबादत करते हैं. जी हां झूंसी में स्थित इस कल्पवृक्ष के बारे में मान्यता है कि इसके नीचे बैठकर जो भी मन्नत मांगी जाती है वो पूरी हो जाती है. भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण के वैज्ञानिकों ने जांच में पाया कि इस कल्पवृक्ष की उम्र करीब 850 साल बतायी है. स्थानीय लोग इस वृक्ष को बाबा शेखतकी की दातून कहते हैं. जबकि हिन्दू मान्यता के अनुसार कल्प वृक्ष समुद्र मंथन से निकले हुए 14 रत्नों में से एक है. कुछ लोग इस वृक्ष को पारिजात का वृक्ष भी कहते हैं. जबकि इसका वैज्ञानिक नाम एडेन सेनिया डिजिटेटा है.
850 साल है कल्पवृक्ष की उम्र
झूंसी प्रतिष्ठानपुर इलाके में गंगा के किनारे कल्पवृक्ष है. इस वृक्ष की उम्र स्थानीय लोग सैकड़ों साल बताते थे, जिसके बाद भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण के वैज्ञानिक ने रोमानिया के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर इस कल्पवृक्ष की उम्र का पता लगाने के लिए रिसर्च शुरू किया. इस दौरान वैज्ञानिकों की टीम ने इसकी नाप जोख की तो इस पेड़ की ऊंचाई 14 मीटर तो पेड़ के मुख्य तने की गोलाई 18.27 मीटर निकली. जांच में इस वृक्ष की उम्र साढ़े आठ सौ साल के करीब पता चली है. भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण की क्षेत्रीय अधिकारी डॉ आरती गर्ग ने बताया कि कल्पवृक्ष की उम्र 850 साल है. इसी के साथ बाराबंकी में भी एक कल्प वृक्ष ऐसा है, जिसकी उम्र भी 850 साल ही है. इसके अलावा अफ्रीका में एक कल्प वृक्ष है जिसकी उम्र 2 हजार साल के करीब है, जो दुनिया का सबसे पुराना कल्प वृक्ष बताया जाता है. उन्होंने यह भी बताया कि कल्प वृक्ष का वैज्ञानिक नाम एडेनसेनिया डिजिटेटा है, जिसे स्थानीय लोग पारिजात, बाओबाग या विलायती इमली के नाम से भी बुलाते हैं.
कल्प वृक्ष का पौराणिक महत्व
स्थानीय लोगों के मुताबिक कल्पवृक्ष समुद्र मंथन से निकले 14 रत्नों में से एक है, जो समुद्र मंथन के दौरान निकला तो देवता उसे अपने साथ स्वर्ग ले गए थे. मान्यता भी है कि समुद्र मंथन में निकले इस कल्प वृक्ष के नीचे बैठकर जो मनोकामनाएं मांगी जाती हैं वो पूरी होती हैं. श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी के सचिव महंत यमुनापुरी ने बताया कि कल्प वृक्ष देव वृक्ष है, जो स्वर्ग और शिवलोक के साथ ही इंद्रलोक में भी है. उसी वृक्ष का अंश पृथ्वी पर है, जो इन कल्प वृक्ष के रूप में हमें देखने को मिल रहा है. उनका कहना है कि कल्प वृक्ष हर तरह की मनोकामनाओं को पूरा करने वाला है. इसके साथ ही उन्होंने मांग की है कि झूंसी में जो कल्प वृक्ष है. उसको संरक्षण की जरूरत है. उसकी देखरेख बेहतर करने के साथ ही सुरक्षा का और बेहतर इंतजाम सरकार को करना चाहिए.
कल्प वृक्ष को स्थानीय लोग बाबा शेखतकी की दातून कहते हैं
झूंसी इलाके में स्थित इस कल्प वृक्ष को स्थानीय लोग बाबा शेखतकी की दातून कहते हैं. इसके साथ ही बहुत से लोग इसे पारिजात का पेड़ भी कहते हैं. उनका कहना है कि कई सौ साल पहले शेखतकी बाबा झूंसी के प्रतिष्ठानपुर इलाके में आये थे, जहां पर रहने के दौरान उन्होंने दातून करके उसे जमीन में गाड़ दिया था, जो अब इस विशाल वृक्ष के रूप में देखने को मिल रहा है. स्थानीय लोगों का मानना है कि उसी बाबा की कृपा से इस पेड़ के नीचे बैठकर मांगने वाली हर मुराद पूरी होती है. मुराद पूरी करने वाले इस पेड़ के नजदीक रहने वाले लोग बताते हैं कि यहां पर दूर दूर से आकर लोग मन्नत मांगते हैं जो पूरी भी होती है. जिस वजह से दूसरे प्रदेश से भी कई बार लोग मन्नत मांगने यहां तक आते हैं.
औषधीय गुणों से युक्त है कल्प वृक्ष
वहीं, कल्प वृक्ष सिर्फ लोगों की मनोकामना ही पूरी नहीं करता है. बल्कि इस वृक्ष के तने की छाल के साथ ही फल और फूल कई तरह की बीमारियों को भी ठीक करने में भी इस्तेमाल किया जाता है. स्थानीय लोग कई बार बुखार और पेट से जुड़ी बीमारियों के इलाज के लिए इस औषधीय वृक्ष का इस्तेमाल करते हैं. स्थानीय लोग अब इस वृक्ष के तने और जड़ों को नुकसान पहुंचाने से पहले ही दूसरे लोगों को रोकते टोकते हैं.
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