प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र और उम्र के संबंध में अन्य साक्ष्य के बीच विरोधाभास होने पर किशोर की चिकित्सा/रेडियोलॉजिकल उम्र और उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर उसे वयस्क घोषित करने के लिए निचली अदालतों को दोष नहीं दिया जा सकता है.
यह आदेश न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा ने हत्या के मामले में आरोपी की आयु निर्धारण की अर्जी पर किशोर न्याय बोर्ड का आदेश रद्द करने की मांग पर दिया था. इस मामले में प्राथमिक विद्यालय से जारी स्कूल छोड़ने के प्रमाण पत्र में जन्मतिथि 10 अगस्त 2006 थी. हालांकि, इस प्रमाण पत्र की प्रामाणिकता स्वीकार्यता को चुनौती दी गई, क्योंकि परिवार रजिस्टर में वर्ष 1999 के अनुसार किशोर के जन्म की तारीख और साथ ही जन्म के उसी वर्ष को दर्शाने वाला ड्राइविंग लाइसेंस दिखाया गया है.
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हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि स्कूल छोड़ने का प्रमाण पत्र संदिग्ध है और संबंधित संस्था में प्रवेश के समय उसकी उम्र दर्ज करने के लिए कोई अंतर्निहित दस्तावेज नहीं था. इस तथ्य के अन्य दस्तावेजों परिवार रजिस्टर और ड्राइविंग लाइसेंस में किशोर की अलग-अलग उम्र है. किशोर न्याय बोर्ड व नीचे अपीलीय न्यायालय ने जांच शुरू की और रेडियोलॉजिकल उम्र के लिए आदेश दिया. ऐसे में मामले के तथ्यों और परिस्थितियों में उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर किशोर की चिकित्सा/रेडियोलॉजिकल उम्र के आधार पर और उसे वयस्क घोषित करने के लिए नीचे की अदालतों को दोष नहीं दिया जा सकता है.