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रेलवे फ्रेट कॉरीडोर के लिए भूमि अधिग्रहण में गलत सूचना देने वाले अधिकारियों पर गिरी गाज - इलाहाबाद हाईकोर्ट न्जूज

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने रेलवे फ्रेट कॉरीडोर के लिए भूमि अधिग्रहण में गलत सूचना देने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई का निर्देश दिया है. वहीं कोर्ट ने केन्द्र सरकार को किसानों को बाजार मूल्य से मुआवजे के भुगतान का भी आदेश दिया है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट
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Published : Sep 5, 2021, 3:25 AM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने गौतम बुद्ध नगर के ग्रेटर नोएडा में रेलवे के डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर निर्माण के लिए भूमि-अधिग्रहण के खिलाफ याचिका खारिज कर दी है. वहीं केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह याची गण को वर्तमान बाजार मूल्य के अनुसार मुआवजे का भुगतान करें तथा राज्य सरकार से कहा है कि वह उन दोषी अधिकारियों के खिलाफ जांच कर कार्रवाई करें, जिन्होंने केंद्र सरकार को इस बात की गलत सूचना प्रेषित की, कि याची गण की ओर से मुआवजे के निर्धारण को लेकर के कोई आपत्ति नहीं की गई है.

यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज मिश्र तथा न्यायमूर्ति दिनेश पाठक की खंडपीठ ने जयवीर सिंह व अन्य किसानों की याचिका पर दिया है. 11 फरवरी 2019 को रेलवे एक्ट की धारा 20ए और धारा 20ई के तहत प्रकाशित अधिसूचना को चुनौती दी गई थी. याचीगण का कहना था की रेलवे ने डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के लिए भूमि अधिग्रहण हेतु अधिसूचना प्रकाशित की थी. भूमि का अर्जन होने के बाद ग्रेटर नोएडा एथॉरिटी की मांग पर और भूमि के अधिग्रहण की अधिसूचना प्रकाशित की गई. याची गण ने मुआवजे के निर्धारण को लेकर अपनी आपत्ति दाखिल की. उन्हें सुने बिना यह रिपोर्ट भेज दी गई कि किसी ने कोई आपत्ति नहीं की है.

जबकि रेलवे का कहना था कि परियोजना राष्ट्रीय महत्व की है. इसके लिए 824 करोड़ रुपये जारी किए गए थे, जिसमें से 614 करोड़ रुपये का काम हो चुका है तथा मात्र 1.36 किलोमीटर का काम ही शेष है. कुल 54.38 किलोमीटर का कॉरिडोर बनाया जाना है. कोर्ट ने कहा कि याची गण ने समय सीमा के भीतर आपत्ति दाखिल की थी, फिर भी सुनवाई किए बिना गलत रिपोर्ट दी गई कि किसी ने कोई आपत्ति ही नहीं की है. प्रोजेक्ट लगभग पूरा हो चुका है. अधिसूचना को रद्द करने से जनता के पैसे का नुकसान होगा. इस स्थिति में कोर्ट ने अधिसूचना रद्द करने से इंकार कर दिया और केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि याची गण को वर्तमान बाजार मूल्य से मुआवजा दिया जाए और उन अधिकारियों की जांच की जाए, जिन्होंने इस बात की गलत रिपोर्ट दी कि समय सीमा के भीतर याची गण ने अपनी आपत्ति दाखिल नहीं की थी. कोर्ट ने इस आदेश की प्रति उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को जांच के लिए भेजने का निर्देश दिया है.

इसे भी पढ़ें-अवैध धर्मांतरण मामला: अभियुक्तों के खिलाफ देशद्रोह की साजिश रचने समेत कई धाराओं की वृद्धि

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने गौतम बुद्ध नगर के ग्रेटर नोएडा में रेलवे के डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर निर्माण के लिए भूमि-अधिग्रहण के खिलाफ याचिका खारिज कर दी है. वहीं केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह याची गण को वर्तमान बाजार मूल्य के अनुसार मुआवजे का भुगतान करें तथा राज्य सरकार से कहा है कि वह उन दोषी अधिकारियों के खिलाफ जांच कर कार्रवाई करें, जिन्होंने केंद्र सरकार को इस बात की गलत सूचना प्रेषित की, कि याची गण की ओर से मुआवजे के निर्धारण को लेकर के कोई आपत्ति नहीं की गई है.

यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज मिश्र तथा न्यायमूर्ति दिनेश पाठक की खंडपीठ ने जयवीर सिंह व अन्य किसानों की याचिका पर दिया है. 11 फरवरी 2019 को रेलवे एक्ट की धारा 20ए और धारा 20ई के तहत प्रकाशित अधिसूचना को चुनौती दी गई थी. याचीगण का कहना था की रेलवे ने डेडीकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के लिए भूमि अधिग्रहण हेतु अधिसूचना प्रकाशित की थी. भूमि का अर्जन होने के बाद ग्रेटर नोएडा एथॉरिटी की मांग पर और भूमि के अधिग्रहण की अधिसूचना प्रकाशित की गई. याची गण ने मुआवजे के निर्धारण को लेकर अपनी आपत्ति दाखिल की. उन्हें सुने बिना यह रिपोर्ट भेज दी गई कि किसी ने कोई आपत्ति नहीं की है.

जबकि रेलवे का कहना था कि परियोजना राष्ट्रीय महत्व की है. इसके लिए 824 करोड़ रुपये जारी किए गए थे, जिसमें से 614 करोड़ रुपये का काम हो चुका है तथा मात्र 1.36 किलोमीटर का काम ही शेष है. कुल 54.38 किलोमीटर का कॉरिडोर बनाया जाना है. कोर्ट ने कहा कि याची गण ने समय सीमा के भीतर आपत्ति दाखिल की थी, फिर भी सुनवाई किए बिना गलत रिपोर्ट दी गई कि किसी ने कोई आपत्ति ही नहीं की है. प्रोजेक्ट लगभग पूरा हो चुका है. अधिसूचना को रद्द करने से जनता के पैसे का नुकसान होगा. इस स्थिति में कोर्ट ने अधिसूचना रद्द करने से इंकार कर दिया और केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि याची गण को वर्तमान बाजार मूल्य से मुआवजा दिया जाए और उन अधिकारियों की जांच की जाए, जिन्होंने इस बात की गलत रिपोर्ट दी कि समय सीमा के भीतर याची गण ने अपनी आपत्ति दाखिल नहीं की थी. कोर्ट ने इस आदेश की प्रति उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को जांच के लिए भेजने का निर्देश दिया है.

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