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देश का पहला ऐसा पुस्तकालय जिसने तैयार किए देशभक्त और आंदोलनकारी, जानें इसकी कहानी.. - भारती भवन पुस्तकालय की स्थापना

प्रयागराज का भारती भवन पुस्तकालय करीब 130 साल पुराना पुस्तकालय है. यह एकमात्र ऐसा पुस्तकालय है, जिसका देश के स्वतंत्रता संग्राम में विशेष योगदान रहा. इस पुस्तकालय ने कई देशभक्त और आंदोलनकारी तैयार किए. यह जानकर अंग्रेजी हुकूमत ने पुस्तकालय का अनुदान भी आधा कर दिया था. आइए खबर में जानते हैं इस पुस्तकालय की और क्या विशेषता है?

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भारती भवन पुस्तकालय
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Published : Jun 29, 2022, 3:52 PM IST

प्रयागराज: हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार और लोगों के मन में साहित्य के प्रति प्रेम जगाने के साथ ही भारती भवन पुस्तकालय स्वतंत्रता आंदोलन और विशेष रूप से स्वदेशी आंदोलन में सहयोग रहा है. यह प्रयागराज जिले का पहला पुस्तकालय है, जो इतिहास को संजोए हुए है. माना जाता है कि यह पुस्तकालय देशभक्त और आंदोलनकारी तैयार करने का प्रयोगशाला बन गया था. इसी कारण से अंग्रेजी हुकूमत ने पुस्तकालय की तलाशी ली थी. तलाशी में कोई आपत्तिजनक साहित्य सामग्री न मिलने पर भी अंग्रेजी हुकूमत ने पुस्तकालय की सहायता राशि घटाकर 1 हजार से 500 कर दी थी.

कभी कालिन्दी का तट था यहां: भारती भवन पुस्तकालय में भारती शब्द ही इस बात का संकेत है कि इसके जन्म के साथ राज भक्ति का भाव समाहित है. यह भवन जहां पर स्थित है वही कभी कालिंदी का तट था. आसपास ऋषियों के आश्रम थे और तीर्थों की स्थली थी. शायद इसीलिए यहां से ऋषि तुल्य सपूतों ने जन्म लिया. काशी में बाबा विश्वनाथ तो प्रयाग में बाबा लोकनाथ इनके इर्द-गिर्द की माटी में वीर सपूत पैदा हुए. जिनकी आवाज आज भी करोड़ों लोगों के दिलों-दिमाग में व्याप्त है. इनमें महामना पंडित मदन मोहन मालवीय का नाम सबसे पहले आता है.

जानकारी देते हुए भारती भवन पुस्तकालय के प्रबंधक स्वतंत्र पांडेय
साल 1889 में हुई भारती भवन पुस्तकालय की स्थापना: 1889 में लाला बृजमोहन लाल भल्ला ने भारती भवन पुस्तकालय की स्थापना की थी. 1902 में लाला बृजमोहन लाल भल्ला ने अपने बड़े बेटे लाला भवानी प्रसाद और छोटे बेटे लाला राजाराम के सहयोग से भवन की भूमि भवन निर्माण के लिए दान कर दी थी. इसके साथ ही उन्होंने पुस्तकालय का प्रबंधन और संचालन करने के लिए एक ट्रस्ट बनवा दिया. पुस्तकालय की प्रथम कार्यकारिणी में पंडित मदन मोहन मालवीय, पंडित बालकृष्ण भट्ट, पंडित श्रीधर पाठक, लाला लाल बिहारी, पंडित राम नाथ मिश्र, डॉ. जय कृष्ण व्यास, पंडित जय गोविंद मालवीय, लाला बृजमोहन लाल, लाला दुर्गा प्रसाद, पंडित देविका नंदन तिवारी, लाला कालिका प्रसाद जैसे लोग थे.
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भारती भवन पुस्तकालय में पुस्तकें पढ़ते हुए लोग


नैनी जेल में बंद क्रांतिकारियों के लिए भी भेजी जाती थी यहीं से पुस्तकें: स्वतंत्रता संग्राम को लेकर नैनी जेल में बंद नेताओं को पढ़ने के लिए पुस्तकें भी इसी पुस्तकालय से भेजी जाती थीं. इस तरह स्वतंत्रता आंदोलन में पुस्तकालय का बहुत बड़ा योगदान था. इस पुस्तकालय की उपयोगिता पूर्व में दार्जिलिंग से लेकर पश्चिम में जम्मू और जयपुर तक और उत्तर में शिमला से लेकर दक्षिण में हैदराबाद तक फैली हुई थी. इस तरह भारती भवन पुस्तकालय का एक राष्ट्रीय स्वरूप बना.

ये देशभक्त रहे यहां के अध्यक्ष: महामना पंडित मदन मोहन मालवीय, राजश्री पुरुषोत्तम दास टंडन, डॉ. कैलाश दास काटजू, केशव देव मालवीय जैसे महान देशभक्त भारती भवन पुस्तकालय के अध्यक्ष रहे. वर्तमान में महामना मालवीय के पौत्र न्यायमूर्ति गिरधर मालवीय संस्था के अध्यक्ष हैं. इतना ही नहीं शुरुआत से ही पुस्तकालय को गौरवशाली और प्रतिष्ठित लोगों का आशीर्वाद मिलता रहा. पंडित मोतीलाल नेहरू, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सतीश चंद्र बनर्जी, लाल बहादुर शास्त्री, फिरोज गांधी ने समय-समय पर पुस्तकालय को अपना सहयोग दिया.

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भारती भवन पुस्तकालय में पुस्तकें पढ़ते हुए लोग

यह भी पढ़ें- संगम नगरी में है एक ऐसा वृक्ष जो करता है सब मनोकामनाएं पूर्ण

पुस्तकालय की 70वी जयंती 1960 में मनाई गई. इस अवसर पर तमाम आयोजनों को सफल बनाने में महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत, डॉ. हरिवंश राय बच्चन, सतीश चंद्र देव, विशंभर नाथ पांडे और पंडित ब्रजमोहन व्यास का विशेष योगदान रहा. शताब्दी के उपलक्ष्य में भारत सरकार की तरफ से पुस्तकालय के राष्ट्रीय महत्व को ध्यान में रखते हुए विशेष डाक टिकट भी जारी किया गया. स्वतंत्रता संग्राम का केंद्रबिंदु बनी पुस्तकें यहीं से प्रकाशित हुई थीं. महामना अभ्युदय, दुदुंभी, रणभेरी जैसी यह पुस्तकें रहीं. इस पुस्तकालय में 62 हजार किताबें, 12 सौ पांडुलिपिया हैं जो 4 सौ वर्ष पूर्व से शुरू होती हैं. इतना ही नहीं 1750 से अब तक के पंचांग मौजूद हैं.

इस पुस्तकालय का संबंध भले ही स्वतंत्रता संग्राम से रहा हो या इससे जुड़े तमाम साहित्यकार स्वतंत्रा आंदोलन के केंद्रबिंदु बने हों, लेकिन आज भी यह पुस्तकालय उसी पुरानी बिल्डिंग में स्थापित है. उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से इसका अभी तक कोई भी मरम्मत या सुंदरीकरण का कार्य नहीं कराया गया है.

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प्रयागराज: हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार और लोगों के मन में साहित्य के प्रति प्रेम जगाने के साथ ही भारती भवन पुस्तकालय स्वतंत्रता आंदोलन और विशेष रूप से स्वदेशी आंदोलन में सहयोग रहा है. यह प्रयागराज जिले का पहला पुस्तकालय है, जो इतिहास को संजोए हुए है. माना जाता है कि यह पुस्तकालय देशभक्त और आंदोलनकारी तैयार करने का प्रयोगशाला बन गया था. इसी कारण से अंग्रेजी हुकूमत ने पुस्तकालय की तलाशी ली थी. तलाशी में कोई आपत्तिजनक साहित्य सामग्री न मिलने पर भी अंग्रेजी हुकूमत ने पुस्तकालय की सहायता राशि घटाकर 1 हजार से 500 कर दी थी.

कभी कालिन्दी का तट था यहां: भारती भवन पुस्तकालय में भारती शब्द ही इस बात का संकेत है कि इसके जन्म के साथ राज भक्ति का भाव समाहित है. यह भवन जहां पर स्थित है वही कभी कालिंदी का तट था. आसपास ऋषियों के आश्रम थे और तीर्थों की स्थली थी. शायद इसीलिए यहां से ऋषि तुल्य सपूतों ने जन्म लिया. काशी में बाबा विश्वनाथ तो प्रयाग में बाबा लोकनाथ इनके इर्द-गिर्द की माटी में वीर सपूत पैदा हुए. जिनकी आवाज आज भी करोड़ों लोगों के दिलों-दिमाग में व्याप्त है. इनमें महामना पंडित मदन मोहन मालवीय का नाम सबसे पहले आता है.

जानकारी देते हुए भारती भवन पुस्तकालय के प्रबंधक स्वतंत्र पांडेय
साल 1889 में हुई भारती भवन पुस्तकालय की स्थापना: 1889 में लाला बृजमोहन लाल भल्ला ने भारती भवन पुस्तकालय की स्थापना की थी. 1902 में लाला बृजमोहन लाल भल्ला ने अपने बड़े बेटे लाला भवानी प्रसाद और छोटे बेटे लाला राजाराम के सहयोग से भवन की भूमि भवन निर्माण के लिए दान कर दी थी. इसके साथ ही उन्होंने पुस्तकालय का प्रबंधन और संचालन करने के लिए एक ट्रस्ट बनवा दिया. पुस्तकालय की प्रथम कार्यकारिणी में पंडित मदन मोहन मालवीय, पंडित बालकृष्ण भट्ट, पंडित श्रीधर पाठक, लाला लाल बिहारी, पंडित राम नाथ मिश्र, डॉ. जय कृष्ण व्यास, पंडित जय गोविंद मालवीय, लाला बृजमोहन लाल, लाला दुर्गा प्रसाद, पंडित देविका नंदन तिवारी, लाला कालिका प्रसाद जैसे लोग थे.
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भारती भवन पुस्तकालय में पुस्तकें पढ़ते हुए लोग


नैनी जेल में बंद क्रांतिकारियों के लिए भी भेजी जाती थी यहीं से पुस्तकें: स्वतंत्रता संग्राम को लेकर नैनी जेल में बंद नेताओं को पढ़ने के लिए पुस्तकें भी इसी पुस्तकालय से भेजी जाती थीं. इस तरह स्वतंत्रता आंदोलन में पुस्तकालय का बहुत बड़ा योगदान था. इस पुस्तकालय की उपयोगिता पूर्व में दार्जिलिंग से लेकर पश्चिम में जम्मू और जयपुर तक और उत्तर में शिमला से लेकर दक्षिण में हैदराबाद तक फैली हुई थी. इस तरह भारती भवन पुस्तकालय का एक राष्ट्रीय स्वरूप बना.

ये देशभक्त रहे यहां के अध्यक्ष: महामना पंडित मदन मोहन मालवीय, राजश्री पुरुषोत्तम दास टंडन, डॉ. कैलाश दास काटजू, केशव देव मालवीय जैसे महान देशभक्त भारती भवन पुस्तकालय के अध्यक्ष रहे. वर्तमान में महामना मालवीय के पौत्र न्यायमूर्ति गिरधर मालवीय संस्था के अध्यक्ष हैं. इतना ही नहीं शुरुआत से ही पुस्तकालय को गौरवशाली और प्रतिष्ठित लोगों का आशीर्वाद मिलता रहा. पंडित मोतीलाल नेहरू, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सतीश चंद्र बनर्जी, लाल बहादुर शास्त्री, फिरोज गांधी ने समय-समय पर पुस्तकालय को अपना सहयोग दिया.

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भारती भवन पुस्तकालय में पुस्तकें पढ़ते हुए लोग

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पुस्तकालय की 70वी जयंती 1960 में मनाई गई. इस अवसर पर तमाम आयोजनों को सफल बनाने में महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत, डॉ. हरिवंश राय बच्चन, सतीश चंद्र देव, विशंभर नाथ पांडे और पंडित ब्रजमोहन व्यास का विशेष योगदान रहा. शताब्दी के उपलक्ष्य में भारत सरकार की तरफ से पुस्तकालय के राष्ट्रीय महत्व को ध्यान में रखते हुए विशेष डाक टिकट भी जारी किया गया. स्वतंत्रता संग्राम का केंद्रबिंदु बनी पुस्तकें यहीं से प्रकाशित हुई थीं. महामना अभ्युदय, दुदुंभी, रणभेरी जैसी यह पुस्तकें रहीं. इस पुस्तकालय में 62 हजार किताबें, 12 सौ पांडुलिपिया हैं जो 4 सौ वर्ष पूर्व से शुरू होती हैं. इतना ही नहीं 1750 से अब तक के पंचांग मौजूद हैं.

इस पुस्तकालय का संबंध भले ही स्वतंत्रता संग्राम से रहा हो या इससे जुड़े तमाम साहित्यकार स्वतंत्रा आंदोलन के केंद्रबिंदु बने हों, लेकिन आज भी यह पुस्तकालय उसी पुरानी बिल्डिंग में स्थापित है. उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से इसका अभी तक कोई भी मरम्मत या सुंदरीकरण का कार्य नहीं कराया गया है.

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