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इलाहाबाद: ओबीसी कोटे में अभ्यर्थियों का चयन के मामले में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से मांगी जानकारी

हाईकोर्ट ने पुलिस, पीएसी कांस्टेबल भर्ती में महिला आरक्षियों के वर्ग में पदों के सापेक्ष ढाई गुना से अधिक अभ्यर्थी बुलाने और बिना वैध जाति प्रमाणपत्र के ओबीसी कोटे में अभ्यर्थियों का चयन करने के मामले में राज्य सरकार तथा पुलिस भर्ती बोर्ड से जानकारी मांगी है.

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Published : Oct 9, 2020, 11:03 PM IST

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इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद: हाईकोर्ट ने पुलिस, पीएसी कांस्टेबल भर्ती में महिला आरक्षियों के वर्ग में पदों के सापेक्ष ढाई गुना से अधिक अभ्यर्थी बुलाने और बिना वैध जाति प्रमाणपत्र के ओबीसी कोटे में अभ्यर्थियों का चयन करने के मामले में राज्य सरकार तथा पुलिस भर्ती बोर्ड से जानकारी मांगी है.

रुचि यादव व अन्य की याचिका पर सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति अजय भनोट ने इस मामले में जानकारी मांगी है. याची के मुताबिक 2018 भर्ती में महिला आरक्षियों का 31360 पदों पर चयन होना था. याचीगण ने ओबीसी कोटे के तहत आवेदन किया. लिखित परीक्षा, दस्तावेज सत्यापन आदि में वह सफल रहीं. ओबीसी कोटे की कट ऑफ मेरिट 182.3272 थी जिसमें याचीगण सफल थीं. अंतिम चरण में शारीरिक दक्षता परीक्षा होनी थी. बोर्ड ने विज्ञापन की शर्त के अनुसार पहले कुल पदों के सापेक्ष ढाई गुना अभ्यर्थियों को मेरिट के हिसाब से चयन हेतु बुुलाया था.

शारीरिक दक्षता परीक्षा ‌दिसंबर 2019 से जनवरी 20 के बीच हुई. आठ जनवरी 20 को बोर्ड ने एक विज्ञप्ति जारी की कि योग्य महिला अभ्यर्थियों के न मिलने के कारण अतिरिक्त अभ्यर्थियों को बुलाया जा रहा है. इसके बाद कट ऑफ मेरिट नीचे गिरा कर 167.3889 कर दी गई. दो मार्च 2020 को अंतिम चयन परिणाम जारी हुआ जिसमें याचीगण का चयन नहीं हुआ.

याचीगण का कहना था कि जब वह इससे ऊपर की कट ऑफ मेरिट में चयनित थी तो मेरिट नीचे लाने के बाद उनको किस प्रकार से चयन बाहर कर दिया गया. यह भी कहा गया कि चयन सूची में बहुत सी ऐसी अभ्यर्थियों को चयनित किया गया है, जिनके पास अप्रैल से दिसंबर 18 के बीच का ओबीसी जाति प्रमाणपत्र नहीं है. कोर्ट ने मामले को विचारणीय मानते हुए जानकारी तलब की है.

45 दिन की समय सीमा के पीछे अनावश्यक विलंब को रोकना

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि मृतक आश्रित कोटे में सरकारी गल्ले की दुकान का लाइसेंस देने के लिए आवेदन हेतु निर्धारित 45 दिन की समय सीमा के पीछे अनावश्यक विलंब को रोकना है ताकि कार्ड धारकों को असुविधा का सामना ना करना पड़े. यह प्रक्रिया निर्देशात्मक है. इसलिए यदि आवेदन में विलंब हुआ है और किसी अन्य को दुकान का आवंटन नहीं किया गया है तो मृतक आश्रित के मामले में सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जा सकता है. कोर्ट ने एसडीएम छिबरामऊ कन्नौज द्वारा याची राजेश कुमार का प्रत्यावेदन विलंब के आधार पर खारिज करने का आदेश रद्द कर दिया है और उसके प्रत्यावेदन पर विचार कर लाइसेंस देने का निर्देश दिया है.

राजेश कुमार की याचिका पर यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता ने दिया. याची के पिता भइया लाल की सरकारी गल्ले की दुकान थी. 31 जनवरी 19 को उनकी मृत्यु के बाद याची ने दुकान का लाइसेंस मृतक आश्रित कोटे में देने हेतु आवेदन किया. एसडीएम ने आवेदन यह कहते हुए खारिज कर दिया कि आवेदन निर्धारित 45 दिन की समय सीमा के बाद प्राप्त हुआ है. याची का कहना था कि उसने आवेदन समय के भीतर किया था मगर एसडीएम कार्यालय ने इसकी कोई रिसीविंग नहीं दी और न ही आवेदन पर कोई कार्यवाही की तो उसे रजिस्टर्ड डाक से दुबारा आवेदन भेजा. जिस पर एसडीएम ने समय सीमा का हवाला देकर उसका आवेदन खारिज कर दिया.

याची का कहना था कि अभी तक दुकान का आवंटन किसी अन्य को नहीं किया गया है. इसलिए उसके प्रत्यावेदन पर विचार हो सकता है. कोर्ट ने इस मामले में सहानुभूति पूर्ण नजरिया अपनाने की आवश्यकता बताते हुए एसडीएम का आदेश रद्द कर दिया है और याची से आवेदन लेकर उसके दुकान का लाइसेंस देने पर विचार करने को कहा है.


सभासद निहाल कुमार ने गैंग लीडर घोषित करने की वैधता की चुनौती याचिका की सुनवाई 15अक्तूबर को

यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज नकवी तथा न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने दिया है. याची अधिवक्ता अरूण कुमार मिश्र का कहना है कि पुलिस याची को गैंग लीडर घोषित कर उसके पैतृक मकान को ध्वंस करने की कार्यवाही करना चाहती है. याची के खिलाफ 24मुकदमे दर्ज थे, जिनमे से वह 13 मामलो में बरी हो चुका है, दो बार सभासद रहा, एक बार उसकी पत्नी सभासद रही. अखबार में गैंग लीडर घोषित करने की सूचना प्रकाशित हुई है, उसके खिलाफ राजनैतिक कारणों से केस दर्ज किया गया है. गैंग के द्वारा अपराध करने का आरोप नहीं है. मनमाने तरीके से गैंग लीडर घोषित कर दिया गया है. सुनवाई 15अक्तूबर को होगी.

इलाहाबाद: हाईकोर्ट ने पुलिस, पीएसी कांस्टेबल भर्ती में महिला आरक्षियों के वर्ग में पदों के सापेक्ष ढाई गुना से अधिक अभ्यर्थी बुलाने और बिना वैध जाति प्रमाणपत्र के ओबीसी कोटे में अभ्यर्थियों का चयन करने के मामले में राज्य सरकार तथा पुलिस भर्ती बोर्ड से जानकारी मांगी है.

रुचि यादव व अन्य की याचिका पर सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति अजय भनोट ने इस मामले में जानकारी मांगी है. याची के मुताबिक 2018 भर्ती में महिला आरक्षियों का 31360 पदों पर चयन होना था. याचीगण ने ओबीसी कोटे के तहत आवेदन किया. लिखित परीक्षा, दस्तावेज सत्यापन आदि में वह सफल रहीं. ओबीसी कोटे की कट ऑफ मेरिट 182.3272 थी जिसमें याचीगण सफल थीं. अंतिम चरण में शारीरिक दक्षता परीक्षा होनी थी. बोर्ड ने विज्ञापन की शर्त के अनुसार पहले कुल पदों के सापेक्ष ढाई गुना अभ्यर्थियों को मेरिट के हिसाब से चयन हेतु बुुलाया था.

शारीरिक दक्षता परीक्षा ‌दिसंबर 2019 से जनवरी 20 के बीच हुई. आठ जनवरी 20 को बोर्ड ने एक विज्ञप्ति जारी की कि योग्य महिला अभ्यर्थियों के न मिलने के कारण अतिरिक्त अभ्यर्थियों को बुलाया जा रहा है. इसके बाद कट ऑफ मेरिट नीचे गिरा कर 167.3889 कर दी गई. दो मार्च 2020 को अंतिम चयन परिणाम जारी हुआ जिसमें याचीगण का चयन नहीं हुआ.

याचीगण का कहना था कि जब वह इससे ऊपर की कट ऑफ मेरिट में चयनित थी तो मेरिट नीचे लाने के बाद उनको किस प्रकार से चयन बाहर कर दिया गया. यह भी कहा गया कि चयन सूची में बहुत सी ऐसी अभ्यर्थियों को चयनित किया गया है, जिनके पास अप्रैल से दिसंबर 18 के बीच का ओबीसी जाति प्रमाणपत्र नहीं है. कोर्ट ने मामले को विचारणीय मानते हुए जानकारी तलब की है.

45 दिन की समय सीमा के पीछे अनावश्यक विलंब को रोकना

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि मृतक आश्रित कोटे में सरकारी गल्ले की दुकान का लाइसेंस देने के लिए आवेदन हेतु निर्धारित 45 दिन की समय सीमा के पीछे अनावश्यक विलंब को रोकना है ताकि कार्ड धारकों को असुविधा का सामना ना करना पड़े. यह प्रक्रिया निर्देशात्मक है. इसलिए यदि आवेदन में विलंब हुआ है और किसी अन्य को दुकान का आवंटन नहीं किया गया है तो मृतक आश्रित के मामले में सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जा सकता है. कोर्ट ने एसडीएम छिबरामऊ कन्नौज द्वारा याची राजेश कुमार का प्रत्यावेदन विलंब के आधार पर खारिज करने का आदेश रद्द कर दिया है और उसके प्रत्यावेदन पर विचार कर लाइसेंस देने का निर्देश दिया है.

राजेश कुमार की याचिका पर यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता ने दिया. याची के पिता भइया लाल की सरकारी गल्ले की दुकान थी. 31 जनवरी 19 को उनकी मृत्यु के बाद याची ने दुकान का लाइसेंस मृतक आश्रित कोटे में देने हेतु आवेदन किया. एसडीएम ने आवेदन यह कहते हुए खारिज कर दिया कि आवेदन निर्धारित 45 दिन की समय सीमा के बाद प्राप्त हुआ है. याची का कहना था कि उसने आवेदन समय के भीतर किया था मगर एसडीएम कार्यालय ने इसकी कोई रिसीविंग नहीं दी और न ही आवेदन पर कोई कार्यवाही की तो उसे रजिस्टर्ड डाक से दुबारा आवेदन भेजा. जिस पर एसडीएम ने समय सीमा का हवाला देकर उसका आवेदन खारिज कर दिया.

याची का कहना था कि अभी तक दुकान का आवंटन किसी अन्य को नहीं किया गया है. इसलिए उसके प्रत्यावेदन पर विचार हो सकता है. कोर्ट ने इस मामले में सहानुभूति पूर्ण नजरिया अपनाने की आवश्यकता बताते हुए एसडीएम का आदेश रद्द कर दिया है और याची से आवेदन लेकर उसके दुकान का लाइसेंस देने पर विचार करने को कहा है.


सभासद निहाल कुमार ने गैंग लीडर घोषित करने की वैधता की चुनौती याचिका की सुनवाई 15अक्तूबर को

यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज नकवी तथा न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने दिया है. याची अधिवक्ता अरूण कुमार मिश्र का कहना है कि पुलिस याची को गैंग लीडर घोषित कर उसके पैतृक मकान को ध्वंस करने की कार्यवाही करना चाहती है. याची के खिलाफ 24मुकदमे दर्ज थे, जिनमे से वह 13 मामलो में बरी हो चुका है, दो बार सभासद रहा, एक बार उसकी पत्नी सभासद रही. अखबार में गैंग लीडर घोषित करने की सूचना प्रकाशित हुई है, उसके खिलाफ राजनैतिक कारणों से केस दर्ज किया गया है. गैंग के द्वारा अपराध करने का आरोप नहीं है. मनमाने तरीके से गैंग लीडर घोषित कर दिया गया है. सुनवाई 15अक्तूबर को होगी.

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