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अधिगृहीत खाली जमीन किसान को वापस पाने का अधिकार नहीं: हाईकोर्ट

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Published : Jun 30, 2021, 4:11 PM IST

सरकार द्वारा जमीन अधिग्रहण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा है कि अधिगृहीत जमीन खाली पड़ी है तो भी किसान को वापस पाने का अधिकार नहीं है. यह आदेश तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजय यादव तथा न्यायमूर्ति प्रकाश पांडिया की खंडपीठ ने विजय पाल और चार अन्य की याचिका पर दिया है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि अधिगृहीत जमीन का कब्जा ले लिया गया हो, भले ही उसका उपयोग न किया गया हो, भू-स्वामी वापसी की मांग करने का हकदार नहीं है. सरकार चाहे तो अधिगृहीत जमीन का अधिग्रहण रद्द कर सकती है और जिलाधिकारी इस कार्रवाई में किसान को हुए नुकसान की भरपाई करेगा.

इसी के साथ वर्षों पहले अधिगृहीत जमीन की खेती के लिए वापस करने की मांग मे दाखिल याचिका खारिज कर दी है. कोर्ट ने कहा याची यह मांग नहीं कर सकता कि कुछ लोगों की जमीन वापस की गई है. उसकी भी वापस की जाय. कोर्ट ने कहा है कि अनुच्छेद-14 के अंतर्गत समानता का अधिकार गलत और अवैध लाभ पाने का अधिकार शामिल नहीं है.

याची की गौतमबुद्धनगर, दादरी के थापखेरा गांव की जमीन का दशकों पहले अधिग्रहण की गई. याची की आपत्ति अस्वीकार कर दी गई है. उसका कहना था कि वह जाटव जाति का किसान है. इस जमीन के अलावा उसके पास दूसरी जमीन नहीं है. कुछ लोगों की वापस की गई है. उसकी भी वापस की जाए.

कोर्ट ने कहा कि देरी से मांग के आधार पर ही याचिका खारिज होने योग्य है और किसी को गलत आदेश से जमीन वापस की गई है तो उस गलती का लाभ नही मांगा जा सकता है. अधिगृहीत जमीन पर कब्जा लेने के बाद उसकी वापसी नहीं की जा सकती है.

एक ही मुद्दे पर दुबारा याचिका दाखिल करने पर 25 हजार हर्जाना

वहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज होने के बाद दोबारा दाखिल याचिका को न्यायिक प्रक्रिया का दुरूपयोग करार देते हुए 25 हजार हर्जाने के साथ खारिज कर दी है. कोर्ट ने कहा है कि अधिगृहीत जमीन का कब्जा लेकर वर्षों पहले ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी को सौंपा जा चुका है. ऐसे में जमीन की वापसी नहीं की जा सकती. यह आदेश तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय यादव तथा न्यायमूर्ति प्रकाश पांडिया की खंडपीठ ने दादरी, सदरपुर की तेजल उप्पल की याचिका पर दिया है.

याची का कहना था कि अधिगृहीत जमीन आबादी की है. उसपर स्कूल बना था, जिसे ध्वस्त कर दिया गया और जमीन का उपयोग नहीं किया गया है इसलिए वापस की जाय. कोर्ट ने कहा कि सरकार ने यह कहा है कि जमीन पर कोई निर्माण नहीं है. इस तथ्य को चुनौती नहीं दी गई. याची की मांग अस्वीकार करने के राज्य सरकार के आदेश की चुनौती याचिका वापस ले ली गयी थी. दोबारा याचिका दाखिल करने की छूट भी नहीं ली गई, उसी मुद्दे पर दोबारा याचिका न्यायिक प्रक्रिया का दुरूपयोग है. कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है.

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि अधिगृहीत जमीन का कब्जा ले लिया गया हो, भले ही उसका उपयोग न किया गया हो, भू-स्वामी वापसी की मांग करने का हकदार नहीं है. सरकार चाहे तो अधिगृहीत जमीन का अधिग्रहण रद्द कर सकती है और जिलाधिकारी इस कार्रवाई में किसान को हुए नुकसान की भरपाई करेगा.

इसी के साथ वर्षों पहले अधिगृहीत जमीन की खेती के लिए वापस करने की मांग मे दाखिल याचिका खारिज कर दी है. कोर्ट ने कहा याची यह मांग नहीं कर सकता कि कुछ लोगों की जमीन वापस की गई है. उसकी भी वापस की जाय. कोर्ट ने कहा है कि अनुच्छेद-14 के अंतर्गत समानता का अधिकार गलत और अवैध लाभ पाने का अधिकार शामिल नहीं है.

याची की गौतमबुद्धनगर, दादरी के थापखेरा गांव की जमीन का दशकों पहले अधिग्रहण की गई. याची की आपत्ति अस्वीकार कर दी गई है. उसका कहना था कि वह जाटव जाति का किसान है. इस जमीन के अलावा उसके पास दूसरी जमीन नहीं है. कुछ लोगों की वापस की गई है. उसकी भी वापस की जाए.

कोर्ट ने कहा कि देरी से मांग के आधार पर ही याचिका खारिज होने योग्य है और किसी को गलत आदेश से जमीन वापस की गई है तो उस गलती का लाभ नही मांगा जा सकता है. अधिगृहीत जमीन पर कब्जा लेने के बाद उसकी वापसी नहीं की जा सकती है.

एक ही मुद्दे पर दुबारा याचिका दाखिल करने पर 25 हजार हर्जाना

वहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज होने के बाद दोबारा दाखिल याचिका को न्यायिक प्रक्रिया का दुरूपयोग करार देते हुए 25 हजार हर्जाने के साथ खारिज कर दी है. कोर्ट ने कहा है कि अधिगृहीत जमीन का कब्जा लेकर वर्षों पहले ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी को सौंपा जा चुका है. ऐसे में जमीन की वापसी नहीं की जा सकती. यह आदेश तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय यादव तथा न्यायमूर्ति प्रकाश पांडिया की खंडपीठ ने दादरी, सदरपुर की तेजल उप्पल की याचिका पर दिया है.

याची का कहना था कि अधिगृहीत जमीन आबादी की है. उसपर स्कूल बना था, जिसे ध्वस्त कर दिया गया और जमीन का उपयोग नहीं किया गया है इसलिए वापस की जाय. कोर्ट ने कहा कि सरकार ने यह कहा है कि जमीन पर कोई निर्माण नहीं है. इस तथ्य को चुनौती नहीं दी गई. याची की मांग अस्वीकार करने के राज्य सरकार के आदेश की चुनौती याचिका वापस ले ली गयी थी. दोबारा याचिका दाखिल करने की छूट भी नहीं ली गई, उसी मुद्दे पर दोबारा याचिका न्यायिक प्रक्रिया का दुरूपयोग है. कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया है.

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