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समाज में बढ़ रही जजों की प्रतिष्ठा खराब करने की प्रवृत्ति: HC - हाईकोर्ट की न्यूज हिंदी में

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जजों पर अनर्गल आरोप लगाकर उनको बदनाम करने के बढ़ते चलन पर कड़ी टिप्पणी की है.

High court news
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Published : Dec 8, 2022, 9:51 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जजों पर अनर्गल आरोप लगाकर उनको बदनाम करने के बढ़ते चलन पर कड़ी टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा है कि समाज के प्रत्येक क्षेत्र के लोगों में यह धारणा बन गई है कि जज आसान लक्ष्य है. कोई भी आरोप लगाकर उनकी प्रतिष्ठा को खराब किया जा सकता है. कोर्ट ने पीठासीन अधिकारी के खिलाफ अनर्गल आरोप लगाने के लिए स्थानांतरण याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की और दस हजार रूपए हर्जाने के साथ याचिका खारिज कर दी है.

याची हरी सिंह ने हाईकोर्ट में स्थानांतरण आवेदन दाखिल कर अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, फिरोजाबाद के न्यायालय में लंबित एक मामले को उसी न्यायपालिका के भीतर सक्षम अधिकार क्षेत्र के किसी अन्य न्यायालय में स्थानांतरित करने की मांग की थी. याचिका पर न्यायामूर्ति जे जे मुनीर की एकल पीठ ने सुनवाई की.

इस मामले में वादी ने उक्त मुकदमे में एक अस्थायी निषेधाज्ञा आवेदन दायर किया था जिसे खारिज कर दिया गया था. अस्थायी निषेधाज्ञा से इंकार करने वाले आदेश के खिलाफ एक विविध अपील अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के समक्ष लंबित है.

याची का कहना था कि प्रतिवादी आवेदक-वादी को धमकी दे रहे हैं कि उन्होंने अपीलीय अदालत में पीठासीन अधिकारी के साथ सांठगांठ की है, जहां अपील लंबित है, और एक बार तो आवेदक ने प्रतिवादियों में से एक को पीठासीन अधिकारी के चैंबर से निकलते देखा है.

इस पर पीठ ने कहा कि “इस मामले का दूसरा पहलू यह है कि एक वादी द्वारा इस तरह के निराधार और गैर-जिम्मेदार आरोप लगाना समाज में बढ़ती उस प्रवृत्ति को दर्शाती है कि समाज के सभी क्षेत्रों के नागरिकों ने एक दृष्टिकोण विकसित किया है, जहां वे सोचते हैं कि न्यायाधीश एक आसान लक्ष्य है, और वे न्यायाधीशों की प्रतिष्ठा को खराब कर सकते हैं उनके खिलाफ कुछ भी आरोप लगा सकते हैं, विशेष रूप से, अधीनस्थ न्यायालयों में पीठासीन अधिकारी.

यह प्रवृत्ति उन शिकायतों में परिलक्षित होती है जो इस न्यायालय के प्रशासनिक पक्ष पर और स्थानांतरण आवेदनों में होती हैं. ऐसे स्थानांतरण आवेदनों का प्रभाव, यदि स्वीकार किया जाता है और पीठासीन अधिकारी को अपनी टिप्पणी देने के लिए कहा जाता है, तो अधीनस्थ न्यायपालिका का मनोबल गिरेगा. कोर्ट ने कहा कि आम तौर पर समाज सशस्त्र बलों और पुलिस के मनोबल को बनाए रखने की बात तो करता मगर , न्यायाधीशों के बारे में कम सोचते हैं, जिनसे वे न्याय की उम्मीद करते हैं. कोर्ट ने कहा कि ऐसा होने की अनुमति नहीं दी जा सकती. इस तरह के दुस्साहस करने वाले वादकारियों को हतोत्साहित करना होगा.

कोर्ट ने कहा कि न्याय की प्रणाली उन लोगों के दिलों में निडरता की इमारत पर काम करती है, जो इसे धारण करते हैं-चाहे वे न्यायाधीश हों या वकील. यदि अधीनस्थ न्यायपालिका के सदस्य के खिलाफ बेईमान वादियों से इस तरह के आरोपों पर एक ऊपरी अदालत द्वारा विचार किया जाता है, तो एक निडर न्यायपालिका से न्याय की उम्मीद करना असंभव है, जो सदा भय में रहती है। उपरोक्त के मद्देनजर, खंडपीठ ने स्थानांतरण आवेदन को खारिज कर दिया.

ये भी पढ़ेंः मैनपुरी में डिंपल का दबदबा तो रामपुर में सपा का किला ढहा, खतौली रालोद की झोली में

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जजों पर अनर्गल आरोप लगाकर उनको बदनाम करने के बढ़ते चलन पर कड़ी टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा है कि समाज के प्रत्येक क्षेत्र के लोगों में यह धारणा बन गई है कि जज आसान लक्ष्य है. कोई भी आरोप लगाकर उनकी प्रतिष्ठा को खराब किया जा सकता है. कोर्ट ने पीठासीन अधिकारी के खिलाफ अनर्गल आरोप लगाने के लिए स्थानांतरण याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की और दस हजार रूपए हर्जाने के साथ याचिका खारिज कर दी है.

याची हरी सिंह ने हाईकोर्ट में स्थानांतरण आवेदन दाखिल कर अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, फिरोजाबाद के न्यायालय में लंबित एक मामले को उसी न्यायपालिका के भीतर सक्षम अधिकार क्षेत्र के किसी अन्य न्यायालय में स्थानांतरित करने की मांग की थी. याचिका पर न्यायामूर्ति जे जे मुनीर की एकल पीठ ने सुनवाई की.

इस मामले में वादी ने उक्त मुकदमे में एक अस्थायी निषेधाज्ञा आवेदन दायर किया था जिसे खारिज कर दिया गया था. अस्थायी निषेधाज्ञा से इंकार करने वाले आदेश के खिलाफ एक विविध अपील अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के समक्ष लंबित है.

याची का कहना था कि प्रतिवादी आवेदक-वादी को धमकी दे रहे हैं कि उन्होंने अपीलीय अदालत में पीठासीन अधिकारी के साथ सांठगांठ की है, जहां अपील लंबित है, और एक बार तो आवेदक ने प्रतिवादियों में से एक को पीठासीन अधिकारी के चैंबर से निकलते देखा है.

इस पर पीठ ने कहा कि “इस मामले का दूसरा पहलू यह है कि एक वादी द्वारा इस तरह के निराधार और गैर-जिम्मेदार आरोप लगाना समाज में बढ़ती उस प्रवृत्ति को दर्शाती है कि समाज के सभी क्षेत्रों के नागरिकों ने एक दृष्टिकोण विकसित किया है, जहां वे सोचते हैं कि न्यायाधीश एक आसान लक्ष्य है, और वे न्यायाधीशों की प्रतिष्ठा को खराब कर सकते हैं उनके खिलाफ कुछ भी आरोप लगा सकते हैं, विशेष रूप से, अधीनस्थ न्यायालयों में पीठासीन अधिकारी.

यह प्रवृत्ति उन शिकायतों में परिलक्षित होती है जो इस न्यायालय के प्रशासनिक पक्ष पर और स्थानांतरण आवेदनों में होती हैं. ऐसे स्थानांतरण आवेदनों का प्रभाव, यदि स्वीकार किया जाता है और पीठासीन अधिकारी को अपनी टिप्पणी देने के लिए कहा जाता है, तो अधीनस्थ न्यायपालिका का मनोबल गिरेगा. कोर्ट ने कहा कि आम तौर पर समाज सशस्त्र बलों और पुलिस के मनोबल को बनाए रखने की बात तो करता मगर , न्यायाधीशों के बारे में कम सोचते हैं, जिनसे वे न्याय की उम्मीद करते हैं. कोर्ट ने कहा कि ऐसा होने की अनुमति नहीं दी जा सकती. इस तरह के दुस्साहस करने वाले वादकारियों को हतोत्साहित करना होगा.

कोर्ट ने कहा कि न्याय की प्रणाली उन लोगों के दिलों में निडरता की इमारत पर काम करती है, जो इसे धारण करते हैं-चाहे वे न्यायाधीश हों या वकील. यदि अधीनस्थ न्यायपालिका के सदस्य के खिलाफ बेईमान वादियों से इस तरह के आरोपों पर एक ऊपरी अदालत द्वारा विचार किया जाता है, तो एक निडर न्यायपालिका से न्याय की उम्मीद करना असंभव है, जो सदा भय में रहती है। उपरोक्त के मद्देनजर, खंडपीठ ने स्थानांतरण आवेदन को खारिज कर दिया.

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