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हाईकोर्ट ने कहा, कानून के विपरीत पहले के अदालती फैसले लागू करना सही नहीं...

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि कानून संशोधित होने से पहले दिये गये अदालती फैसले के आधार पर लाभ नहीं दिया जा सकता.

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कानून के विपरीत पहले के अदालती फैसले लागू करना सही नहीं - हाईकोर्ट
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Published : Feb 4, 2022, 10:36 PM IST

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि कानून संशोधित होने से पहले दिये गये, अदालती फैसले के आधार पर लाभ नहीं दिया जा सकता. भूतलक्षी प्रभाव वाले कानून संशोधन को चुनौती दिये बगैर उसके उपबंधो की अनदेखी नहीं की जा सकती. कोर्ट ने कहा खाली पद पर नियमानुसार कानून के तहत की गई नियुक्ति ही मान्य है.

कोर्ट ने कहा समय से नियमित न करना वरिष्ठता व अन्य सेवा परिलाभों से वंचित करना है. सरकार पिक एण्ड चूज नहीं कर सकती. सेवा नियमितीकरण नियमावली के लाभ से किसी को वंचित नहीं किया जा सकता. इसी के साथ कोर्ट ने लघु सिंचाई विभाग के चीफ इंजीनियर को ललितपुर से सेवानिवृत्त कनिष्ठ अभियंता राज बहादुर को सेवानिवृत्ति परिलाभो सहित पेंशन भुगतान पर दो माह में निर्णय लेने और उसके छः हफ्ते में सेवा जनित परिलाभों का भुगतान करने का निर्देश दिया है.

यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र तथा न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने राज्य सरकार की विशेष अपील को निस्तारित करते हुए दिया है. अपील पर राज्य सरकार के अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता रामानंद पांडेय ने बहस की. मालूम हो कि याची की नियुक्ति सिंचाई विभाग में कनिष्ठ अभियंता के रूप में 1 जनवरी 1989 को की गई. वह बिना पद के दैनिक वेतन पर वर्षों तक कार्यरत रहा. 21फरवरी 97को कोर्ट ने न्यूनतम वेतन भुगतान पर सरकार को निर्णय लेने का निर्देश दिया.

इसके पालन में चीफ इंजीनियर ने 3 सितंबर 97 को न्यूनतम वेतन भुगतान का आदेश दिया किन्तु सेवा नियमित करने से इंकार कर दिया. जिसे सेवा अधिकरण में चुनौती दी गई.

कहा कि सेवा नियमितीकरण नियमावली लागू होने से पहले से वह कार्यरत है. नियमावली के तहत वह नियमित किये जाने का हकदार है. अधिकरण ने दावा स्वीकार कर लिया और याची को नियमित करने का आदेश दिया. इसके खिलाफ याचिका पर कोर्ट ने नियमावली 2001के तहत सरकार को विचार कर निर्णय लेने का का आदेश दिया.

31 दिसंबर 18 को याची को नियमित कर दिया गया. इसके बाद 30 सितंबर 20 को वह सेवानिवृत्त हो गया. उसकी दस साल की सेवा न पूरी होने के कारण जब पेंशन देने से इंकार कर दिया गया तो याचिका दायर की गई. एकल पीठ ने प्रेम सिंह केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत पेंशन आदि सेवानिवृत्ति परिलाभो का भुगतान करने का निर्देश दिया. इस आदेश को अपील में चुनौती दी गई थी.

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सरकार का कहना था कि 2021 में कानून संशोधित कर दिया गया. 1961से लागू किया गया है जिसके तहत नियमित रूप से नियुक्ति मामले को ही सेवा अवधि में शामिल किया जायेगा. याची का पद लोक सेवा आयोग की परिधि में आने वाला पल है क्योंकि याची की नियुक्ति नियमानुसार खाली पद पर नहीं की गई थी इसलिए उसकी दैनिक सेवाएं नहीं जोड़ी जाएगी. प्रेम सिंह केस इस मामले में लागू नहीं होगा. यह वर्क चार्ज कर्मचारियों के विषय में है. एकलपीठ ने 2020मे जारी अध्यादेश व 2021 में कानून संशोधन के उपबंधो पर विचार नहीं किया.

कोर्ट ने इस तर्क से सहमति व्यक्त की और कहा एकल पीठ ने गलती की है किन्तु सेवा नियमित करने के आदेश को चुनौती दिये बगैर सेवा नियमितीकरण नियमावली का लाभ देने से इंकार करने के तर्क को सही नहीं माना और कहा कि सेवा नियमित करने में देरी के लिए कर्मचारी को दोषी नहीं मान सकते. नियमावली के तहत नियमितीकरण उपबंधो का लाभ देते हुए परिलाभो का भुगतान किया जाए.

ये भी पढ़ेंः UP Election 2022: योगी के नामांकन से पहले शाह ने भरी हुंकार, इस बार 300 पार

प्रयागराजः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि कानून संशोधित होने से पहले दिये गये, अदालती फैसले के आधार पर लाभ नहीं दिया जा सकता. भूतलक्षी प्रभाव वाले कानून संशोधन को चुनौती दिये बगैर उसके उपबंधो की अनदेखी नहीं की जा सकती. कोर्ट ने कहा खाली पद पर नियमानुसार कानून के तहत की गई नियुक्ति ही मान्य है.

कोर्ट ने कहा समय से नियमित न करना वरिष्ठता व अन्य सेवा परिलाभों से वंचित करना है. सरकार पिक एण्ड चूज नहीं कर सकती. सेवा नियमितीकरण नियमावली के लाभ से किसी को वंचित नहीं किया जा सकता. इसी के साथ कोर्ट ने लघु सिंचाई विभाग के चीफ इंजीनियर को ललितपुर से सेवानिवृत्त कनिष्ठ अभियंता राज बहादुर को सेवानिवृत्ति परिलाभो सहित पेंशन भुगतान पर दो माह में निर्णय लेने और उसके छः हफ्ते में सेवा जनित परिलाभों का भुगतान करने का निर्देश दिया है.

यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र तथा न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने राज्य सरकार की विशेष अपील को निस्तारित करते हुए दिया है. अपील पर राज्य सरकार के अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता रामानंद पांडेय ने बहस की. मालूम हो कि याची की नियुक्ति सिंचाई विभाग में कनिष्ठ अभियंता के रूप में 1 जनवरी 1989 को की गई. वह बिना पद के दैनिक वेतन पर वर्षों तक कार्यरत रहा. 21फरवरी 97को कोर्ट ने न्यूनतम वेतन भुगतान पर सरकार को निर्णय लेने का निर्देश दिया.

इसके पालन में चीफ इंजीनियर ने 3 सितंबर 97 को न्यूनतम वेतन भुगतान का आदेश दिया किन्तु सेवा नियमित करने से इंकार कर दिया. जिसे सेवा अधिकरण में चुनौती दी गई.

कहा कि सेवा नियमितीकरण नियमावली लागू होने से पहले से वह कार्यरत है. नियमावली के तहत वह नियमित किये जाने का हकदार है. अधिकरण ने दावा स्वीकार कर लिया और याची को नियमित करने का आदेश दिया. इसके खिलाफ याचिका पर कोर्ट ने नियमावली 2001के तहत सरकार को विचार कर निर्णय लेने का का आदेश दिया.

31 दिसंबर 18 को याची को नियमित कर दिया गया. इसके बाद 30 सितंबर 20 को वह सेवानिवृत्त हो गया. उसकी दस साल की सेवा न पूरी होने के कारण जब पेंशन देने से इंकार कर दिया गया तो याचिका दायर की गई. एकल पीठ ने प्रेम सिंह केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत पेंशन आदि सेवानिवृत्ति परिलाभो का भुगतान करने का निर्देश दिया. इस आदेश को अपील में चुनौती दी गई थी.

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सरकार का कहना था कि 2021 में कानून संशोधित कर दिया गया. 1961से लागू किया गया है जिसके तहत नियमित रूप से नियुक्ति मामले को ही सेवा अवधि में शामिल किया जायेगा. याची का पद लोक सेवा आयोग की परिधि में आने वाला पल है क्योंकि याची की नियुक्ति नियमानुसार खाली पद पर नहीं की गई थी इसलिए उसकी दैनिक सेवाएं नहीं जोड़ी जाएगी. प्रेम सिंह केस इस मामले में लागू नहीं होगा. यह वर्क चार्ज कर्मचारियों के विषय में है. एकलपीठ ने 2020मे जारी अध्यादेश व 2021 में कानून संशोधन के उपबंधो पर विचार नहीं किया.

कोर्ट ने इस तर्क से सहमति व्यक्त की और कहा एकल पीठ ने गलती की है किन्तु सेवा नियमित करने के आदेश को चुनौती दिये बगैर सेवा नियमितीकरण नियमावली का लाभ देने से इंकार करने के तर्क को सही नहीं माना और कहा कि सेवा नियमित करने में देरी के लिए कर्मचारी को दोषी नहीं मान सकते. नियमावली के तहत नियमितीकरण उपबंधो का लाभ देते हुए परिलाभो का भुगतान किया जाए.

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