प्रयागराज: मथुरा वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी मंदिर में श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए कॉरिडोर बनाए जाने के लिए प्रदेश सरकार को मंदिर पक्ष का प्रस्ताव मंजूर नहीं है. सरकार स्वयं कॉरिडोर बनाना चाहती है. लेकिन, इसके लिए मंदिर पक्ष तैयार नहीं है. इस मामले को लेकर हाईकोर्ट में चली लंबी बहस के बाद बुधवार को अदालत ने अपना निर्णय सुरक्षित कर लिया है. मामले की सुनवाई मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर की अध्यक्षता वाली पीठ कर रही है.
बुधवार को प्रदेश सरकार की ओर से संवैधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए कहा गया कि जनता को सुरक्षा देने और धार्मिक हितों की रक्षा का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 और अनुच्छेद 25 में प्राप्त है. सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इन अधिकारों की रक्षा करें. इसके जवाब में मंदिर पक्ष की ओर से अधिवक्ता संजय गोस्वामी का कहना था कि दर्शनार्थियों की सुरक्षा का कोई खतरा नहीं है. अनुच्छेद 25 का अधिकार मंदिर पक्ष को भी है यह उनकी प्राइवेट प्रॉपर्टी है.
मंदिर एक प्राइवेट प्रॉपर्टी:सरकार को यहां सिर्फ कानून व्यवस्था की स्थिति को लेकर ही अधिकार है. यदि किसी प्रकार के कानून व्यवस्था की समस्या है, तो उसका समाधान पुलिस कर सकती है. मंदिर का प्रबंध अपने हाथ में लेने से किसी के अधिकार की सुरक्षा नहीं हो सकती. मंदिर पक्ष का यह भी कहना था कि यदि सरकार मंदिर की प्रॉपर्टी में किसी प्रकार का हस्तक्षेप ना करें, तो कॉरिडोर बनाने पर उनको कोई आपत्ति नहीं है. मंदिर पक्ष की ओर से यह भी दलील दी गई है कि मंदिर एक प्राइवेट प्रॉपर्टी है.
मंदिर को ट्रस्ट बनाकर के हड़पना चाह रही सरकारः वकील ने दलील दी कि सरकार इसे ना तो अधिग्रहण के द्वारा ले सकती है और ना ही संसद में कानून बनाकर ही इसे प्राप्त कर सकती है. मंदिर पक्ष की ओर से यह भी प्रस्ताव दिया गया कि सरकार उनको 10 एकड़ जमीन सर्किल रेट पर उपलब्ध करा दे, जिसका पैसा मंदिर पक्ष ही देगा. मंदिर पक्ष नया मंदिर सुविधाजनक तरीके से बनाने को तैयार है. मगर सरकार इसके लिए तैयार नहीं है. वह स्वयं कॉरिडोर बनाना चाहती है वह भी मंदिर के पैसे से. अधिवक्ता का यह भी कहना था कि सरकार इस मंदिर को ट्रस्ट बनाकर के हड़पना चाह रही है जो मंदिर सेवायतों को मंजूर नहीं है.
मंदिर के चारों ओर कॉरिडोर बनाने की मांगः गौरतलब है कि बांके बिहारी मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ होने और वहां पर व्यवस्था ठीक ना होने के कारण एक जनहित याचिका दाखिल कर मंदिर के चारों ओर कॉरिडोर बनाने की मांग की गई है. इस याचिका पर प्रदेश सरकार की ओर से प्रस्ताव दिया गया कि वह कॉरिडोर बनाने के लिए तैयार है तथा इसका पर आने वाला खर्च मंदिर की आमदनी से लिया जाएगा. सरकार के इस प्रस्ताव पर मंदिर का प्रबंध करने वाले सेवायत तैयार नहीं है. कोर्ट ने दोनों पक्षों की लंबी बहस सुनने के बाद अपना निर्णय सुरक्षित कर लिया है.
ज्ञानवापी मामले में सुनवाई टली: वहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को ज्ञानवापी-काशी विश्वनाथ मंदिर विवाद से जुड़ी याचिकाओं की सुनवाई एक दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दी. यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर ने दोनों पक्षों के वकीलों की सहमति पर दिया है. मुख्य न्यायाधीश की बेंच के समक्ष अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी की याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई होनी थी. इन याचिकाओं में पूजा स्थलों (विशेष प्रावधान) द्वारा वर्जित ज्ञानवापी मस्जिद में पूजा के अधिकार की मांग करने वाले हिंदू उपासकों के मुकदमों की वैधानिकता को चुनौती दी गई है. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने काशी विश्वनाथ-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद से संबंधित मामलों को किसी अन्य न्यायाधीश की पीठ से अपनी पीठ में स्थानांतरित करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया था.