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प्राचार्य एवं अध्यापकों की नियुक्ति का रास्ता साफ, हाईकोर्ट ने खारिज की राज्य सरकार की अपील - संस्कृत महाविद्यालयों में प्राचार्य और अध्यापकों की भर्ती

उत्तर प्रदेश के संस्कृत महाविद्यालयों में प्राचार्य और अध्यापकों की नियुक्ति का रास्ता साफ हो गया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को एकल पीठ के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार की अपील खारिज कर दी.

हाईकोर्ट ने खारिज की राज्य सरकार की अपील
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Published : Oct 18, 2019, 5:40 AM IST

प्रयागराज: प्रदेश के संस्कृत महाविद्यालयों में प्राचार्य और अध्यापकों की भर्ती प्राक्रिया पूरी करने की बाधा अब समाप्त हो गई है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले 10 साल से भर्ती पर लगी रोक हटाने के एकल पीठ के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार की अपील खारिज कर दी.

यह आदेश न्यायमूर्ति शशिकांत और तथा न्यायमूर्ति एसएस शमशेरी की खण्डपीठ ने राज्य सरकार की विशेष अपील पर दिया है. कोर्ट ने कहा कि जब तक सरकार पदों का सृजन और यूजीसी के मानकों के अनुसार वेतन निर्धारण नहीं कर लेती, तब तक विश्वविद्यालय की परिनियमावली के तहत भर्ती जारी रखी जाए.

अभी तक हाई स्कूल और इंटर कालेज (अध्यापक कर्मचारी वेतन भुगतान ) कानून 1971 के तहत वेतन दिया जा रहा है, जिसे यूजीसी के मानकों के अनुसार निर्धारित किया जाना है. राज्य सरकार ने 20 दिसम्बर 2001 में संस्कृत महाविद्यालयों के अध्यापकों की भर्ती उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग को सौंप दी थी. ये तय किया गया कि संस्कृत विद्यालयों में पदों के सृजन और वेतन का निर्धारण किया जाय.

इसे भी पढ़ें-प्रयागराज: छात्रसंघ बहाली को लेकर छात्रों का बवाल, पुलिस ने किया लाठीचार्ज

पिछले एक दशक से लगी थी नियुक्ति पर रोक
सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी की कार्यकारिणी ने परिनियम में संशोधन भी कर दिया. 18 साल बीत जाने के बाद भी पद सृजन और वेतन निर्धारण नहीं किया जा सका है. पिछले 10 साल से भर्ती भी रोक दी गई थी. सेवानिवृत्त और तदर्थ अध्यापकों से शिक्षण कार्य लिया जा रहा है. भर्ती पर रोक के 10 अक्टूबर 2018 के शासनादेश को त्रिवेणी संस्कृत महाविद्यालय द्वारा हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. कोर्ट ने शासनादेश रद्द कर दिया और विश्वविद्यालय के परिनियम के अनुसार भर्ती करने की छूट दी. 416 अध्यापकों और 68 प्राचार्यों की भर्ती शुरू की गई.

सरकार ने 19 मार्च 2010 के शासनादेश से इंटर कालेज का वेतनमान संस्कृत विद्यालयों पर लागू किया, जिसे संशोधित किया जाना है, ताकि अन्य विश्वविद्यालयों के समान पद और वेतन हो सके. कोर्ट ने संस्कृत महाविद्यालयों की संरचना में बदलाव किए बगैर भर्ती पर रोक लगाने को अनुच्छेद 14 के विपरीत माना. पद और वेतन तय होने तक विश्वविद्यालय की प्रथम परिनियमावली के अनुसार पदों की भर्ती जारी रखने के एकलपीठ के आदेश को सही करार दिया है. इससे खाली पदों को भरने में आ रही अड़चन समाप्त हो गई है.

प्रयागराज: प्रदेश के संस्कृत महाविद्यालयों में प्राचार्य और अध्यापकों की भर्ती प्राक्रिया पूरी करने की बाधा अब समाप्त हो गई है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले 10 साल से भर्ती पर लगी रोक हटाने के एकल पीठ के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार की अपील खारिज कर दी.

यह आदेश न्यायमूर्ति शशिकांत और तथा न्यायमूर्ति एसएस शमशेरी की खण्डपीठ ने राज्य सरकार की विशेष अपील पर दिया है. कोर्ट ने कहा कि जब तक सरकार पदों का सृजन और यूजीसी के मानकों के अनुसार वेतन निर्धारण नहीं कर लेती, तब तक विश्वविद्यालय की परिनियमावली के तहत भर्ती जारी रखी जाए.

अभी तक हाई स्कूल और इंटर कालेज (अध्यापक कर्मचारी वेतन भुगतान ) कानून 1971 के तहत वेतन दिया जा रहा है, जिसे यूजीसी के मानकों के अनुसार निर्धारित किया जाना है. राज्य सरकार ने 20 दिसम्बर 2001 में संस्कृत महाविद्यालयों के अध्यापकों की भर्ती उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग को सौंप दी थी. ये तय किया गया कि संस्कृत विद्यालयों में पदों के सृजन और वेतन का निर्धारण किया जाय.

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पिछले एक दशक से लगी थी नियुक्ति पर रोक
सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी की कार्यकारिणी ने परिनियम में संशोधन भी कर दिया. 18 साल बीत जाने के बाद भी पद सृजन और वेतन निर्धारण नहीं किया जा सका है. पिछले 10 साल से भर्ती भी रोक दी गई थी. सेवानिवृत्त और तदर्थ अध्यापकों से शिक्षण कार्य लिया जा रहा है. भर्ती पर रोक के 10 अक्टूबर 2018 के शासनादेश को त्रिवेणी संस्कृत महाविद्यालय द्वारा हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. कोर्ट ने शासनादेश रद्द कर दिया और विश्वविद्यालय के परिनियम के अनुसार भर्ती करने की छूट दी. 416 अध्यापकों और 68 प्राचार्यों की भर्ती शुरू की गई.

सरकार ने 19 मार्च 2010 के शासनादेश से इंटर कालेज का वेतनमान संस्कृत विद्यालयों पर लागू किया, जिसे संशोधित किया जाना है, ताकि अन्य विश्वविद्यालयों के समान पद और वेतन हो सके. कोर्ट ने संस्कृत महाविद्यालयों की संरचना में बदलाव किए बगैर भर्ती पर रोक लगाने को अनुच्छेद 14 के विपरीत माना. पद और वेतन तय होने तक विश्वविद्यालय की प्रथम परिनियमावली के अनुसार पदों की भर्ती जारी रखने के एकलपीठ के आदेश को सही करार दिया है. इससे खाली पदों को भरने में आ रही अड़चन समाप्त हो गई है.

प्रदेश के संस्कृत महाविद्यालयों के प्राचार्य व् अध्यापको की नियुक्ति का रास्ता खुला

पिछले एक दशक से लगी थी नियुक्ति पर रोक

हाई कोर्ट ने खारिज की राज्य सरकार की अपील

प्रयागराज 17 अक्टूबर
 प्रदेश के संस्कृत महाविद्यालयों के प्राचार्य व् अध्यापको की भर्ती प्राक्रिया पूरी करने की बाधा अब समाप्त हो गयी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले 10 साल से भर्ती पर लगी रोक हटाने के एकल पीठ के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार  की अपील खारिज कर दी है।
यह आदेश न्यायमूर्ति शशिकांत गुप्ता तथा न्यायमूर्ति एस एस शमशेरी की खण्डपीठ ने राज्य सरकार की विशेष अपील पर दिया है।कोर्ट ने कहा है कि जब तक सरकार पदों का सृजन व् यू जी सी मानकों के अनुसार वेतन निर्धारण नही कर लेती तब तक विश्वविद्यालय की परिनियमावली के तहत भर्ती जारी रखी जाय।अभी तक हाई स्कूल व् इंटर कालेज (अध्यापक कर्मचारी वेतन भुगतान )कानून 1971 के तहत वेतन दिया जा रहा है।जिसे यू जी सी के मानको के अनुसार निर्धारित किया जाना है।राज्य सरकार ने 20 दिसम्बर 2001 में संस्कृत महाविद्यालयों के अध्यापको की भर्ती उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग को सौप दी । और तय किया गया कि संस्कृत विद्यालयों में पदों के सृजन व् वेतन का निर्धारण किया जाय।सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी की कार्यकारिणी ने परिनियम में संशोधन भी कर दिया।किन्तु 18 साल बीत जाने के बाद भी पद सृजन व् वेतन निर्धारण नही किया जा सका।पिछले 10 साल से भर्ती भी रोक दी गयी।सेवानिवृत्त व् तदर्थ अध्यापको से शिक्षण कार्य लिया जा रहा है।
भर्ती पर रोक के 10 अक्टूबर 18 के  शासनादेश को त्रिबेणी संस्कृत महाविद्यालय द्वारा हाई कोर्ट में चुनौती दी गयी ।कोर्ट ने शासनादेश रद्द कर दिया और विश्विद्यालय के परिनियम के अनुसार भर्ती करने की छूट दी ।जिसे सरकार ने अपील में चुनौती दी गई थी।
मालूम हो कि 416 अध्यापको व् 68 प्राचार्यों की भर्ती शुरू की गयी।सरकार ने 19 मार्च 10 के शासनादेश से इंटर कालेज का वेतनमान संस्कृत विद्यालयों पर लागू किया।जिसे संशोधित किया जाना है।ताकि अन्य विश्वविद्यालयों के समान पद व् वेतन हो सके और आयोग से भर्ती हो सके।
कोर्ट ने संस्कृत  महाविद्यालयों की संरचना ने बदलाव किये बगैर भर्ती पर रोक लगाने को अनुच्छेद 14 के विपरीत माना और पद व् वेतन तय होने तक विश्वविद्यालय की प्रथम परिनियमावली के अनुसार पदों की भर्ती जारी रखने के एकलपीठ के आदेश को सही करार दिया।इससे ख़ाली पदों को भरने में आ रही अड़चन समाप्त हो गयी है।
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