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High court: भर/राजभर को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने को दो माह का समय और

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को भर एवं राजभर जातियों को एससी/एसटी का दर्जा देने को लेकर एक आदेश दिया है. चलिए जानते हैं इस बारे में.

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Published : Jul 14, 2023, 10:30 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को भर एवं राजभर जातियों को एससी/एसटी का दर्जा देने से जुड़े केंद्र सरकार के 11 अक्तूबर 2021 के पत्र के संदर्भ में चार माह में अपना प्रस्ताव केंद्र को भेजने के संदर्भ में दो माह का समय और दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने जागो राजभर जागो समिति की अवमानना याचिका पर अधिवक्ता अग्निहोत्री कुमार त्रिपाठी व स्थाई अधिवक्ता को सुनकर दिया है.

मामले के तथ्यों के अनुसार केंद्र सरकार ने 11 अक्तूबर 2021 को पत्र लिखकर राज्य सरकार से भर एवं राजभर जातियों को एससी/एसटी का दर्जा देने के संदर्भ में प्रस्ताव मांगा था. इस पत्र के जवाब में राज्य सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया तो हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई.

याचिका पर कोर्ट ने राज्य सरकार को दो माह 11 में प्रस्ताव भेजने का निर्देश दिया पर इस आदेश पर अमल नहीं किया गया. इसके बाद अवमानना याचिका पर हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव समाज कल्याण से हलफनामा मांगा. प्रमुख सचिव की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया कि राज्य सरकार को जातियों का अध्ययन करने के लिए और समय मिले.

कोर्ट ने चार माह की मोहलत देते हुए राज्य सरकार को निर्देशित किया कि अधिकतम चार माह के भीतर केंद्र को प्रस्ताव भेज दिया जाए. स्थाई अधिवक्ता ने इसके लिए दो माह का समय और मांगा तो कोर्ट ने सरकार को दो माह का समय देते हुए अवमानना याचिका को सुनवाई के लिए 18 सितंबर से शुरू होने वाले सप्ताह में सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया. समिति का कहना है कि भर एवं राजभर जातियां 1952 के पहले तक क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट के तहत आती थीं. वर्ष 1952 के बाद उन्हें विमुक्त जाति घोषित कर दिया गया जबकि क्रिमिनल ट्राइब्स में आने वाली अन्य जातियों को एससी/एसटी में शामिल कर लिया गया.

ये भी पढे़ंः मनोज राय हत्याकांड में मुख्तार अंसारी के खिलाफ कस्टडी रिमांड जारी

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को भर एवं राजभर जातियों को एससी/एसटी का दर्जा देने से जुड़े केंद्र सरकार के 11 अक्तूबर 2021 के पत्र के संदर्भ में चार माह में अपना प्रस्ताव केंद्र को भेजने के संदर्भ में दो माह का समय और दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने जागो राजभर जागो समिति की अवमानना याचिका पर अधिवक्ता अग्निहोत्री कुमार त्रिपाठी व स्थाई अधिवक्ता को सुनकर दिया है.

मामले के तथ्यों के अनुसार केंद्र सरकार ने 11 अक्तूबर 2021 को पत्र लिखकर राज्य सरकार से भर एवं राजभर जातियों को एससी/एसटी का दर्जा देने के संदर्भ में प्रस्ताव मांगा था. इस पत्र के जवाब में राज्य सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया तो हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई.

याचिका पर कोर्ट ने राज्य सरकार को दो माह 11 में प्रस्ताव भेजने का निर्देश दिया पर इस आदेश पर अमल नहीं किया गया. इसके बाद अवमानना याचिका पर हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव समाज कल्याण से हलफनामा मांगा. प्रमुख सचिव की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया कि राज्य सरकार को जातियों का अध्ययन करने के लिए और समय मिले.

कोर्ट ने चार माह की मोहलत देते हुए राज्य सरकार को निर्देशित किया कि अधिकतम चार माह के भीतर केंद्र को प्रस्ताव भेज दिया जाए. स्थाई अधिवक्ता ने इसके लिए दो माह का समय और मांगा तो कोर्ट ने सरकार को दो माह का समय देते हुए अवमानना याचिका को सुनवाई के लिए 18 सितंबर से शुरू होने वाले सप्ताह में सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया. समिति का कहना है कि भर एवं राजभर जातियां 1952 के पहले तक क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट के तहत आती थीं. वर्ष 1952 के बाद उन्हें विमुक्त जाति घोषित कर दिया गया जबकि क्रिमिनल ट्राइब्स में आने वाली अन्य जातियों को एससी/एसटी में शामिल कर लिया गया.

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