प्रयागराज : ज्ञानवापी परिसर के स्वामित्व विवाद को लेकर वाराणसी की अदालत में चल रहे डिक्लेरेशन सूट (कोर्ट द्वारा लिए गए फैसले के अगेंस्ट उच्च/हायर कोर्ट से की गई रिक्वेस्ट) की पोषणीयता को लेकर हाईकोर्ट में दाखिल याचिका पर मंगलवार को सुनवाई हुई. हिंदू और मुस्लिम पक्ष की ओर से इस मामले में अपने-अपने तर्क प्रस्तुत किए गए. प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के प्रावधानों के आलोक में भी दोनों पक्षों ने अपने-अपने तर्क रखे. सुनवाई गुरुवार को भी होनी है. सुनवाई न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल कर रहे हैं. सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड व अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी इस मामले को लेकर हाईकोर्ट पहुंचे हैं.
इस नियम के तहत दाखिल की गई थी आपत्ति : वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता का कहना था कि जिला न्यायालय में 1991 में दाखिल मुकदमे की पोषणीयता पर प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के तहत आदेश सात नियम 11 के तहत आपत्ति दाखिल की गई. अधीनस्थ अदालत में अर्जी निस्तारण की बजाय वाद बिंदुओं पर सुनवाई करने के आदेश को चुनौती दी गई. हाईकोर्ट ने 17 मार्च 2020 को अधीनस्थ अदालत में चल रही सुनवाई पर रोक लगा दी और मंदिर पक्ष से जवाब मांगा. उसके बाद दोनों पक्षों को सुनकर फैसला सुरक्षित कर लिया. इसी बीच वाराणसी की अदालत में एक अर्जी दाखिल हुई, जिस अदालत ने सर्वे का आदेश दिया. इसे भी हाईकोर्ट में याचिका के माध्यम से चुनौती दी गई. हाईकोर्ट ने सर्वे कराने के आदेश पर रोक लगा दी. इसी बीच अधीनस्थ अदालत के आदेश पर कोर्ट कमिश्नर भेजा गया. कमिश्नर के सर्वे में शिवलिंग आकृति सामने आई. सुप्रीम कोर्ट के आदेश से उस स्थान को सीज कर दिया गया. कोर्ट कमिश्नर की रिपोर्ट पर हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप न होने के बाद साइंटिफिक सर्वे किया जा रहा है. सर्वे का प्रकरण अर्थहीन हो चुका है. अब दीवानी मुकदमे की पोषणीयता पर सुनवाई की जानी है.
सात दिसंबर को होगी सुनवाई : मुस्लिम पक्ष की ओर से कहा गया कि 1936 में ज्ञानवापी मस्जिद में नमाज पढ़ने को लेकर दीन मोहम्मद ने राज्य सरकार के खिलाफ दीवानी मुकदमा दाखिल किया था. राहत न मिलने पर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई और हाईकोर्ट ने 1940 में फैसला दिया, जिसके बाद नमाज पढ़ने का अधिकार दिया गया है. कोर्ट ने कहा कि वह अलग मुद्दा था. वह फैसला इस मामले में बाध्यकारी नहीं होगा. आगे की सुनवाई सात दिसंबर को होगी.
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