शहर के झलवा इलाके में रहने वाली शगुन कांडपाल की मां जीवन्ति कांडपाल प्राथमिक विद्यालय पुराना लूकरगंज की प्रधानाचार्या थी जबकि पिता चंद्र मोहन कांडपाल केंद्रीय विद्यालय में जे एस ए के पद पर तैनात थे.अप्रैल महीने की शुरुआत तक उनके घर मे सब कुछ सही चल रहा था. लेकिन इसी महीने के दूसरे हफ्ते के दौरान घर मे कोरोना की दस्तक हो चुकी थी और 19 तारीख को जीवन्ति और उनके पति ने इलाज के दौरान अस्पताल में दम तोड़ दिया. जिसके बाद कोरोना संक्रमित होने के बाद उनकी छोटी बेटी ने भी 29 अप्रैल को दुनिया को अलविदा कह दिया. अब उस परिवार की एक ही सदस्य शगुन जिंदा बची हुई है जो अब अपने ताऊ के परिवार के साथ रह रही है.
कोरोना ने दस दिन में उजाड़ दिया भरा पूूरा परिवार प्राइमरी स्कूल में प्रिंसिपल रही शगुन की मां जीवन्ति अप्रैल के दूसरे हफ्ते में उस वक्त कोरोना संक्रमित हो गयी थी जब चुनाव ड्यूटी के संबंध में कार्य करने के लिए उन्हें घर से बाहर निकलना पड़ता था. 13 अप्रैल को उनकी हालत बिगड़ी तो उन्हें काफी मशक्कत के बाद रेलवे हॉस्पिटल में भर्ती करने के लिए भेजा गया. जहां पर 6 घंटे इंतज़ार करने के बाद उन्हें बेड मिला तो उनका इलाज शुरू हो सका. इलाज के दौरान ही शगुन के पिता भी संक्रमित हो चुके थे. उनकी तबियत भी 16 अप्रैल से बिगड़ने लगी जिसके बाद उन्हें एसआरएन हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया.जहां पर इलाज के दौरान 19 तारीख की सुबह चंद्र मोहन कांडपाल की मौत हो गयी.इसके साथ ही उसी रात अस्पताल में इलाज के दौरान जीवन्ति की सांसे भी थम थम गयीं. स्नातक की पढ़ाई कर रही शगुन को उसके माता पिता की मौत की जानकारी नहीं थी. शगुन के ताऊ उसे यही बताते रहे कि माता पिता का इलाज चल रहा है उनकी हालत गंभीर बनी हुई है. लेकिन उसी दौरान कोरोना संक्रमित हो चुकी शगुन की छोटी बहन को सांस लेने में दिक्कत होने पर उसे प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती करवाना पड़ा. जिसके बाद शगुन अपने घर को छोड़कर ताऊ के घर गयी तो वहां चल रहे शांति पाठ को देखकर उसे जानकारी मिली कि उसके माता पिता दोनों की मौत हो चुकी है. जिस माता-पिता ने लाड प्यार से पाला था उनका साया सर से एक साथ उठ जाने की जानकारी मिलने के बाद शगुन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. मां बाप की मौत की जानकारी मिलने के बाद से शगुन का रो रोकर बुरा हाल था. इसी बीच जानकारी मिली कि उसकी छोटी बहन का हालत भी लगातार बिगड़ती जा रही है.मां बाप को खोने वाली शगुन छोटी बहन की चिंताजनक हालात की जानकारी मिलने के बाद और भी परेशान हो गयी.29 अप्रैल को शगुन की छोटी बहन 19 साल की मोनिका की भी मौत हो गयी. जिसके बाद मां बाप का अंतिम दर्शन भी न कर पाने वाली शगुन अपनी छोटी बहन का अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए फाफामऊ श्मसान घाट तक गयी और बहन के अंतिम संस्कार में शामिल होकर उसे दुनिया से विदा किया. शगुन का कहना है कि उसके माता पिता दोनों ही शिक्षा विभाग में थे पंचायत चुनाव के ट्रेनिंग से पहले ही दोनों कोरोना संक्रमित हो गए और उनकी मौत भी हो गयी.लेकिन उसके बावजूद आज तक उनके घर विभाग की तरफ से कोई मदद करने के लिए आगे नहीं आया. सरकार द्वारा दिये जाने वाले मदद पाने के लिए शगुन अपने ताऊ के साथ सरकारी दफ्तरों के चक्कर भी लगा रही है लेकिन उसके बावजूद उन्हें सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं.लेकिन मां बाप और छोटी बहन को खोने वाली इस बेटी के लिए सिस्टम की तरत से कोई सहानुभूति नहीं मिल रही है.बल्कि माता पिता को खोने के बाद सरकार की तरफ से उसे मिलने वाले हक के लिए भी बाबुओं के चक्कर काटने पड़ रहे हैं.चुनाव ड्यूटी में जाने से पहले ही कोरोना संक्रमण की वजह से मौत के मुंह मे जा चुके इस दंपत्ति के परिवार की इकलौती बची बेटी को अभी तक सरकार की तरफ कोई मदद नहीं मिली है.जिसको लेकर समाजवादी पार्टी के एमएलसी मान सिंह का कहना है कि सरकार ने सैंकड़ो शिक्षकों की मौत के बाद उन्हें जो मुआवजा देने की बात कही है वो भी सिर्फ घोषणा साबित हो रही है. जिस भी शिक्षक की मौत हुई है उसके परिवार वालों को आर्थिक मदद पाने के लिए कागज़ी खानापूर्ती में ही ऐसा फंसाया जा रहा है कि उन्हें कुछ हासिल नहीं होगा.जिसको लेकर सपा एमएलसी का कहना है की जल्द ही मृतक शिक्षकों को उनका हक नहीं मिलता है तो आने वाले दिनों में शिक्षकों को उनका हक देने के लिए आंदोलन शुरू करेंगे.इसी तरह से शिक्षक नेताओं ने भी सरकार पर मुआवजा देने में देरी करने के साथ ही लापरवाही करने का आरोप लगाया है.शगुन के ताऊ मदन मोहन कांडपाल का कहना है कि उनके छोटे भाई व उसकी पत्नी दोनों शिक्षा विभाग में कार्यरत थे.लेकिन उनकी मौत के बाद सरकार की तरफ से अभी तक कोई मदद नहीं मिल सकी है. इसके साथ ही उन्हें इस बात का भी अफसोस है कि सही समय पर उनके भाई व उसकी पत्नी को इलाज नहीं मिल सका था.जिस वजह से घर से जब उनकी हालत ज्यादा बिगड़ चुकी तब कहीं जाकर उन्हें अस्पताल में भर्ती होने के लिए जगह मिली थी.