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प्रयागराज: सोमेश्वर महादेव के दर्शन मात्र से मिलती है क्षय रोग से मुक्ति

यूपी के प्रयागराज जिले स्थित सोमेश्वर महादेव मंदिर में सावन के महीने में श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगती है. ऐसी मान्यता है कि मंदिर में दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं को क्षय रोग से मुक्ति मिल जाती है.

सोमेश्वर महादेव मंदिर.
सोमेश्वर महादेव मंदिर.
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Published : Jul 20, 2020, 7:12 PM IST

प्रयागराज: संगमनगरी प्रयागराज को धर्म नगरी भी कहा जाता है. यहां पर भगवान शिव के कई मंदिर और शिवालय स्थित है. ऐसी मान्यता है कि अरैल घाट स्थित भगवान शिव के मंदिर में दर्शन करने से भक्तों को परिवारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है. यह भी कहा जाता है कि यहां दर्शन मात्र से क्षय रोग से भी मुक्ति मिलती है. सोमेश्वर महादेव मंदिर की सबसे खास बात यह कि इस मंदिर को भगवान चन्द्रदेव ने स्थापित किया था. यहां आज भी शिवलिंग के ऊपर लगा मंदिर का त्रिशूल चंद्रमा की तरह पृथ्वी का चक्कर लगाता है. सावन के इस पवित्र महीने में सुबह से लेकर शाम तक श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन के लिए मंदिर में आते हैं.

जानकारी देते महंत राजेन्द्र पुरी.

चंद्रदेव ने की थी मंदिर की स्थापना
मंदिर के पुजारी महंत श्री राजेन्द्र पुरी ने बताया कि कि सोमेश्वर नाथ मंदिर बहुत ही प्राचीन मंदिर है. मंदिर को स्थापित भगवान चन्द्रदेव ने किया था. जब पृथ्वी का विकास चल रहा था. उस समय राजा दक्ष्य ने चन्द्रदेव को श्राप दे दिया था, जिसकी वजह से भगवान चन्द्रदेव क्षयरोग से ग्रसित हो गए थे. इसी रोग से मुक्ति पाने के लिए चन्द्रदेव पृथ्वी पर आकर प्रयागराज पहुंचे और भगवान शिव की शिवलिंग बनाकर चंद्रकुण्ड में नियमित एक महीने स्नान करने के बाद शिवलिंग का जलाभिषेक किया करते थे. एक महीना नियमित पूजा पाठ करने से चन्द्रदेव छय रोग से मुक्त हो गए. तब से ऐसी मान्यता है कि चंद्रकुण्ड में स्नान करने के बाद नियमित भगवान सोमेश्वर नाथ के दर्शन करने से शारिरिक कष्टों से मुक्ति मिलती है.

पृथ्वी का चक्कर लगाता है महादेव का त्रिशूल

महंत राजेन्द्र पुरी ने जानकारी देते हुए बताया कि चन्द्रदेव भगवान राजा दक्ष्य के श्राप से मुक्ति पाने के लिए पृथ्वी लोक में आकर दक्षिण दिशा में संगम में स्नान करते थे. तभी से इस कुंड का नाम चंद्रकुण्ड हो गया. इसके बाद बालू बनाए शिवलिंग में जलाभिषेक करते थे. आज उसी शिवलिंग को सोमेश्वर नाथ के नाम से जाना जाता है. मंदिर की सबसे खास बात यह है कि जिस तरह से चंद्रमा पृथ्वी का चक्कर लगाता है. उसी तरह से शिवलिंग ठीक ऊपर लगे त्रिशूल आज भी पृथ्वी का चक्कर लगाता है. 15 दिन के बाद त्रिशूल की दिशा परिवर्तित होती है.

सावन के दिनों में होती है विशेष पूजा
मंदिर के महंत ने जानकारी देते हुए बताया कि सावन के इस पवित्र महीने में भगवान शिव का पूजा पाठ होता है. ऐसे में सभी शिव शिवालय में विशेष पूजा होती है. अरैल घाट स्थित सोमेश्वर नाथ मंदिर में हर दिन विशेष पूजा-अर्चना और भगवान शिव का विशेष श्रृंगार किया जाता है. महादेव के इस मंदिर में दर्शन के लिए दूर-दूर से भक्त आते हैं.

इसे भी पढ़ें- प्रयागराज: पुलिस मुठभेड़ में 25 हजार का इनामी बदमाश गिरफ्तार

प्रयागराज: संगमनगरी प्रयागराज को धर्म नगरी भी कहा जाता है. यहां पर भगवान शिव के कई मंदिर और शिवालय स्थित है. ऐसी मान्यता है कि अरैल घाट स्थित भगवान शिव के मंदिर में दर्शन करने से भक्तों को परिवारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है. यह भी कहा जाता है कि यहां दर्शन मात्र से क्षय रोग से भी मुक्ति मिलती है. सोमेश्वर महादेव मंदिर की सबसे खास बात यह कि इस मंदिर को भगवान चन्द्रदेव ने स्थापित किया था. यहां आज भी शिवलिंग के ऊपर लगा मंदिर का त्रिशूल चंद्रमा की तरह पृथ्वी का चक्कर लगाता है. सावन के इस पवित्र महीने में सुबह से लेकर शाम तक श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन के लिए मंदिर में आते हैं.

जानकारी देते महंत राजेन्द्र पुरी.

चंद्रदेव ने की थी मंदिर की स्थापना
मंदिर के पुजारी महंत श्री राजेन्द्र पुरी ने बताया कि कि सोमेश्वर नाथ मंदिर बहुत ही प्राचीन मंदिर है. मंदिर को स्थापित भगवान चन्द्रदेव ने किया था. जब पृथ्वी का विकास चल रहा था. उस समय राजा दक्ष्य ने चन्द्रदेव को श्राप दे दिया था, जिसकी वजह से भगवान चन्द्रदेव क्षयरोग से ग्रसित हो गए थे. इसी रोग से मुक्ति पाने के लिए चन्द्रदेव पृथ्वी पर आकर प्रयागराज पहुंचे और भगवान शिव की शिवलिंग बनाकर चंद्रकुण्ड में नियमित एक महीने स्नान करने के बाद शिवलिंग का जलाभिषेक किया करते थे. एक महीना नियमित पूजा पाठ करने से चन्द्रदेव छय रोग से मुक्त हो गए. तब से ऐसी मान्यता है कि चंद्रकुण्ड में स्नान करने के बाद नियमित भगवान सोमेश्वर नाथ के दर्शन करने से शारिरिक कष्टों से मुक्ति मिलती है.

पृथ्वी का चक्कर लगाता है महादेव का त्रिशूल

महंत राजेन्द्र पुरी ने जानकारी देते हुए बताया कि चन्द्रदेव भगवान राजा दक्ष्य के श्राप से मुक्ति पाने के लिए पृथ्वी लोक में आकर दक्षिण दिशा में संगम में स्नान करते थे. तभी से इस कुंड का नाम चंद्रकुण्ड हो गया. इसके बाद बालू बनाए शिवलिंग में जलाभिषेक करते थे. आज उसी शिवलिंग को सोमेश्वर नाथ के नाम से जाना जाता है. मंदिर की सबसे खास बात यह है कि जिस तरह से चंद्रमा पृथ्वी का चक्कर लगाता है. उसी तरह से शिवलिंग ठीक ऊपर लगे त्रिशूल आज भी पृथ्वी का चक्कर लगाता है. 15 दिन के बाद त्रिशूल की दिशा परिवर्तित होती है.

सावन के दिनों में होती है विशेष पूजा
मंदिर के महंत ने जानकारी देते हुए बताया कि सावन के इस पवित्र महीने में भगवान शिव का पूजा पाठ होता है. ऐसे में सभी शिव शिवालय में विशेष पूजा होती है. अरैल घाट स्थित सोमेश्वर नाथ मंदिर में हर दिन विशेष पूजा-अर्चना और भगवान शिव का विशेष श्रृंगार किया जाता है. महादेव के इस मंदिर में दर्शन के लिए दूर-दूर से भक्त आते हैं.

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