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माघ मेले में आए कल्पवासियों में बढ़ी मिट्टी के चूल्हे की डिमांड - माघ मेले में मिट्टी के चूल्हे की बढ़ी डिमांड

प्रयागराज में 10 जनवरी से माघ मेले का शुभारंभ हो चुका है. मेला क्षेत्र में कल्पवासियों ने कल्पवास करना शुरू कर दिया है. कल्पवासी मिट्टी के चूल्हे में सात्विक भोजन तैयार करना पसंद कर रहे हैं.

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माघ मेले में मिट्टी के चूल्हे की बढ़ी डिमांड.
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Published : Jan 17, 2020, 8:51 AM IST

Updated : Jan 17, 2020, 9:06 AM IST

प्रयागराज: माघ मेले का शुभारंभ 10 जनवरी से हो गया है. मेला क्षेत्र में कल्पवासी भी कल्पवास करना शुरू कर दिये हैं. एक माह तक चलने वाले इस मेले में कल्पवासी मिट्टी के चूल्हे में सात्विक भोजन तैयार करते हैं. माघ मेले शुरू होने के साथ ही मेला क्षेत्र में मिट्टी के चूल्हे और गोबर के कंडे की डिमांड बढ़ जाती है.

माघ मेले में मिट्टी के चूल्हे की बढ़ी डिमांड.

दारागंज घाट पर बसे कुम्हार तीन माह पहले से ही कल्पवासियों के मिट्टी चूल्हे और गोबर का कांडा बनाने लगते हैं. मेले शुरू होने के साथ ही अंत तक कल्पवासी मिट्टी के चूल्हे में खाना तैयार करते हैं और पूरे माह सात्विक भोजन करते हैं.

तीन माह पहले से शुरू होता है काम
माघ मेले शुरू होने से तीन माह पहले से ही दारागंज घाट पर 20 से अधिक महिलाएं मिट्टी के चूल्हे और गोबर के कंडे बनाने का काम करती हैं. इसके साथ मेला क्षेत्र में जबसे कल्पवासियों का आगमन होता है तब से ही मिट्टी के चूल्हे और गोबर के कंडे की बिक्री शुरू हो जाती है.

बाहर से आने वाले स्नानार्थी भी करते हैं खरीददारी
माघ मेले में जितने भी स्नान पर्व पड़ते हैं. उस स्नान पर्व पर आने वाले श्रद्धालु भी खरीददारी करते हैं और स्नान के दिन रात को और दिन में खाना बनाते हैं.

इसे भी पढ़ें- प्रयागराज: UPPSC के दो विषयों का परिणाम घोषित नहीं होने पर छात्रों का अनशन जारी

मिट्टी का चूल्हा है परंपरागत
कुंभ हो, अर्ध कुम्भ हो या फिर माघ मेला हो जितने भी कल्पवासी आते हैं, सभी मिट्टी के चूल्हे में खाना बनाकर खान-पान करते हैं. कल्पवासियों की परंपरा है कि माघ मेले में सादा जीवन व्यतीत करना और मिट्टी के बने चूल्हे में खाना बनाकर सुबह-शाम खाना चाहिए. माघ मेले की शुरुआत से ही मिट्टी के चूल्हे की डिमांड कल्पवासियों में हो जाती है. इसलिए पीढ़ी दर पीढ़ी माघ मेले शुरू होने से पहले यही काम किया जाता है.

प्रयागराज: माघ मेले का शुभारंभ 10 जनवरी से हो गया है. मेला क्षेत्र में कल्पवासी भी कल्पवास करना शुरू कर दिये हैं. एक माह तक चलने वाले इस मेले में कल्पवासी मिट्टी के चूल्हे में सात्विक भोजन तैयार करते हैं. माघ मेले शुरू होने के साथ ही मेला क्षेत्र में मिट्टी के चूल्हे और गोबर के कंडे की डिमांड बढ़ जाती है.

माघ मेले में मिट्टी के चूल्हे की बढ़ी डिमांड.

दारागंज घाट पर बसे कुम्हार तीन माह पहले से ही कल्पवासियों के मिट्टी चूल्हे और गोबर का कांडा बनाने लगते हैं. मेले शुरू होने के साथ ही अंत तक कल्पवासी मिट्टी के चूल्हे में खाना तैयार करते हैं और पूरे माह सात्विक भोजन करते हैं.

तीन माह पहले से शुरू होता है काम
माघ मेले शुरू होने से तीन माह पहले से ही दारागंज घाट पर 20 से अधिक महिलाएं मिट्टी के चूल्हे और गोबर के कंडे बनाने का काम करती हैं. इसके साथ मेला क्षेत्र में जबसे कल्पवासियों का आगमन होता है तब से ही मिट्टी के चूल्हे और गोबर के कंडे की बिक्री शुरू हो जाती है.

बाहर से आने वाले स्नानार्थी भी करते हैं खरीददारी
माघ मेले में जितने भी स्नान पर्व पड़ते हैं. उस स्नान पर्व पर आने वाले श्रद्धालु भी खरीददारी करते हैं और स्नान के दिन रात को और दिन में खाना बनाते हैं.

इसे भी पढ़ें- प्रयागराज: UPPSC के दो विषयों का परिणाम घोषित नहीं होने पर छात्रों का अनशन जारी

मिट्टी का चूल्हा है परंपरागत
कुंभ हो, अर्ध कुम्भ हो या फिर माघ मेला हो जितने भी कल्पवासी आते हैं, सभी मिट्टी के चूल्हे में खाना बनाकर खान-पान करते हैं. कल्पवासियों की परंपरा है कि माघ मेले में सादा जीवन व्यतीत करना और मिट्टी के बने चूल्हे में खाना बनाकर सुबह-शाम खाना चाहिए. माघ मेले की शुरुआत से ही मिट्टी के चूल्हे की डिमांड कल्पवासियों में हो जाती है. इसलिए पीढ़ी दर पीढ़ी माघ मेले शुरू होने से पहले यही काम किया जाता है.

Intro:
प्रयागराज: माघ मेले में आये कल्पवासियों मेंबढ़ा मिट्टी के चूल्हे का डिमांड, क्या है मिट्टी के बने चूल्हे की महत्व

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प्रयागराज: माघ मेले का शुभारंभ 10 जनवरी से हो गया है. मेला क्षेत्र में कल्पवासी भी कल्पवास करना शुरू कर दिया है. एक माह तक चलने वाले इस मेले में कल्पवासी मिट्टी के चूल्हा में स्वतिक भोजन तैयार करते हैं. माघ मेले शुरू होने के साथ ही मेला क्षेत्र में मिट्टी के चूल्हा और गोबर कंडे की डिमांड बढ़ जाती है. दारागंज घाट पर बसे कुम्हार तीन माह पहले से ही कल्पवासियों के मिट्टी चूल्हे और गोबर का कांडा बनाने लगते हैं. मेले शुरू होने के साथ ही अंत तक कल्पवासी मिट्टी के चूल्हे में खाना तैयार करते हैं और पूरे माह स्वतिक जीवन व्यतीत करते हैं.


Body:तीन माह पहले से शुरू होता है काम

कुम्हार फ़ोटो ने जानकारी देते हुए बताया कि माघ मेले शुरू होने से तीन माह पहले से ही दारागंज घाट पर 20 से अधिक महिलाएं मिट्टी के चूल्हे और गोबर का कांडा बनाने का काम करते हैं. इसके साथ मेला क्षेत्र में जब से कल्पवासियों का आगमन होता है तब से ही मिट्टी के चूल्हे और गोबर की कंडे की बिक्री शुरू हो जाती है.


Conclusion:बाहर से आने वाले स्नानार्थी भी करते हैं खरीददारी

मिट्टी के चूल्हे बनाने वाली फ़ोटो ने जानकारी देते हुए बताया कि माघ मेले में जितने भी स्नान पर्व पडते हैं उस स्नान पर्व पर आने वाले श्रद्धालु भी खरीददारी करते हैं और स्नान के दिन रात को और दिन में खाना बनाते हैं.

मिट्टी का चूल्हा है परंपरागत

कुम्हार जानकारी देते हुयव बताया कि कुम्भ हो,अर्ध कुम्भ हो यह फिर माघ मेले हो जितने भी कल्पवासी आते हैं, सभी मिट्टी के चूल्हे में खाना बनाकर खानपान करते हैं. कल्पवासियों की परंपरा है कि माघ मेले में सदा जीवन व्यतीत करना और मिट्टी के बने चूल्हे में खाना बनाकर सुबह-शाम खाना. माघ मेले की शुरुआत से ही मिट्टी के चूल्हे की डिमांड कल्पवासियों में हो जाती है. इसलिए पीढ़ी दर पीढ़ी माघ मेले शुरू होने से पहले यही काम किया जाता है.

बातचीत- कुम्हार कारीगर फ़ोटो
Last Updated : Jan 17, 2020, 9:06 AM IST
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