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जानिये, भिक्षा मांगकर जीवन बिताने वाले अघोरियों की क्या है इच्छा - संगम नगरी

प्रयागराज में संगम किनारे पीपल के पेड़ के नीचे भस्म लगाकर भिक्षा मांगने वाले अघोरी बाबा हर रोज भिक्षा मांगने निकल जाते हैं. वहीं इन अघोरियों का कहना है कि हम तो भिक्षा मांगकर जीवन-यापन कर लेते हैं, लेकिन हमारे परिवार का भविष्य खतरे में है. ऐसे में सरकार को उनके लिए कुछ ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है.

अघोरी बाबाओं ने सरकार से की बेहरत भविष्य की मांग.
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Published : Jul 8, 2019, 3:26 PM IST

प्रयागराज: संगम के किनारे साधुओं का जमावड़ा लगाना कोई आम बात नहीं है. घाट के किनारे सुबह होते ही गंगा में स्नान करने के लिए साधू-महात्मा तो आते ही हैं, वहीं संगम किनारे एक ऐसा पीपल का पेड़ भी है, जहां सुबह होते ही अघोरी बाबाओं का जमावड़ा लगना शुरू हो जाता है. पेड़ के नीचे चिलम दहकती है और अघोरी बाबा भस्म लगाए श्रृंगार कर भिक्षा मांगने के लिए निकल पड़ते हैं.

अघोरी बाबाओं ने सरकार से की बेहतर भविष्य की मांग.

भिक्षा मांगकर करते हैं जीवन यापन

  • बाबा सिद्धि नाथ के अनुसार ये लोग मजबूरी की वजह से अपने परिवार का मोह त्यागकर बाबा बनते हैं.
  • अपने शरीर पर काले वस्त्र धारण कर चेहरे पर भस्म लगाकर भिक्षा मांगते हैं.
  • दिनभर में जो कुछ मिलता है, उसी से अपना पेट पालते हैं.
  • सभी बाबा सुबह होते ही चिलम दहकाते हैं और शरीर पर भस्म लगाते हैं.
  • इसके साथ ही माथे पर तिलक लगाकर, हाथ में कमंडल लिए भिक्षा मांगने निकल जाते हैं.
  • हर सुबह सभी बाबा पीपल के पेड़ नीचे एकत्रित होकर भगवान शिव की आराधना भी करते हैं.

सभी बाबाओं को यही उम्मीद है कि जिस तरह दुनिया बदल रही है, उसी तरह बाबाओं के हित में सरकार कुछ कार्य करेगी. हम अपने परिवार को त्याग कर जीवन व्यतीत करते हैं. सरकार को हमारे लिए कुछ न कुछ करना चाहिए, जिससे हमारी पीढ़ी में कुछ सुधार हो सके.
-बाबा सिद्धि नाथ, अघोरी

प्रयागराज: संगम के किनारे साधुओं का जमावड़ा लगाना कोई आम बात नहीं है. घाट के किनारे सुबह होते ही गंगा में स्नान करने के लिए साधू-महात्मा तो आते ही हैं, वहीं संगम किनारे एक ऐसा पीपल का पेड़ भी है, जहां सुबह होते ही अघोरी बाबाओं का जमावड़ा लगना शुरू हो जाता है. पेड़ के नीचे चिलम दहकती है और अघोरी बाबा भस्म लगाए श्रृंगार कर भिक्षा मांगने के लिए निकल पड़ते हैं.

अघोरी बाबाओं ने सरकार से की बेहतर भविष्य की मांग.

भिक्षा मांगकर करते हैं जीवन यापन

  • बाबा सिद्धि नाथ के अनुसार ये लोग मजबूरी की वजह से अपने परिवार का मोह त्यागकर बाबा बनते हैं.
  • अपने शरीर पर काले वस्त्र धारण कर चेहरे पर भस्म लगाकर भिक्षा मांगते हैं.
  • दिनभर में जो कुछ मिलता है, उसी से अपना पेट पालते हैं.
  • सभी बाबा सुबह होते ही चिलम दहकाते हैं और शरीर पर भस्म लगाते हैं.
  • इसके साथ ही माथे पर तिलक लगाकर, हाथ में कमंडल लिए भिक्षा मांगने निकल जाते हैं.
  • हर सुबह सभी बाबा पीपल के पेड़ नीचे एकत्रित होकर भगवान शिव की आराधना भी करते हैं.

सभी बाबाओं को यही उम्मीद है कि जिस तरह दुनिया बदल रही है, उसी तरह बाबाओं के हित में सरकार कुछ कार्य करेगी. हम अपने परिवार को त्याग कर जीवन व्यतीत करते हैं. सरकार को हमारे लिए कुछ न कुछ करना चाहिए, जिससे हमारी पीढ़ी में कुछ सुधार हो सके.
-बाबा सिद्धि नाथ, अघोरी

Intro: संगमनगरी के इस पीपल के पेड़ के नीचे दहकती है चिलम, लगता है अघोरियों का जमावड़ा

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( सुमित यादव)

प्रयागराज: संगमनगरी के किनारे साधुओं का जमावड़ा लगाना कोई आम बात नहीं है. घाट के किनारे सुबह होते ही गंगा में स्नान करने के लिए साधू-महात्मा तो आते ही हैं. लेकिन संगम के किनारे एक ऐसा पीपल का पेड़ है, जहां सुबह होते ही अघोरी बाबाओं के जमावड़ा लगने लगता है. पेड़ के नीचे चिलम दहकती है और भस्म लगाकर अघोरी अपना श्रृंगार कर भिक्षा मांगने के लिए सड़क पर निकलते हैं. अघोरी बाबा सिद्धि नाथ का कहना है हम सभी अघोरी बाबाओं के कर्म में लिखा है भिक्षा मांगना, लेकिन सरकार को इस बात पर ध्यान देना होगा. जिस तरह दुनिया बदल रही है उसी तरह बाबाओं के हित में सरकार को कुछ कार्य करना चाहिए.






Body:भिक्षा मांगकर करते हैं जीवन यापन

बाबा सिद्धि नाथ का कहना है कि हमारी मजबूरी होती है इसलिए अपने परिवार का मोह त्यागकर बाबा बनते हैं. अपने शरीर पर काले वस्त्र धरण कर और चेहरे पर भस्म लगाकर भिक्षा मांगते हैं. दिनभर में जो कुछ मिलता है उसी से अपना पेट पालते है. हम सभी सुबह होते ही चिलम दहकते हैं और शरीर पर भस्म लगाते हैं. इसके साथ ही माथे पर तिलक लगाकर, हाथ में कमंडल लेकर भिक्षा मांगने जाते हैं. हर सुबह संगमनगरी के किनारे इसी पीपल के पेड़ नीचे एकत्रित होकर भगवान शिव की आराधना भी करते हैं.


Conclusion:सरकार बाबाओं के ऊपर दें ध्यान

बाबा सिद्धि नाथ का कहना है कि सरकार हम सभी बाबाओं की यही उम्मीद है कि जिस तरह दुनिया बदल रही है, उसी तरह बाबाओं के हित मे कुछ कार्य करें. हम अपने परिवार को त्याग कर जीवन व्यतीत करते हैं. सरकार को हमारे लिए कुछ न कुछ करना चाहिए. जिससे हमारे पीढ़ी में कुछ सुधार हो सकें.
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