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अब इस गांव में मजदूरी नहीं करते बच्चे, बाल श्रम से ऐसे मिली आजादी

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Published : Jun 12, 2021, 9:20 PM IST

प्रयागराज में नया सवेरा योजना के तहत बाल मजदूरी करने वाले बच्चों के भविष्य को संवारा जा रहा है. सभी गांवों के बच्चों को शिक्षा से जोड़कर स्कूल में उनको प्रवेश दिलाकर उन्हें बालश्रम से मुक्त किया जा रहा है.

प्रयागराज
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प्रयागराज: प्रत्येक साल 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है. हमारी भारतीय संस्कृति में यह कहावत भी है कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं, लेकिन एक तबका ऐसा भी है, जहां बच्चे पढ़ाई करने की उम्र में मजदूरी करने के लिए मजबूर हैं और वह रोजी-रोटी के लिए जोखिम भरा कार्य कर रहे हैं. ऐसे बच्चों को मुख्यधारा में लाने के लिए और उन्हें शिक्षा से जोड़ने के लिए विश्व बाल श्रम निषेध दिवस को मनाया जाता है. इसका उद्देश्य 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से श्रम न कराकर उन्हें शिक्षा दिलाकर जागरूक करना है.

2011 की जनगणना के मुताबिक, प्रयागराज में एक लाख से ऊपर बच्चों को बाल श्रम में दर्शाया गया था. इसको दृष्टिगत करते हुए प्रदेश सरकार की तरफ से नया सवेरा योजना साल 2018 में प्रदेश के पांच जिलों में शुरू की गई. इसमें एक प्रयागराज भी था. इसमें नया सवेरा के अंतर्गत सबसे पहले प्रयागराज के 2 विकास खंडों सैदाबाद और बहादुरपुर का चयन किया गया. बहादुरपुर विकासखंड के 4 ग्राम सभा मलावा बुजुर्ग, मलावा खुर्द, बजहा और कसेरूआ. इन 4 ग्राम सभाओं में गहन सर्वेक्षण डोर-टू-डोर चलाया गया और वर्ष 2019 में एक शिक्षा समिति का गठन किया गया. इसमें यह तय किया गया कि इस गांव में कोई भी बच्चा जो बाल श्रम कर रहा है, वह इससे दूर हो और शिक्षा से जुड़े इसके लिए विकासखंड स्तर पर एक कमेटी गठित की गई.

वाल श्रम से बच्चों को मिली मुक्ति.

भारत सरकार के द्वारा संचालित बाल श्रम स्कूलों में ऐसे सभी बच्चों का दाखिला कराया गया, जो किसी कारणवश बाल मजदूरी से जुड़ गए और स्कूलों में नहीं जा पाए थे. इन स्कूलों में इन्हें शिक्षा दिलाकर शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ा गया. परिषदीय स्कूलों में बाद में इनका दाखिला कराया गया. जून 2019 में नया सवेरा योजना के माध्यम से इसे बाल श्रम मुक्त इन 4 गांवों को घोषित कर दिया गया.

प्रयागराज के उप श्रम आयुक्त राकेश त्रिवेदी ने बताया कि ऐसे बच्चे जो बाल श्रम की ओर मुड़े हैं, उन्हें शिक्षा की ओर लाने के लिए विशेष स्कूल के माध्यम से प्रशिक्षण दिलाकर बाल श्रम से दूर करना है. ऐसे बच्चों को शिक्षित करने के लिए सरकार के द्वारा दो तरह की योजनाएं चलाई जा रही हैं. पहली योजना नया सवेरा है उसमें ऐसे बच्चों को चिह्नित किया जाता है, जहां 50 से अधिक बच्चे बाल श्रम से जुड़े हैं. वहां पर ऐसे सभी गांवों के बच्चों को शिक्षा से जोड़कर स्कूल में उनका प्रवेश दिलाकर उन्हें बालश्रम से मुक्त किया जा रहा है.

अभी तक प्रयागराज में ऐसे 25 गांवों को बाल श्रम मुक्त घोषित किया गया है, जहां पर बच्चे बाल श्रम से जुड़े हुए थे. दूसरी ओर राष्ट्रीय बाल श्रम योजना के तहत एक विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जाता है. यहां ऐसे बच्चों का चयन किया जाता है जो बच्चे कक्षा एक, 2 या 3 में पढ़ने लायक नहीं है. उन्हें ब्रिज कोर्स के माध्यम से सीधे कक्षा 5 में प्रवेश दिलाया जाता है. जनपद में ऐसे प्रशिक्षण के लिए कुल 54 केंद्र खोले गए हैं, जहां पर ऐसे बच्चों के चयन की प्रक्रिया चल रही है.


बाल श्रम से मुक्त हो चुकी ग्राम सभाओं के बच्चों और उनके माता-पिता का कहना है कि आर्थिक तंगी के चलते वह मजदूरी करने के लिए विवश हैं. शिक्षा जैसी मुख्यधारा से नहीं जुड़े थे, लेकिन श्रम विभाग के अधिकारियों और उनकी मदद से आज वह शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं और इसके महत्व को भी जान रहे हैं. बच्चों का कहना है कि अब हम लिख-पढ़कर के अच्छा कार्य करेंगे. अपने भविष्य का निर्माण करेंगे. वहीं अभिभावकों का कहना है कि श्रम विभाग के द्वारा बच्चों की लिखाई-पढ़ाई के लिए आर्थिक मदद भी मुहैया कराई गई है, जिससे हम अपने बच्चों को आसानी से शिक्षा दिला पा रहे हैं.

इसे भी पढ़ें:गडकरी की फिसली जुबान, बोले- खुशी है लोगों को ऑक्सीजन की कमी के कारण गंवानी पड़ी जान

प्रयागराज: प्रत्येक साल 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के रूप में मनाया जाता है. हमारी भारतीय संस्कृति में यह कहावत भी है कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं, लेकिन एक तबका ऐसा भी है, जहां बच्चे पढ़ाई करने की उम्र में मजदूरी करने के लिए मजबूर हैं और वह रोजी-रोटी के लिए जोखिम भरा कार्य कर रहे हैं. ऐसे बच्चों को मुख्यधारा में लाने के लिए और उन्हें शिक्षा से जोड़ने के लिए विश्व बाल श्रम निषेध दिवस को मनाया जाता है. इसका उद्देश्य 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से श्रम न कराकर उन्हें शिक्षा दिलाकर जागरूक करना है.

2011 की जनगणना के मुताबिक, प्रयागराज में एक लाख से ऊपर बच्चों को बाल श्रम में दर्शाया गया था. इसको दृष्टिगत करते हुए प्रदेश सरकार की तरफ से नया सवेरा योजना साल 2018 में प्रदेश के पांच जिलों में शुरू की गई. इसमें एक प्रयागराज भी था. इसमें नया सवेरा के अंतर्गत सबसे पहले प्रयागराज के 2 विकास खंडों सैदाबाद और बहादुरपुर का चयन किया गया. बहादुरपुर विकासखंड के 4 ग्राम सभा मलावा बुजुर्ग, मलावा खुर्द, बजहा और कसेरूआ. इन 4 ग्राम सभाओं में गहन सर्वेक्षण डोर-टू-डोर चलाया गया और वर्ष 2019 में एक शिक्षा समिति का गठन किया गया. इसमें यह तय किया गया कि इस गांव में कोई भी बच्चा जो बाल श्रम कर रहा है, वह इससे दूर हो और शिक्षा से जुड़े इसके लिए विकासखंड स्तर पर एक कमेटी गठित की गई.

वाल श्रम से बच्चों को मिली मुक्ति.

भारत सरकार के द्वारा संचालित बाल श्रम स्कूलों में ऐसे सभी बच्चों का दाखिला कराया गया, जो किसी कारणवश बाल मजदूरी से जुड़ गए और स्कूलों में नहीं जा पाए थे. इन स्कूलों में इन्हें शिक्षा दिलाकर शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ा गया. परिषदीय स्कूलों में बाद में इनका दाखिला कराया गया. जून 2019 में नया सवेरा योजना के माध्यम से इसे बाल श्रम मुक्त इन 4 गांवों को घोषित कर दिया गया.

प्रयागराज के उप श्रम आयुक्त राकेश त्रिवेदी ने बताया कि ऐसे बच्चे जो बाल श्रम की ओर मुड़े हैं, उन्हें शिक्षा की ओर लाने के लिए विशेष स्कूल के माध्यम से प्रशिक्षण दिलाकर बाल श्रम से दूर करना है. ऐसे बच्चों को शिक्षित करने के लिए सरकार के द्वारा दो तरह की योजनाएं चलाई जा रही हैं. पहली योजना नया सवेरा है उसमें ऐसे बच्चों को चिह्नित किया जाता है, जहां 50 से अधिक बच्चे बाल श्रम से जुड़े हैं. वहां पर ऐसे सभी गांवों के बच्चों को शिक्षा से जोड़कर स्कूल में उनका प्रवेश दिलाकर उन्हें बालश्रम से मुक्त किया जा रहा है.

अभी तक प्रयागराज में ऐसे 25 गांवों को बाल श्रम मुक्त घोषित किया गया है, जहां पर बच्चे बाल श्रम से जुड़े हुए थे. दूसरी ओर राष्ट्रीय बाल श्रम योजना के तहत एक विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाया जाता है. यहां ऐसे बच्चों का चयन किया जाता है जो बच्चे कक्षा एक, 2 या 3 में पढ़ने लायक नहीं है. उन्हें ब्रिज कोर्स के माध्यम से सीधे कक्षा 5 में प्रवेश दिलाया जाता है. जनपद में ऐसे प्रशिक्षण के लिए कुल 54 केंद्र खोले गए हैं, जहां पर ऐसे बच्चों के चयन की प्रक्रिया चल रही है.


बाल श्रम से मुक्त हो चुकी ग्राम सभाओं के बच्चों और उनके माता-पिता का कहना है कि आर्थिक तंगी के चलते वह मजदूरी करने के लिए विवश हैं. शिक्षा जैसी मुख्यधारा से नहीं जुड़े थे, लेकिन श्रम विभाग के अधिकारियों और उनकी मदद से आज वह शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं और इसके महत्व को भी जान रहे हैं. बच्चों का कहना है कि अब हम लिख-पढ़कर के अच्छा कार्य करेंगे. अपने भविष्य का निर्माण करेंगे. वहीं अभिभावकों का कहना है कि श्रम विभाग के द्वारा बच्चों की लिखाई-पढ़ाई के लिए आर्थिक मदद भी मुहैया कराई गई है, जिससे हम अपने बच्चों को आसानी से शिक्षा दिला पा रहे हैं.

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