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51 साल से कोलकाता के कलाकार यहां बना रहे हैं देवी दुर्गा की प्रतिमा

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Published : Oct 10, 2021, 12:51 PM IST

कोरोना की मार के बाद एक बार फिर मां आदिशक्ति की भक्ति में प्रयागराज लीन नजर आ रहा है. जिले भर में नवरात्र की खुमारी देखते बन रही है तो वहीं, अब मंडपों में मां दुर्गा की प्रतिमाएं बैठाए जाने के बाद यहां दर्शन को भक्तों की भीड़ उमड़ रही है. लेकिन इन सब के बीच आयोजकों की ओर से कोरोना को लेकर जारी नियमों के पालन को कतारों पर खासा जोर दिया जा रहा है.

51 साल से कोलकाता के कलाकार यहां बना रहे हैं देवी दुर्गा की प्रतिमा
51 साल से कोलकाता के कलाकार यहां बना रहे हैं देवी दुर्गा की प्रतिमा

प्रयागराज: कोरोना की मार के बाद एक बार फिर मां आदिशक्ति की भक्ति में प्रयागराज लीन नजर आ रहा है. जिले भर में नवरात्र की खुमारी देखते बन रही है तो वहीं, अब मंडपों में मां दुर्गा की प्रतिमाएं बैठाए जाने के बाद यहां दर्शन को भक्तों की भीड़ उमड़ रही है. लेकिन इन सब के बीच आयोजकों की ओर से कोरोना को लेकर जारी नियमों के पालन को कतारों पर खासा जोर दिया जा रहा है. इधर, कुछ पूजा समिति के सदस्यों ने खुद ही अबकी मंडपों को तैयार किया है तो कुछ बंगाल से आए मंडप कलाकारों से माता रानी का दरबार बनवाए. लेकिन इन सब के बीच खास बात यह रही कि अबकी यहां ज्यादातर मंडप थीम आधारित बने, जिन्हें देखने को भक्तों की भीड़ उमड़ रही है. साथ ही स्थानीय व पश्चिम बंगाल से आए मूर्तिकारों की गढ़ी माता रानी की मूर्तियां भी लोगों को खासा आकर्षित कर रही हैं.

बता दें कि आयोजन समितियों की ओर से शहर के भुंजवा मोहल्ला, टिकुरिया टोला, महादेवा, पतेरी, लालता चौक, पन्नीलाल चौक, बिरला रोड सहित कई स्थानों पर नौ दिनों तक शक्ति स्वरूपा शेरावाली की प्रतिमा स्थापित कर विधिवत पूजा अर्चना की जाती रही है और अबकी भी पूरी तमाम सावधानियों को देखते हुए पूजा की जा रही है.

51 साल से कोलकाता के कलाकार यहां बना रहे हैं देवी दुर्गा की प्रतिमा

इसे भी पढ़ें - मां दुर्गा बनीं डॉक्टर, राक्षस रूपी कोरोना का करेंगी वध

वहीं, जिले की पूजा आयोजन कमेटियों ने एक से बढ़कर एक मंडपों का निर्माण कराया है. इधर, औरों से पृथक व आकर्षक मंडप निर्माण को जयस्तंभ चौक सहित सहित कई अन्य आयोजकों ने अबकी मंडप कलाकारों से पंडाल का निर्माण करवाया है और इन मंडपों की खास बात यह है कि ये मंडपे थीम के आधार पर बनी हैं.

हालांकि, कोलकाता से आए मूर्तिकारों की मानें तो अबकी मूर्ति निर्माण में लगने वाले समानों की कीमत में भारी इजाफा होने से पहले की तुलना में लाभ का अंश कम हो गया है और इसका सबसे बड़ा कारण कोरोना रहा है. कोरोना के कारण कई तरह की दिक्कतें उत्पन्न होने से आयोजक भी अब पहले की तरह बड़े पैमाने पर आयोजन को न कर छोटे आकार की मूर्तियों पर जोर दे रहे हैं.

वहीं एक मूर्तिकार ने बताया कि अबकी एक फीट से लेकर 7 फीट तक की मूर्तिया बनाई गई हैं. कोरोना काल में आर्थिक संकट झेलने के बाद इस साल मूर्तिकारों में उम्मीद जगी है. बता देंकि कोलकाता से आए कलाकार संगमनगरी में बसेरा बनाकर देवी मां की प्रतिमाओं को यहां बनाते हैं और ये कलाकार यहां पिछले 51 सालों से आ रहे हैं.

इकोफ्रेंडली हैं देवी दुर्गा मूर्तियां

कोलकाता से आए मूर्तिकार तापस पॉल ने बताया कि अबकी हमने वातावरण को ध्यान में रखते हुए इकोफ्रेंडली दुर्गा मूर्तियों का निर्माण किया है. साथ ही मूर्तियों को रंगने के लिए हमने अच्छी देसज रंगों (केमिकल फ्री) का इस्तेमाल किया है, ताकि विसर्जन के दौरान नदियों पर रंगों का कोई प्रभाव न पड़े.

अब जगी उम्मीद

मूर्तिकार तापस पॉल ने कहा कि 2020 में कोरोना की वजह से दुर्गा प्रतिमा का धंधा चौपट हो गया था. कलाकारों के लिए घर चलाना मुश्किल हो गया था. मूर्ति की बिक्री न होने से लगभग 20 लाख तक का नुकसान झेलना पड़ा था. लेकिन अबकी बहुत अधिक तो नहीं, पर मूर्तियों की बिक्री से होने से कुछ हद तक ही सही पर हमने राहत की सांस ली है. उन्होंने कहा कि छह महीने पहले ही हम कोलकाता से प्रयागराज चले आए थे और मूर्ति निर्माण कार्य में जुट गए थे. अबकी कोलकाता से कुल 17 कलाकार आए हैं, जिन्होंने मूर्ति निर्माण को मूर्त रूप देने का काम किया है.

प्रयागराज: कोरोना की मार के बाद एक बार फिर मां आदिशक्ति की भक्ति में प्रयागराज लीन नजर आ रहा है. जिले भर में नवरात्र की खुमारी देखते बन रही है तो वहीं, अब मंडपों में मां दुर्गा की प्रतिमाएं बैठाए जाने के बाद यहां दर्शन को भक्तों की भीड़ उमड़ रही है. लेकिन इन सब के बीच आयोजकों की ओर से कोरोना को लेकर जारी नियमों के पालन को कतारों पर खासा जोर दिया जा रहा है. इधर, कुछ पूजा समिति के सदस्यों ने खुद ही अबकी मंडपों को तैयार किया है तो कुछ बंगाल से आए मंडप कलाकारों से माता रानी का दरबार बनवाए. लेकिन इन सब के बीच खास बात यह रही कि अबकी यहां ज्यादातर मंडप थीम आधारित बने, जिन्हें देखने को भक्तों की भीड़ उमड़ रही है. साथ ही स्थानीय व पश्चिम बंगाल से आए मूर्तिकारों की गढ़ी माता रानी की मूर्तियां भी लोगों को खासा आकर्षित कर रही हैं.

बता दें कि आयोजन समितियों की ओर से शहर के भुंजवा मोहल्ला, टिकुरिया टोला, महादेवा, पतेरी, लालता चौक, पन्नीलाल चौक, बिरला रोड सहित कई स्थानों पर नौ दिनों तक शक्ति स्वरूपा शेरावाली की प्रतिमा स्थापित कर विधिवत पूजा अर्चना की जाती रही है और अबकी भी पूरी तमाम सावधानियों को देखते हुए पूजा की जा रही है.

51 साल से कोलकाता के कलाकार यहां बना रहे हैं देवी दुर्गा की प्रतिमा

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वहीं, जिले की पूजा आयोजन कमेटियों ने एक से बढ़कर एक मंडपों का निर्माण कराया है. इधर, औरों से पृथक व आकर्षक मंडप निर्माण को जयस्तंभ चौक सहित सहित कई अन्य आयोजकों ने अबकी मंडप कलाकारों से पंडाल का निर्माण करवाया है और इन मंडपों की खास बात यह है कि ये मंडपे थीम के आधार पर बनी हैं.

हालांकि, कोलकाता से आए मूर्तिकारों की मानें तो अबकी मूर्ति निर्माण में लगने वाले समानों की कीमत में भारी इजाफा होने से पहले की तुलना में लाभ का अंश कम हो गया है और इसका सबसे बड़ा कारण कोरोना रहा है. कोरोना के कारण कई तरह की दिक्कतें उत्पन्न होने से आयोजक भी अब पहले की तरह बड़े पैमाने पर आयोजन को न कर छोटे आकार की मूर्तियों पर जोर दे रहे हैं.

वहीं एक मूर्तिकार ने बताया कि अबकी एक फीट से लेकर 7 फीट तक की मूर्तिया बनाई गई हैं. कोरोना काल में आर्थिक संकट झेलने के बाद इस साल मूर्तिकारों में उम्मीद जगी है. बता देंकि कोलकाता से आए कलाकार संगमनगरी में बसेरा बनाकर देवी मां की प्रतिमाओं को यहां बनाते हैं और ये कलाकार यहां पिछले 51 सालों से आ रहे हैं.

इकोफ्रेंडली हैं देवी दुर्गा मूर्तियां

कोलकाता से आए मूर्तिकार तापस पॉल ने बताया कि अबकी हमने वातावरण को ध्यान में रखते हुए इकोफ्रेंडली दुर्गा मूर्तियों का निर्माण किया है. साथ ही मूर्तियों को रंगने के लिए हमने अच्छी देसज रंगों (केमिकल फ्री) का इस्तेमाल किया है, ताकि विसर्जन के दौरान नदियों पर रंगों का कोई प्रभाव न पड़े.

अब जगी उम्मीद

मूर्तिकार तापस पॉल ने कहा कि 2020 में कोरोना की वजह से दुर्गा प्रतिमा का धंधा चौपट हो गया था. कलाकारों के लिए घर चलाना मुश्किल हो गया था. मूर्ति की बिक्री न होने से लगभग 20 लाख तक का नुकसान झेलना पड़ा था. लेकिन अबकी बहुत अधिक तो नहीं, पर मूर्तियों की बिक्री से होने से कुछ हद तक ही सही पर हमने राहत की सांस ली है. उन्होंने कहा कि छह महीने पहले ही हम कोलकाता से प्रयागराज चले आए थे और मूर्ति निर्माण कार्य में जुट गए थे. अबकी कोलकाता से कुल 17 कलाकार आए हैं, जिन्होंने मूर्ति निर्माण को मूर्त रूप देने का काम किया है.

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