प्रयागराज: शुक्रवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि मृतक आश्रित कोटे में नियुक्त विधवा को पुनर्विवाह करने से नहीं रोका जा सकता. अनुच्छेद 21 के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मर्जी से विवाह या पुनर्विवाह करने का अधिकार है. इसके इस अधिकार में कटौती नहीं की जा सकती है.
नौकरी पर असर नहीं
कोर्ट ने कहा है कि मृतक आश्रित सेवा नियमावली में यह शर्त है कि जो भी आश्रित के रूप में नियुक्त होगा, वह मृतक के आश्रितों का भरण-पोषण करेगा. यदि आश्रितों का भरण-पोषण नहीं करता तो उसे नौकरी से हटाया जा सकता है. इस आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि आश्रित के रूप में नियुक्त यदि विवाह करता है, तो उसे सेवा से हटा दिया जाएगा. किसी को भी पुनर्विवाह करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता.
न्यायमूर्ति एसपी केशरवानी ने सुनाया आदेश
कोर्ट ने याची को अपने देवर के साथ पुनर्विवाह करने की पूरी छूट दी है, लेकिन कहा है कि वह हर महीने अपने वेतन का एक तिहाई अपनी सास को भुगतान करती रहेंगी. यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केशरवानी ने संतोषी की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है.
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याची के पति चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे. सेवाकाल में उनकी मृत्यु के बाद याची की मृतक आश्रित कोटे में नियुक्त की गई. उसने विभाग में अर्जी दी थी कि वह अपने देवर के साथ शादी करना चाहती है और अपनी सास का पालन-पोषण भी करती रहेंगी और एक तिहाई वेतन उनको देने के लिए तैयार है. विभाग ने उसकी अर्जी को नामंजूर कर दिया और कहा कि वह मृतक आश्रित सेवा नियमावली के तहत नियुक्त हुई है. इसलिए वह पुनर्विवाह नहीं कर सकती. जिस पर यह याचिका दाखिल की गई थी.
याची को शादी करने की छूट
कोर्ट ने कहा कि नियमावली के अंतर्गत केवल भरण-पोषण न करने पर सेवाएं समाप्त की जा सकती हैं. किंतु इसमें पुनर्विवाह करने पर सेवा समाप्त होने की शर्त नहीं है. संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मर्जी से जीवन जीने का अधिकार देता है और वह अपनी मर्जी से शादी कर सकता है. जिस पर किसी भी कानून के तहत रोक नहीं लगाई जा सकती. कोर्ट ने याची को अपने देवर के साथ शादी कर अपने परिवार के भरण-पोषण करने की पूरी छूट दी है.