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महिला से नहीं छीन सकते नाबालिग बच्चे की अभिरक्षा का अधिकार: हाईकोर्ट - प्रयागराज हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि कोई महिला तलाक लिए बिना दूसरे व्यक्ति के साथ रहने लगे तब भी उसे नाबालिग बच्चे की अभिरक्षा का अधिकार है. उसे उसके बच्चे की अभिरक्षा से वंचित नहीं किया जा सकता.

इलाहाबाद हाईकोर्ट.
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Published : Jan 5, 2021, 3:00 AM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि कोई महिला तलाक लिए बिना दूसरे व्यक्ति के साथ रहने लगे तब भी उसे नाबालिग बच्चे की अभिरक्षा का अधिकार है. उसे उसके बच्चे की अभिरक्षा से वंचित नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि तलाक लिए बिना महिला का किसी अन्य के साथ रहना कानून और समाज की नजर में गलत हो सकता है, लेकिन इससे एक मां का उसके बच्चे के जीवन में जो विशेष स्थान है, उसे कम नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि मां को उसके बच्चे से अलग करना बच्चे के विकास में गलत असर डाल सकता है.

यह निर्णय न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने कानपुर के रामकुमार गुप्ता की याचिका पर दिया. याची का कहना था कि उसकी पत्नी तलाक लिए बिना दूसरे व्यक्ति के साथ रहने लगी है, ऐसे में उसे उनके बेटे की अभिरक्षा मांगने का कोई अधिकार नहीं है. याची का कहना था कि बच्चे का नए घर में जीवन सुरक्षित नहीं होगा, इसलिए उसे पिता की अभिरक्षा में ही दिया जाए. दूसरी तरफ बच्चे की मां संयोगिता का कहना था कि याची अच्छा पिता नहीं है. वह अक्सर क्रूरता का व्यवहार करता है और इसी कारण उसने उसका घर छोड़ा है और दूसरे के साथ रह रही है.

उनका कहना था कि उनकी चिंता सिर्फ यह है कि बच्चे का भविष्य सुरक्षित रहेगा. बच्चा अपनी मां के साथ नए घर में सुरक्षित है. कोर्ट ने संयोगिता और उसके बच्चे से इस पर बात की. साथ ही कहा कि सारी परिस्थितियां जिस प्रकार सामने रखी गईं, उससे लगता है कि बच्चा नए परिवार में अपनी मां के साथ सुरक्षित रहेगा और उसकी भलीभांति देखभाल हो सकेगी.

बच्चा पिता की बजाय मां के साथ रहने पर ज्यादा सुरक्षित रहेगा. हालांकि कोर्ट ने पिता को दो महीने में एक बार बच्चे से मिलने की छूट भी दी है. साथ ही बच्चे की मां को निर्देश दिया है कि वह हर दो माह में किसी एक रविवार को उसके पिता से मिलाने उसे कानपुर ले जाएगी.

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि कोई महिला तलाक लिए बिना दूसरे व्यक्ति के साथ रहने लगे तब भी उसे नाबालिग बच्चे की अभिरक्षा का अधिकार है. उसे उसके बच्चे की अभिरक्षा से वंचित नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि तलाक लिए बिना महिला का किसी अन्य के साथ रहना कानून और समाज की नजर में गलत हो सकता है, लेकिन इससे एक मां का उसके बच्चे के जीवन में जो विशेष स्थान है, उसे कम नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि मां को उसके बच्चे से अलग करना बच्चे के विकास में गलत असर डाल सकता है.

यह निर्णय न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने कानपुर के रामकुमार गुप्ता की याचिका पर दिया. याची का कहना था कि उसकी पत्नी तलाक लिए बिना दूसरे व्यक्ति के साथ रहने लगी है, ऐसे में उसे उनके बेटे की अभिरक्षा मांगने का कोई अधिकार नहीं है. याची का कहना था कि बच्चे का नए घर में जीवन सुरक्षित नहीं होगा, इसलिए उसे पिता की अभिरक्षा में ही दिया जाए. दूसरी तरफ बच्चे की मां संयोगिता का कहना था कि याची अच्छा पिता नहीं है. वह अक्सर क्रूरता का व्यवहार करता है और इसी कारण उसने उसका घर छोड़ा है और दूसरे के साथ रह रही है.

उनका कहना था कि उनकी चिंता सिर्फ यह है कि बच्चे का भविष्य सुरक्षित रहेगा. बच्चा अपनी मां के साथ नए घर में सुरक्षित है. कोर्ट ने संयोगिता और उसके बच्चे से इस पर बात की. साथ ही कहा कि सारी परिस्थितियां जिस प्रकार सामने रखी गईं, उससे लगता है कि बच्चा नए परिवार में अपनी मां के साथ सुरक्षित रहेगा और उसकी भलीभांति देखभाल हो सकेगी.

बच्चा पिता की बजाय मां के साथ रहने पर ज्यादा सुरक्षित रहेगा. हालांकि कोर्ट ने पिता को दो महीने में एक बार बच्चे से मिलने की छूट भी दी है. साथ ही बच्चे की मां को निर्देश दिया है कि वह हर दो माह में किसी एक रविवार को उसके पिता से मिलाने उसे कानपुर ले जाएगी.

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