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गैर इरादतन हत्या का मामला, हाईकोर्ट ने घटाई युवती को जिंदा जलाने वालों की सजा - इलाहाबाद हाई कोर्ट की सुनवाई

गैर इरादतन हत्या के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने युवती को जिंदा जलाने वाले दो युवकों की सजा घटा दी है.

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Published : Oct 20, 2022, 11:03 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने युवती को जिंदा जला देने वाले दो युवकों को मिली उम्रकैद की सजा घटाकर दस वर्ष कर दी है. कोर्ट ने सत्र न्यायालय गाज़ियाबाद द्वारा दी गई जुर्माने की सजा को बरकरार रखा है.

सजा के खिलाफ अभियुक्त दीपक और पिंटू की अपील पर न्यायामूर्ति डॉ. केजे ठाकुर और न्यायामूर्ति नलिन कुमार श्रीवास्तव की खंड पीठ ने यह आदेश दिया. कोर्ट ने अपील पर सुनवाई करते हुए कहा कि मृतका द्वारा मजिस्ट्रेट के समक्ष दिया गया. मृत्यु पूर्व बयान पूरी तरह से सत्यापित है. कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि मामले के पक्ष द्रोही गवाहों के बयान को पूरी तरह से नाकारा नहीं जा सकता है. उनको उस सीमा तक स्वीकार किया जा सकता है, जिस सीमा तक गवाहों ने अभियोजन का समर्थन किया है. कोर्ट ने कहा कि यह मामला योजना बद्ध तरीके से की गई हत्या का नहीं है, बल्कि गैर इरादतन हत्या है. इसलिए अभियुक्तों को दस वर्ष के कारावास कि सजा सुनाई जाती है.

यह था मामला

गाजियाबाद के बाबूगढ़ थाना क्षेत्र के गढ़ी होशियार पुर के सुखपाल ने 16 जुलाई 2007 को रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि उसकी भतीजी अपने घर का काम कर रही, तभी गांव के दीपक और पिंटू घर में घुस आए और सी. डी. के सौ रुपये मांगने लगे. पिंटू ने युवती से पूछा कि उसके कुछ दिन पहले चिट्ठी लिखी थी, जिसका जवाब नहीं दिया. इस बात पर दोनों में बहस होने लगी और दीपक ने वही रखा मिट्टी का तेल पीड़िता पर उड़ेल दिया और उसे आग के हवाले कर दिया. घायल अवस्था में उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां 17 दिन बाद उसकी मौत हो गई.

यह भी पढ़ें: वर्क शॉप सुपरवाइजर के सेवानिवृत्ति की उम्र पर होगा विचार, हाईकोर्ट ने केजीएमयू प्रशासन को दिया आदेश

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने युवती को जिंदा जला देने वाले दो युवकों को मिली उम्रकैद की सजा घटाकर दस वर्ष कर दी है. कोर्ट ने सत्र न्यायालय गाज़ियाबाद द्वारा दी गई जुर्माने की सजा को बरकरार रखा है.

सजा के खिलाफ अभियुक्त दीपक और पिंटू की अपील पर न्यायामूर्ति डॉ. केजे ठाकुर और न्यायामूर्ति नलिन कुमार श्रीवास्तव की खंड पीठ ने यह आदेश दिया. कोर्ट ने अपील पर सुनवाई करते हुए कहा कि मृतका द्वारा मजिस्ट्रेट के समक्ष दिया गया. मृत्यु पूर्व बयान पूरी तरह से सत्यापित है. कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि मामले के पक्ष द्रोही गवाहों के बयान को पूरी तरह से नाकारा नहीं जा सकता है. उनको उस सीमा तक स्वीकार किया जा सकता है, जिस सीमा तक गवाहों ने अभियोजन का समर्थन किया है. कोर्ट ने कहा कि यह मामला योजना बद्ध तरीके से की गई हत्या का नहीं है, बल्कि गैर इरादतन हत्या है. इसलिए अभियुक्तों को दस वर्ष के कारावास कि सजा सुनाई जाती है.

यह था मामला

गाजियाबाद के बाबूगढ़ थाना क्षेत्र के गढ़ी होशियार पुर के सुखपाल ने 16 जुलाई 2007 को रिपोर्ट दर्ज कराई थी कि उसकी भतीजी अपने घर का काम कर रही, तभी गांव के दीपक और पिंटू घर में घुस आए और सी. डी. के सौ रुपये मांगने लगे. पिंटू ने युवती से पूछा कि उसके कुछ दिन पहले चिट्ठी लिखी थी, जिसका जवाब नहीं दिया. इस बात पर दोनों में बहस होने लगी और दीपक ने वही रखा मिट्टी का तेल पीड़िता पर उड़ेल दिया और उसे आग के हवाले कर दिया. घायल अवस्था में उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां 17 दिन बाद उसकी मौत हो गई.

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