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दो ग्राम विकास अधिका‌रियों के खिलाफ जारी वसूली आदेश रद्द

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राजकीय खजाने को क्षति पहुंचाने के आरोप में दो ग्राम विकास अधिका‌रियों के खिलाफ जारी वसूली आदेश रद्द कर दिया है. हाईकोर्ट ने संबंधित अधिकारी को छूट दी है कि वह नए सिरे से नियमानुसार प्रक्रिया अपनाकर कार्रवाई कर सकते हैं.

इलाहाबाद हाईकोर्ट.
इलाहाबाद हाईकोर्ट.
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Published : Feb 13, 2021, 10:30 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राजकीय खजाने को क्षति पहुंचाने के आरोप में दो ग्राम विकास अधिका‌रियों लता राजपूत और विशाल श्रीवास्तव विकासखंड बसरेहर इटावा के खिलाफ जारी वसूली आदेश रद्द कर दिया है. हाईकोर्ट ने संबंधित अधिकारी को छूट दी है कि वह नए सिरे से नियमानुसार प्रक्रिया अपनाकर कार्रवाई कर सकते हैं. ग्राम विकास अधिक‌ारियों ने यह कहते हुए हाईकोर्ट की शरण ली थी कि उनके खिलाफ पक्षपातपूर्ण ढंग से वसूली का आदेश पारित किया गया है. उनका पक्ष नहीं सुना गया. याचिका पर न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने सुनवाई की.


याचीगण के अधिवक्ता जेएन यादव का कहना था कि जिला विकास अधिकारी ने दस दिसंबर 2020 को याचीगण के खिलाफ राजकीय खजाने को क्षति पहुंचाने के आरोप में वेतन से वसूली का आदेश दिया. यह आदेश पारित करते समय विधिक प्रक्रिया एवं नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत का पालन नहीं किया गया. याचीगण को उनका पक्ष रखने का अवसर नहीं दिया गया. उ.प्र. पंचायत राज अधिनियम 1947 में दिए गए प्रावधानों का भी पालन नहीं किया गया है. अतः उक्त आदेश निरस्त किए जाने योग्य है. हाईकोर्ट ने वसूली आदेश रद्द करत‌े हुए नए सिरे से नियमानुसार कार्रवाई की छूट दी है.

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राजकीय खजाने को क्षति पहुंचाने के आरोप में दो ग्राम विकास अधिका‌रियों लता राजपूत और विशाल श्रीवास्तव विकासखंड बसरेहर इटावा के खिलाफ जारी वसूली आदेश रद्द कर दिया है. हाईकोर्ट ने संबंधित अधिकारी को छूट दी है कि वह नए सिरे से नियमानुसार प्रक्रिया अपनाकर कार्रवाई कर सकते हैं. ग्राम विकास अधिक‌ारियों ने यह कहते हुए हाईकोर्ट की शरण ली थी कि उनके खिलाफ पक्षपातपूर्ण ढंग से वसूली का आदेश पारित किया गया है. उनका पक्ष नहीं सुना गया. याचिका पर न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने सुनवाई की.


याचीगण के अधिवक्ता जेएन यादव का कहना था कि जिला विकास अधिकारी ने दस दिसंबर 2020 को याचीगण के खिलाफ राजकीय खजाने को क्षति पहुंचाने के आरोप में वेतन से वसूली का आदेश दिया. यह आदेश पारित करते समय विधिक प्रक्रिया एवं नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत का पालन नहीं किया गया. याचीगण को उनका पक्ष रखने का अवसर नहीं दिया गया. उ.प्र. पंचायत राज अधिनियम 1947 में दिए गए प्रावधानों का भी पालन नहीं किया गया है. अतः उक्त आदेश निरस्त किए जाने योग्य है. हाईकोर्ट ने वसूली आदेश रद्द करत‌े हुए नए सिरे से नियमानुसार कार्रवाई की छूट दी है.

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