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Allahabad High Court : हाईकोर्ट ने रोका हड़ताली बिजली कर्मचारियों के नेताओं का वेतन

उत्तर प्रदेश में विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के पदाधिकारियों का इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वेतन रोकने का आदेश दिया है. इसके साथ ही कोर्ट ने भविष्य में इस तरह की हड़ताल करने पर कड़ी कार्रवाई करने को कहा है.

उत्तर प्रदेश में
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Published : Mar 24, 2023, 9:24 PM IST

प्रयागराज: उत्तर प्रदेश में अपनी मांगों को पूरा न किए जाने के विरोध में 72 घंटे की हड़ताल करने वाले विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के 28 पदाधिकारियों का इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक माह का वेतन और पेंशन रोकने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा कि यह उन लोगों को एक प्रकार से चेतावनी देने वाली कार्रवाई है, जो कानून के राज को हतोत्साहित करना चाहते हैं. कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी है कि भविष्य में इस प्रकार की हड़ताल ना की जाए.

बिजली कर्मचारियों की 72 घंटे की हड़ताल से हुई परेशानी को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता विभु राय ने कोर्ट के समक्ष अर्जी दाखिल कर यह मामला उठाया था. इससे पूर्व हाईकोर्ट ने दिसंबर 2022 में बिजली कर्मचारियों की हड़ताल पर स्वत: संज्ञान लेते हुए आदेश पारित कर हड़ताल न करने का निर्देश दिया था. हाईकोर्ट ने नोटिस जारी कर कर्मचारी मोर्चा के पदाधिकारियों को तलब भी किया था. लेकिन आदेश के अनुपालन में कोई भी उपस्थित नहीं हुआ और ना ही कोई हलफनामा दाखिल किया गया. इस पर अदालत ने सभी पदाधिकारियों को जमानती वारंट जारी कर दिया था.

हाईकोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया बिजली कर्मचारियों ने राज्य सरकार द्वारा रोक लगाए जाने और अदालत के आदेश का उल्लंघन कर हड़ताल की है. हाईकोर्ट द्वारा 16 दिसंबर 2022 को नोटिस जारी किए जाने के बावजूद कोई भी कर्मचारी नेता अदालत में उपस्थित नहीं हुआ. इस प्रकार से अदालत के आदेश का असम्मान किया गया. यहां तक कि अदालत में हाजिर होने के बावजूद वह या आश्वासन देने को तैयार नहीं है कि भविष्य में हड़ताल नहीं की जाएगी. कोर्ट ने बिजली कर्मचारियों को यह भी चेतावनी दी है कि भविष्य में इस प्रकार का कार्य न करें. कोर्ट ने कहा कि यदि दोबारा ऐसी कोशिश की जाती है तो उसकी परिणति कानूनी परिणाम के रूप में होगी. कोर्ट ने कहा है कि निर्दोष जनता को परेशानी नहीं होनी चाहिए तथा अस्पताल, बैंक जैसी आवश्यक सेवाएं बाधित न की जाए.

मामले की सुनवाई कर रही कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश प्रितंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति एसडी सिंह की खंडपीठ ने कहा कि इससे पहले कि हम दोषी कर्मचारियों की जिम्मेदारी तय कर नुकसान की वसूली का आदेश पारित करें. उसके पहले ही नुकसान का सही आकलन होना जरूरी है. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को हलफनामा दाखिल कर उन क्षेत्रों के बारे में जानकारी देने को कहा है, जहां नुकसान हुआ है. उन सभी कर्मचारी यूनियन व कर्मचारियों की सूची देने का भी निर्देश दिया है. जिन्होंने संयुक्त कर्मचारी संघर्ष समिति को हड़ताल करने में सहयोग दिया ताकि नुकसान के लिए उन सभी को जिम्मेदार ठहराया जा सके. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि उनका यह आदेश कर्मचारी यूनियन पर किसी मुद्दे पर चर्चा, विचार विमर्श या बैठक करने पर रोक नहीं लगाता है. ना ही सरकार और उसके कर्मचारियों के बीच वार्ता पर किसी प्रकार की रोक होगी. अदालत इस मामले में दोनों पक्षों का हलफनामा दाखिल होने और कर्मचारी नेताओं की परेशानियों और असुविधाओं पर विचार करने के बाद अंतिम आदेश पारित करेगी.

अदालत ने नहीं मानी कर्मचारी नेताओं की दलील-कोर्ट ने विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के नेताओं की इस दलील को नहीं माना कि सरकार ने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया. इसलिए मजबूरी में उनको हड़ताल करनी पड़ी. कोर्ट ने कहा कि जीवन में कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जहां काम करने वाले कर्मचारी हड़ताल के बारे में सोच भी नहीं सकते हैं. क्योंकि यह आवश्यक सेवाओं को बाधित कर देगा. मांगों को बातचीत, प्रदर्शन अथवा किसी अन्य रास्ते से पूरा किया जा सकता है. निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए आम जनता का जीवन पंगु बना देने की इजाजत नहीं दी जा सकती है. कोर्ट अब इस मामले में 24 अप्रैल को सुनवाई करेगी.

यह भी पढ़ें-सर्राफा व्यवसायी की दुकान पर हथियार बंद चोरों ने बोला धावा, असफल होने पर की फायरिंग, एक घायल

प्रयागराज: उत्तर प्रदेश में अपनी मांगों को पूरा न किए जाने के विरोध में 72 घंटे की हड़ताल करने वाले विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के 28 पदाधिकारियों का इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक माह का वेतन और पेंशन रोकने का आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा कि यह उन लोगों को एक प्रकार से चेतावनी देने वाली कार्रवाई है, जो कानून के राज को हतोत्साहित करना चाहते हैं. कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी है कि भविष्य में इस प्रकार की हड़ताल ना की जाए.

बिजली कर्मचारियों की 72 घंटे की हड़ताल से हुई परेशानी को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता विभु राय ने कोर्ट के समक्ष अर्जी दाखिल कर यह मामला उठाया था. इससे पूर्व हाईकोर्ट ने दिसंबर 2022 में बिजली कर्मचारियों की हड़ताल पर स्वत: संज्ञान लेते हुए आदेश पारित कर हड़ताल न करने का निर्देश दिया था. हाईकोर्ट ने नोटिस जारी कर कर्मचारी मोर्चा के पदाधिकारियों को तलब भी किया था. लेकिन आदेश के अनुपालन में कोई भी उपस्थित नहीं हुआ और ना ही कोई हलफनामा दाखिल किया गया. इस पर अदालत ने सभी पदाधिकारियों को जमानती वारंट जारी कर दिया था.

हाईकोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टया बिजली कर्मचारियों ने राज्य सरकार द्वारा रोक लगाए जाने और अदालत के आदेश का उल्लंघन कर हड़ताल की है. हाईकोर्ट द्वारा 16 दिसंबर 2022 को नोटिस जारी किए जाने के बावजूद कोई भी कर्मचारी नेता अदालत में उपस्थित नहीं हुआ. इस प्रकार से अदालत के आदेश का असम्मान किया गया. यहां तक कि अदालत में हाजिर होने के बावजूद वह या आश्वासन देने को तैयार नहीं है कि भविष्य में हड़ताल नहीं की जाएगी. कोर्ट ने बिजली कर्मचारियों को यह भी चेतावनी दी है कि भविष्य में इस प्रकार का कार्य न करें. कोर्ट ने कहा कि यदि दोबारा ऐसी कोशिश की जाती है तो उसकी परिणति कानूनी परिणाम के रूप में होगी. कोर्ट ने कहा है कि निर्दोष जनता को परेशानी नहीं होनी चाहिए तथा अस्पताल, बैंक जैसी आवश्यक सेवाएं बाधित न की जाए.

मामले की सुनवाई कर रही कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश प्रितंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति एसडी सिंह की खंडपीठ ने कहा कि इससे पहले कि हम दोषी कर्मचारियों की जिम्मेदारी तय कर नुकसान की वसूली का आदेश पारित करें. उसके पहले ही नुकसान का सही आकलन होना जरूरी है. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को हलफनामा दाखिल कर उन क्षेत्रों के बारे में जानकारी देने को कहा है, जहां नुकसान हुआ है. उन सभी कर्मचारी यूनियन व कर्मचारियों की सूची देने का भी निर्देश दिया है. जिन्होंने संयुक्त कर्मचारी संघर्ष समिति को हड़ताल करने में सहयोग दिया ताकि नुकसान के लिए उन सभी को जिम्मेदार ठहराया जा सके. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि उनका यह आदेश कर्मचारी यूनियन पर किसी मुद्दे पर चर्चा, विचार विमर्श या बैठक करने पर रोक नहीं लगाता है. ना ही सरकार और उसके कर्मचारियों के बीच वार्ता पर किसी प्रकार की रोक होगी. अदालत इस मामले में दोनों पक्षों का हलफनामा दाखिल होने और कर्मचारी नेताओं की परेशानियों और असुविधाओं पर विचार करने के बाद अंतिम आदेश पारित करेगी.

अदालत ने नहीं मानी कर्मचारी नेताओं की दलील-कोर्ट ने विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के नेताओं की इस दलील को नहीं माना कि सरकार ने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया. इसलिए मजबूरी में उनको हड़ताल करनी पड़ी. कोर्ट ने कहा कि जीवन में कुछ क्षेत्र ऐसे हैं, जहां काम करने वाले कर्मचारी हड़ताल के बारे में सोच भी नहीं सकते हैं. क्योंकि यह आवश्यक सेवाओं को बाधित कर देगा. मांगों को बातचीत, प्रदर्शन अथवा किसी अन्य रास्ते से पूरा किया जा सकता है. निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए आम जनता का जीवन पंगु बना देने की इजाजत नहीं दी जा सकती है. कोर्ट अब इस मामले में 24 अप्रैल को सुनवाई करेगी.

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