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जौनपुर में दंगा कराने के आरोपी जावेद सिद्दीकी को रिहा करने का आदेश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जौनपुर में दलित बस्ती में आगजनी और दंगा फसाद के आरोपी जावेदी सिद्दीकी को रिहा करने का आदेश दिया है. याची के प्रत्यावेदन को सलाहकार परिषद के समक्ष नहीं रखना और परिषद द्वारा निरूद्धि का अनुमोदन करने के बाद प्रत्यावेदन निरस्त करने को कोर्ट ने विधि विरूद्ध करार दिया है.

allahabad high court ordered release of javed siddiqui
इलाहाबाद हाईकोर्ट.
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Published : Dec 7, 2020, 9:28 PM IST

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जौनपुर की दलितों की बस्ती में आगजनी व दंगा करने के आरोपी जावेद सिद्दीकी की रासुका के तहत निरूद्धि को अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया है. कोर्ट ने इसके साथ ही अन्य केस में वांछित न होने की दशा में जावेद को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया है. जावेद पर 75 से 80 लोगों की भीड़ के साथ भदेठी मलिन बस्ती को आग के हवाले करने, दंगा फसाद और मारपीट कर अफरा-तफरी फैलाने का आरोप है. इस घटना में कई लोग घायल हुए थे. कई जानवरों की जल कर मौत हो गई थी.

कोर्ट ने रद्द किया जिलाधिकारी का आदेश
कोर्ट ने जिलाधिकारी के 10 जुलाई 20 के याची को जेल में निरूद्ध करने के आदेश को इस आधार पर रद्द कर दिया कि अधिकारियों ने निरूद्धि के विरुद्ध याची के प्रत्यावेदन को तीन हफ्ते तक सलाहकार परिषद के समक्ष पेश नहीं किया और समय से पेश न करने का सही कारण भी नहीं बता सके. कोर्ट ने इसे याची को सुनवाई के अधिकार से वंचित रखना माना और कहा कि ऐसा करना संविधान के खिलाफ है. यह आदेश न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर तथा न्यायमूर्ति पीके श्रीवास्तव की खंडपीठ ने दिया है. याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता दया शंकर मिश्र व चंद्रकेश मिश्र ने याची की तरफ से बहस की.

क्या है पूरा मामला
मालूम हो कि 9 जून 20 को मलिन बस्ती के रवि, पवन, अतुल भैंस और बकरी चरा रहे थे. आरोपियों ने जातिसूचक गालियां दी. कहासुनी के बाद भीड़ गांव में घुस आई और दंगा फसाद करने लगे. गांव के 10 घर जला दिए गए. लोग जान बचाकर दूसरे गांव को भागे. कई लोग घायल हुए. कई मवेशी जल गए. घटना के बाद भारी पुलिस बल को गांव में तैनात किया गया. राजेश की शिकायत पर सराय ख्वाजा थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई है, जिसमें याची पर भीड़ के साथ दंगा करने का आरोप लगाया गया है.

20 जून को याची को मिली जमानत
याची को विशेष न्यायाधीश कोर्ट ने 20 जून को जमानत दे दी. इसके बाद 10 जुलाई को जिलाधिकारी जौनपुर ने रासुका के तहत निरूद्धि आदेश दिया. कोर्ट ने सलाहकार परिषद में वकील के मार्फत पक्ष रखने की अनुमति न देने को गलत नहीं माना. जिलाधिकारी की रासुका आदेश पारित करने मे संतुष्टि के प्रश्न पर कोर्ट ने कहा कि इसका परीक्षण वह नहीं कर सकता है. रासुका छः माह बढ़ाने को भी कोर्ट ने गलत नहीं माना. किन्तु याची के प्रत्यावेदन को सलाहकार परिषद के समक्ष नहीं रखना और परिषद द्वारा निरूद्धि का अनुमोदन करने के बाद प्रत्यावेदन निरस्त करने को कोर्ट ने विधि विरूद्ध करार दिया है. कोर्ट ने कहा कि ऐसा कर अनुच्छेद 21 की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मूल अधिकार का हनन किया गया है, जिसका पालन किया जाना चाहिए.

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जौनपुर की दलितों की बस्ती में आगजनी व दंगा करने के आरोपी जावेद सिद्दीकी की रासुका के तहत निरूद्धि को अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया है. कोर्ट ने इसके साथ ही अन्य केस में वांछित न होने की दशा में जावेद को तत्काल रिहा करने का आदेश दिया है. जावेद पर 75 से 80 लोगों की भीड़ के साथ भदेठी मलिन बस्ती को आग के हवाले करने, दंगा फसाद और मारपीट कर अफरा-तफरी फैलाने का आरोप है. इस घटना में कई लोग घायल हुए थे. कई जानवरों की जल कर मौत हो गई थी.

कोर्ट ने रद्द किया जिलाधिकारी का आदेश
कोर्ट ने जिलाधिकारी के 10 जुलाई 20 के याची को जेल में निरूद्ध करने के आदेश को इस आधार पर रद्द कर दिया कि अधिकारियों ने निरूद्धि के विरुद्ध याची के प्रत्यावेदन को तीन हफ्ते तक सलाहकार परिषद के समक्ष पेश नहीं किया और समय से पेश न करने का सही कारण भी नहीं बता सके. कोर्ट ने इसे याची को सुनवाई के अधिकार से वंचित रखना माना और कहा कि ऐसा करना संविधान के खिलाफ है. यह आदेश न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर तथा न्यायमूर्ति पीके श्रीवास्तव की खंडपीठ ने दिया है. याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता दया शंकर मिश्र व चंद्रकेश मिश्र ने याची की तरफ से बहस की.

क्या है पूरा मामला
मालूम हो कि 9 जून 20 को मलिन बस्ती के रवि, पवन, अतुल भैंस और बकरी चरा रहे थे. आरोपियों ने जातिसूचक गालियां दी. कहासुनी के बाद भीड़ गांव में घुस आई और दंगा फसाद करने लगे. गांव के 10 घर जला दिए गए. लोग जान बचाकर दूसरे गांव को भागे. कई लोग घायल हुए. कई मवेशी जल गए. घटना के बाद भारी पुलिस बल को गांव में तैनात किया गया. राजेश की शिकायत पर सराय ख्वाजा थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई है, जिसमें याची पर भीड़ के साथ दंगा करने का आरोप लगाया गया है.

20 जून को याची को मिली जमानत
याची को विशेष न्यायाधीश कोर्ट ने 20 जून को जमानत दे दी. इसके बाद 10 जुलाई को जिलाधिकारी जौनपुर ने रासुका के तहत निरूद्धि आदेश दिया. कोर्ट ने सलाहकार परिषद में वकील के मार्फत पक्ष रखने की अनुमति न देने को गलत नहीं माना. जिलाधिकारी की रासुका आदेश पारित करने मे संतुष्टि के प्रश्न पर कोर्ट ने कहा कि इसका परीक्षण वह नहीं कर सकता है. रासुका छः माह बढ़ाने को भी कोर्ट ने गलत नहीं माना. किन्तु याची के प्रत्यावेदन को सलाहकार परिषद के समक्ष नहीं रखना और परिषद द्वारा निरूद्धि का अनुमोदन करने के बाद प्रत्यावेदन निरस्त करने को कोर्ट ने विधि विरूद्ध करार दिया है. कोर्ट ने कहा कि ऐसा कर अनुच्छेद 21 की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मूल अधिकार का हनन किया गया है, जिसका पालन किया जाना चाहिए.

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