प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मेसर्स जय प्रकाश एसोसिएट्स (Allahabad High Court on JP Group) को यमुना एक्सप्रेस वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यीडा) का बकाया चुकाने के लिए यमुना एक्सप्रेस वे विकास क्षेत्र में विशेष विकास क्षेत्र परियोजना के तहत पहले से आवंटित एक हजार हेक्टेयर भूमि का कुछ हिस्सा बेचने के प्रस्ताव नामंजूर कर दिया है. कोर्ट ने कहा है कि आवंटन पहले ही रद्द हो चुका है, इसलिए ऐसी बिक्री की अनुमति नहीं दी जा सकती है.
जेपी ग्रुप पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह आदेश (Allahabad High Court on Jai Prakash Associates) मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर एवं सौमित्र दयाल सिंह की खंडपीठ ने दिया. साथी मेसर्स जय प्रकाश एसोसिएट्स की याचिका खारिज कर दी. यीडा को आवंटन रद्द करने के अधिकार के संदर्भ में कोर्ट ने पहले सुनवाई करते हुए अंतरिम आदेश में कहा था कि यीडा विवादित संपत्ति के किसी भी हिस्से को बेचने की अनुमति देने के लिए कोई अंतरिम राहत नहीं दे सकती. ऐसा करना आवंटन को रद्द करना होगा. कोर्ट ने यह भी कहा था कि अगर दोनों पक्ष आपस में समझौता कर लेते तो स्थिति अलग होती. मामले में जेपी ने आवंटित भूमि पर पट्टे के किराये और ब्याज के भुगतान में चूक की. इसीलिए 2019 में यीडा द्वारा एक हजार हेक्टेयर के लिए पट्टा विलेख रद्द कर दिया गया.
याची की ओर से कहा गया कि यीडा को करोड़ों का भुगतान पहले ही किया जा चुका है. 31 जुलाई 2017 तक 359.81 करोड़ रुपये बकाया था. कहा गया कि भूमि पर पहले ही पर्याप्त रूप से विकास किया गया था. इसीलिए संपूर्ण लीज डीड को रद्द करने का यीडा का निर्णय मनमानापूर्ण है. सुनवाई के दौरान याची की ओर से कहा गया कि याचिका लंबित रहने के दौरान 150 हेक्टेयर भूमि जेपी को बेचने के लिए वापस दे दी जाए और ऐसी बिक्री से प्राप्त धन को यीडा को हस्तांतरित कर दिया जाए.
शेष राशि न्यायालय द्वारा अंतिम निर्णय आने तक सुरक्षित रखा जाए. याची को ऋण प्रदान करने वाले बैंकों के संघ ने निस्तारण प्रस्ताव पर सहमति व्यक्त की थी. याची के वकील ने आरोप लगाया कि यीडा किसानों को भुगतान किए जाने वाले अतिरिक्त मुआवजे पर अतिरिक्त ब्याज वसूलने की कोशिश कर रहा है. उसने किसानों को कोई ब्याज नहीं दिया था. जवाब में यीडा के अधिवक्ता ने कहा कि आज तक किसानों को अतिरिक्त मुआवजे पर कोई ब्याज नहीं दिया गया है.
भविष्य में ऐसा हो सकता है. क्योंकि यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. याची की ओर से प्रस्तावित समझौते को यीडा की ओर से स्वीकार नहीं किया गया. इसके बदले में 10 प्रतिशत ब्याज की मांग की गई. न्यायालय ने कहा कि मामले में तीन वर्ष से यथास्थिति का आदेश है. अब और इस मामले में अंतरिम राहत दी जाने की आवश्यकता नहीं है. कोर्ट ने कहा कि याची को यीडा से बातचीत करने की अनुमति दी थी ताकि मामले का सहमति से निस्तारण हो सके. मामला सहमति से निपट नहीं सका, इसलिए इसमें अंतरिम आदेश बनाए रखना या करना या हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है.
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