प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है. कोर्ट ने कहा कि अनुशासनिक नियमावली कर्मचारी को गलती का दण्ड देने के लिए है. इसे कर्मचारी के वारिसों पर लागू नहीं किया जा सकता. कर्मचारी की मौत के बाद विभागीय कार्यवाही स्वतः समाप्त हो जायेगी. वैधानिक उत्तराधिकारियों पर इसका प्रभाव नही पड़ेगा.
कोर्ट ने कहा, कर्मचारी की मौत के बाद जांच कर सेवानिवृत्ति परिलाभों से कर्मी की देनदारी की वसूली नहीं की जा सकती. फंडामेंटल रूल्स 54 बी के तहत मृत कर्मचारी को कदाचार का दण्ड नहीं दिया जा सकता. साथ ही विभागीय कार्यवाही कर्मी के जीवनकाल में पूरी होनी चाहिए. मरने के बाद जवाबदेही दिखाकर उसके फंड,ग्रेच्युटी,पारिवारिक पेंशन आदि से कटौती नहीं की जा सकती.
कोर्ट ने खाद्य आपूर्ति विभाग वाराणसी के मार्केटिंग इंस्पेक्टर के वारिस को मिलने वाले परिलाभों से वसूली पर रोक लगा दी है. साथ ही वित्त नियंत्रक /मुख्य लेखाधिकारी खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति लखनऊ को 2 माह के भीतर 7 फीसदी ब्याज के साथ काटी गयी राशि वापस करने का निर्देश दिया है.
यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार ने कर्मी की विधवा (मृतक) राज किशोरी देवी की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है.
होई कोर्ट ने इस मामले पर दिया आदेश
मालूम हो कि वैद्यनाथ पांडेय वाराणसी में मार्केटिंग इंस्पेक्टर थे. सेवा निवृत्त होने के दो दिन पहले उन्हें निलंबित कर दिया गया और जांच बैठा दी गयी. उन पर 4 लाख 60 हजार 243 रुपये का विभाग को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाया गया. चार्जसीट दी गई, जवाब नहीं दे पाए. उससे पहले कर्मी की मौत हो गयी. विभाग ने जांच में दोषी करार दिया और कुल 4 लाख 6 हजार 236 रुपये की सेवानिवृत्ति परिलाभों से कटौती का आदेश हुआ, जिसे पत्नी ने चुनौती दी. उसकी भी मृत्यु हो गयी, तो बेटों ने पक्षकार बनकर याचिका जारी रखी. याची अधिवक्ता राजेश कुमार सिंह का कहना था कि कर्मी की मृत्यु के बाद विभागीय जांच नहीं हो सकती. एक पक्षीय जांच रिपोर्ट के आधार पर कटौती नहीं की जा सकती. मृत कर्मी को दोषी करार देने कानून के खिलाफ है. जीवित रहते कार्यवाही करनी चाहिए थी. वह भी सेवारत रहते हुए, ऐसा नहीं किया गया तो पूरी कार्यवाही अवैध है, रद्द किया जाय और बकाये पर 12 फीसद ब्याज दिलाया जाए. कोर्ट ने 7 फीसदी ब्याज के साथ भुगतान का आदेश दिया है.