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हाईकोर्ट ने जताई चिंता, कहा तथ्य छिपाना अदालत के साथ कपट है, ऐसा व्यक्ति दंड का हकदार है

न्यायिक मूल्यों में गिरावट पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चिंता जाहिर की है. हाईकोर्ट ने कहा है कि याचिका में तथ्य छिपाना, अदालत के साथ कपट है. ऐसा व्यक्ति अर्थदंड का हकदार है.

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Published : May 26, 2022, 8:51 PM IST

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इलाहाबाद हाईकोर्ट

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि याचिका में तथ्य छिपाना, अदालत के साथ कपट है. साफ हृदय से अदालत न आने वाला व्यक्ति राहत नहीं, अर्थदंड का हकदार है. कोर्ट ने कहा है कि आजादी के पहले से सत्य न्याय व्यवस्था का अभिन्न अंग है. लेकिन हाईकोर्ट ने चिंता जताई कि आजादी के बाद मूल्यों में बदलाव देखा जा रहा है. लोग निजी लाभ के लिए मुकदमेबाजी में झूठ का सहारा लेने में संकोच नहीं करते और तथ्य छिपाकर कोर्ट को गुमराह कर अपना हित चाहते हैं.

कोर्ट ने कहा पिछले 40 सालों में न्यायिक मूल्यों में काफी गिरावट आई है. वादकारी कोर्ट को गुमराह कर आदेश लेने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है. सच का वह सम्मान नहीं रहा. ऐसा वादकारी जिसने अपने गंदे हाथो से न्याय व्यवस्था को दूषित करने की कोशिश की, वह राहत का हकदार नहीं हो सकता. सच छिपाना और झूठ का सहारा लेना दोनों एक समान है.

बता दें कि कोर्ट ने 25 हजार रुपए का हर्जाना लगाते हुए एक जनहित याचिका खारिज कर दी है. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा है कि चार हफ्ते में हर्जाना राशि राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा किया जाए. यह आदेश मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति प्रकाश पांडिया की खंडपीठ ने हैदराबाद में साफ्टवेयर इंजीनियर की याचिका पर दिया है.

जनहित याचिका में आजमगढ़ जिले के बरहद थाना क्षेत्र के गांव में सस्ते गल्ले की दुकान के आवंटन में भ्रष्टाचार की जांच कराने और विपक्षी को आवंटित दुकान दूसरे को देने की मांग की गई थी. याची हैदराबाद से वीडियो कांफ्रेंसिंग से स्वयं बहस कर रहा था. सरकारी अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि इसी मांग को लेकर याची ने आपराधिक याचिका दायर की थी, जो खारिज कर दी गई. तथ्यों को छिपाकर यह जनहित याचिका दायर की गई थी. साथ ही हाईकोर्ट के नियमों का पालन नहीं किया गया. याची ने अपने बारे में पूरी जानकारी नहीं दी है.

यह भी पढ़ें- नौकरी के लिए केवल आवेदन देने भर से उम्मीदवार को कानूनी अधिकार नहीं मिल जाता : उच्चतम न्यायालय

जवाब में याची का कहना था कि यह याचिका सरकारी अधिकारियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ है. विपक्षी के खिलाफ नहीं है, इसलिए पिछली याचिका की जानकारी देना जरूरी नहीं है. कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि स्वच्छ हृदय से कोर्ट न आने वाले को राहत पाने का अधिकार नहीं है. वह पेनाल्टी का हकदार है. कोर्ट ने दोनों याचिकाओं को देखकर कहा कि प्रार्थना एक जैसी है. याची के खिलाफ विपक्षी ने एफआईआर दर्ज कराई थी. चार्जशीट दाखिल है. याची ने भी क्रॉस केस किया है. ये सारे तथ्य छिपाकर याचिका दायर की गई है.

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प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि याचिका में तथ्य छिपाना, अदालत के साथ कपट है. साफ हृदय से अदालत न आने वाला व्यक्ति राहत नहीं, अर्थदंड का हकदार है. कोर्ट ने कहा है कि आजादी के पहले से सत्य न्याय व्यवस्था का अभिन्न अंग है. लेकिन हाईकोर्ट ने चिंता जताई कि आजादी के बाद मूल्यों में बदलाव देखा जा रहा है. लोग निजी लाभ के लिए मुकदमेबाजी में झूठ का सहारा लेने में संकोच नहीं करते और तथ्य छिपाकर कोर्ट को गुमराह कर अपना हित चाहते हैं.

कोर्ट ने कहा पिछले 40 सालों में न्यायिक मूल्यों में काफी गिरावट आई है. वादकारी कोर्ट को गुमराह कर आदेश लेने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है. सच का वह सम्मान नहीं रहा. ऐसा वादकारी जिसने अपने गंदे हाथो से न्याय व्यवस्था को दूषित करने की कोशिश की, वह राहत का हकदार नहीं हो सकता. सच छिपाना और झूठ का सहारा लेना दोनों एक समान है.

बता दें कि कोर्ट ने 25 हजार रुपए का हर्जाना लगाते हुए एक जनहित याचिका खारिज कर दी है. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा है कि चार हफ्ते में हर्जाना राशि राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा किया जाए. यह आदेश मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति प्रकाश पांडिया की खंडपीठ ने हैदराबाद में साफ्टवेयर इंजीनियर की याचिका पर दिया है.

जनहित याचिका में आजमगढ़ जिले के बरहद थाना क्षेत्र के गांव में सस्ते गल्ले की दुकान के आवंटन में भ्रष्टाचार की जांच कराने और विपक्षी को आवंटित दुकान दूसरे को देने की मांग की गई थी. याची हैदराबाद से वीडियो कांफ्रेंसिंग से स्वयं बहस कर रहा था. सरकारी अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि इसी मांग को लेकर याची ने आपराधिक याचिका दायर की थी, जो खारिज कर दी गई. तथ्यों को छिपाकर यह जनहित याचिका दायर की गई थी. साथ ही हाईकोर्ट के नियमों का पालन नहीं किया गया. याची ने अपने बारे में पूरी जानकारी नहीं दी है.

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जवाब में याची का कहना था कि यह याचिका सरकारी अधिकारियों के भ्रष्टाचार के खिलाफ है. विपक्षी के खिलाफ नहीं है, इसलिए पिछली याचिका की जानकारी देना जरूरी नहीं है. कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि स्वच्छ हृदय से कोर्ट न आने वाले को राहत पाने का अधिकार नहीं है. वह पेनाल्टी का हकदार है. कोर्ट ने दोनों याचिकाओं को देखकर कहा कि प्रार्थना एक जैसी है. याची के खिलाफ विपक्षी ने एफआईआर दर्ज कराई थी. चार्जशीट दाखिल है. याची ने भी क्रॉस केस किया है. ये सारे तथ्य छिपाकर याचिका दायर की गई है.

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