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'यूपी लैंड रिकॉर्ड मैनुअल' को चुनौती देने वाली याचिका खारिज, कोर्ट ने याची पर 10 हजार रुपये का लगाया हर्जाना

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने यूपी लैंड रिकॉर्ड मैनुअल को चुनौती देने वाली जनहित याचिका दस हजार रुपये हर्जाना लगाते हुए खारिज कर दी है. इस याचिका में उत्तर प्रदेश भूमि रिकॉर्ड मैनुअल को उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 और राजस्व संहिता नियम 2016 के विरुद्ध मानते हुए असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई थी.

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Published : Apr 16, 2022, 10:32 PM IST

प्रयागराजः 'यूपी लैंड रिकॉर्ड मैनुअल' को चुनौती देने वाली याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट ने खारिज कर दी. कोर्ट ने याची पर 10 हजार रुपये का हर्जाना भी लगाया है. इस याचिका में उत्तर प्रदेश भूमि रिकॉर्ड मैनुअल को यूपी राजस्व संहिता, 2006 और राजस्व संहिता नियम, 2016 के विरुद्ध मानते हुए असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई थी. जस्टिस प्रीतिन्कर दिवाकर और जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने शैलेश कुमार मिश्रा की याचिका पर ये फैसला दिया है.

आपको बता दें कि यूपी भूमि अभिलेख नियमावली अभिलेखों की तैयारी और रखरखाव के लिए नियम और प्रक्रियाएं प्रदान करती है. वहीं दूसरी ओर यूपी राजस्व संहिता, 2006 को उत्तर प्रदेश राज्य में भूमि काश्तकार और भू-राजस्व से संबंधित कानून को समेकित और संशोधित करने, उससे जुड़े और उसके आनुषंगिक मामलों के लिए प्रख्यापित किया गया है. कोर्ट के सामने याची ने सामाजिक कार्यकर्ता और किसान के रूप में रुख किया था. उसके द्वारा यह तर्क दिया गया कि जनहित याचिका जनता के सामान्य हित के लिए यूपी भूमि अभिलेख नियमावली एक पुराना नियमावली है और यूपी राजस्व संहिता, 2006 के अनुसार नहीं है.

दूसरी ओर राज्य सरकार ने इस आधार पर जनहित याचिका का विरोध किया कि यूपी जनहित याचिका के रूप में दायर की गई रिट याचिका में भूमि रिकॉर्ड मैनुअल को चुनौती नहीं दिया जा सकता है. कहा गया कि अधिनियम के प्रावधानों को केवल दो आधारों पर असंवैधानिक घोषित कर रद्द किया जा सकता है. पहला विधायी क्षमता की कमी के कारण, या (ii) किसी अन्य संवैधानिक प्रावधान के किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन होने के कारण.

कोर्ट ने कहा कि उसे एक भी शब्द नहीं मिला जो यह बता सके कि याचिकाकर्ता एक ऐसा व्यक्ति है जो सीधे तौर पर पीड़ित है. इसके अलावा, कोर्ट ने ये भी नोट किया कि याचिकाकर्ता यह साबित करने में सक्षम नहीं है कि मैनुअल को विधायी क्षमता के बिना लाया गया है.

नियमावली के अधिकार के संबंध में न्यायालय ने विशेष रूप से देखा कि यूपी भूमि अभिलेख नियमावली केवल भूमि अभिलेखों को बनाए रखने के तरीके और प्रक्रिया प्रदान करती है. कोर्ट ने आगे कहा कि यूपी राजस्व संहिता, 2006 की धारा 234(3) में प्रावधान है कि राजस्व संहिता, 2006 के प्रारंभ होने की तिथि पर लागू भूमि अभिलेख नियमावली उस सीमा तक लागू रहेगी, जब तक कि वे राजस्व संहिता, 2006 के प्रावधानों के साथ असंगत नहीं है.

इसे भी पढ़ें- दिल्ली में हनुमान जन्माेत्सव शाेभा यात्रा पर पथराव, कई घायल

कोर्ट ने कहा कि यह उपयुक्त मामला नहीं है, जहां जनहित याचिका क्षेत्राधिकार को लागू किया जाना चाहिए. न्यायालय ने 10 हजार रुपये का हर्जाना लगाकर याचिका को खारिज कर दिया. याची को हर्जाने की राशि आदेश की तिथि से 45 दिनों के भीतर हाईकोर्ट विधिक सेवा समिति, इलाहाबाद के पास जमा करना होगा.

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प्रयागराजः 'यूपी लैंड रिकॉर्ड मैनुअल' को चुनौती देने वाली याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट ने खारिज कर दी. कोर्ट ने याची पर 10 हजार रुपये का हर्जाना भी लगाया है. इस याचिका में उत्तर प्रदेश भूमि रिकॉर्ड मैनुअल को यूपी राजस्व संहिता, 2006 और राजस्व संहिता नियम, 2016 के विरुद्ध मानते हुए असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई थी. जस्टिस प्रीतिन्कर दिवाकर और जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ ने शैलेश कुमार मिश्रा की याचिका पर ये फैसला दिया है.

आपको बता दें कि यूपी भूमि अभिलेख नियमावली अभिलेखों की तैयारी और रखरखाव के लिए नियम और प्रक्रियाएं प्रदान करती है. वहीं दूसरी ओर यूपी राजस्व संहिता, 2006 को उत्तर प्रदेश राज्य में भूमि काश्तकार और भू-राजस्व से संबंधित कानून को समेकित और संशोधित करने, उससे जुड़े और उसके आनुषंगिक मामलों के लिए प्रख्यापित किया गया है. कोर्ट के सामने याची ने सामाजिक कार्यकर्ता और किसान के रूप में रुख किया था. उसके द्वारा यह तर्क दिया गया कि जनहित याचिका जनता के सामान्य हित के लिए यूपी भूमि अभिलेख नियमावली एक पुराना नियमावली है और यूपी राजस्व संहिता, 2006 के अनुसार नहीं है.

दूसरी ओर राज्य सरकार ने इस आधार पर जनहित याचिका का विरोध किया कि यूपी जनहित याचिका के रूप में दायर की गई रिट याचिका में भूमि रिकॉर्ड मैनुअल को चुनौती नहीं दिया जा सकता है. कहा गया कि अधिनियम के प्रावधानों को केवल दो आधारों पर असंवैधानिक घोषित कर रद्द किया जा सकता है. पहला विधायी क्षमता की कमी के कारण, या (ii) किसी अन्य संवैधानिक प्रावधान के किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन होने के कारण.

कोर्ट ने कहा कि उसे एक भी शब्द नहीं मिला जो यह बता सके कि याचिकाकर्ता एक ऐसा व्यक्ति है जो सीधे तौर पर पीड़ित है. इसके अलावा, कोर्ट ने ये भी नोट किया कि याचिकाकर्ता यह साबित करने में सक्षम नहीं है कि मैनुअल को विधायी क्षमता के बिना लाया गया है.

नियमावली के अधिकार के संबंध में न्यायालय ने विशेष रूप से देखा कि यूपी भूमि अभिलेख नियमावली केवल भूमि अभिलेखों को बनाए रखने के तरीके और प्रक्रिया प्रदान करती है. कोर्ट ने आगे कहा कि यूपी राजस्व संहिता, 2006 की धारा 234(3) में प्रावधान है कि राजस्व संहिता, 2006 के प्रारंभ होने की तिथि पर लागू भूमि अभिलेख नियमावली उस सीमा तक लागू रहेगी, जब तक कि वे राजस्व संहिता, 2006 के प्रावधानों के साथ असंगत नहीं है.

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कोर्ट ने कहा कि यह उपयुक्त मामला नहीं है, जहां जनहित याचिका क्षेत्राधिकार को लागू किया जाना चाहिए. न्यायालय ने 10 हजार रुपये का हर्जाना लगाकर याचिका को खारिज कर दिया. याची को हर्जाने की राशि आदेश की तिथि से 45 दिनों के भीतर हाईकोर्ट विधिक सेवा समिति, इलाहाबाद के पास जमा करना होगा.

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