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सरप्लस अध्यापकों वाले जिलों में अंतरजनपदीय स्थानांतरण नहीं करने का निर्णय सही : इलाहाबाद हाईकोर्ट - basic education council policy

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने बेसिक शिक्षा परिषद की ट्रांसफर नीति में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. हाईकोर्ट ने कहा कि अधिक अध्यापकों वाले जिलों में अंतरजनपदीय स्थानांतरण नहीं करने का निर्णय सही है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 18, 2024, 10:51 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा जारी स्थानांतरण नीति के तहत स्वीकृत पद के सापेक्ष अधिक संख्या वाले अध्यापकों के जिलों में अंतरजनपदीय स्थानांतरण नहीं करने का निर्णय सही है. हाईकोर्ट ने कहा कि यह निर्णय न तो मनमाना है और न ही विधि विरुद्ध है. इसलिए, सरकार की नीति में हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं है. कोर्ट ने अंतरजनपदीय स्थानांतरण नीति के क्लाज चार में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए सभी याचिकाएं खारिज कर दीं. रचना व दर्जनों अन्य अध्यापकों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने दिया.

याचिकाओं में 2 जून 2023 को घोषित अंतरजनपदीय स्थानांतरण नीति के क्लाज चार को चुनौती दी गई थी. इस क्लाज के अनुसार, जनपद में स्वीकृत पद के सापेक्ष 30 अप्रैल 2023 तक कार्यरत अध्यापकों की संख्या के 10 प्रतिशत की अधिकतम सीमा तक अंतरजनपदीय स्थानांतरण किया जाएगा. किसी जनपद से स्थानांतरित होकर आने वाले व स्थानांतरित होकर जाने वाले शिक्षकों की अधिकतम सीमा 10 प्रतिशत होगी. इसके तहत सरकार ने कुछ ऐसे जिलों जहां पर कि स्वीकृत संख्या से अधिक संख्या में अध्यापक कार्यरत थे, वहां के संबंध में निर्णय लिया कि उन जिलों में कार्यरत अध्यापक दूसरे जिलों को स्थानांतरित तो किए जा सकेंगे. लेकिन, दूसरे जिलों से उन जिलों में कोई अध्यापक स्थानांतरित करके नहीं भेजा जाएगा. ऐसे जिलों को शून्य घोषित किया गया.

इस निर्णय के विरोध में याचिकाकर्ताओं का कहना था कि 10 प्रतिशत पदों की गणना व निर्धारण और उसकी व्याख्या व जिलों को शून्य घोषित करना न सिर्फ नीति के विपरीत है, बल्कि उक्त क्लाज चार की गलत व्याख्या भी है. कहा गया कि सरकार ने स्वीकृत पद के सापेक्ष अधिक संख्या वाले जिलों को भी 10 प्रतिशत की सीमा में शामिल कर लिया. इस प्रकार से पदों की गणना में गलती की गई है.

हाईकोर्ट का कहना था कि इस बात में कोई विवाद नहीं है कि कुछ जिलों में स्वीकृत संख्या के सापेक्ष अधिक संख्या में अध्यापक कार्यरत हैं. इसलिए, राज्य सरकार ने ऐसे जिलों में बाहर से किसी को स्थानांतरित नहीं करने का निर्णय लिया है. जिसे मनमाना नहीं कहा जा सकता है. क्योंकि, इन जिलों का निर्धारण स्वीकृत और कार्यरत की तुलना के आधार पर किया गया है. जोकि 10 प्रतिशत स्वीकृत और कार्यरत संख्या के अनुसार ही है. क्योंकि, ऐसे जिलों में जहां निर्धारित संख्या से अधिक संख्या में अध्यापक कार्यरत हैं. बाहर से अध्यापकों को स्थानांतरित करने से उनकी संख्या और ज्यादा बढ़ जाएगी. हाईकोर्ट ने कहा कि अध्यापकों को अपने इच्छित जिलों में कार्य करने का अधिकार नहीं है. स्थानांतरण नीति लोक कल्याणकारी राज्य की नीति है और किसी प्रकार के मनमाने या विधि विरुद्ध निर्णय के अभाव में इसमें हस्तक्षेप करना संभव नहीं है.

यह भी पढ़ें: अलाया अपार्टमेंट हादसा : सपा विधायक शाहिद मंजूर की अंतरिम जमानत याचिका भी खारिज

यह भी पढ़ें: हाईकोर्ट बार की आमसभा में हाथापाई, कार्यकारिणी सदस्यों का इस्तीफा नामंजूर

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा जारी स्थानांतरण नीति के तहत स्वीकृत पद के सापेक्ष अधिक संख्या वाले अध्यापकों के जिलों में अंतरजनपदीय स्थानांतरण नहीं करने का निर्णय सही है. हाईकोर्ट ने कहा कि यह निर्णय न तो मनमाना है और न ही विधि विरुद्ध है. इसलिए, सरकार की नीति में हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं है. कोर्ट ने अंतरजनपदीय स्थानांतरण नीति के क्लाज चार में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए सभी याचिकाएं खारिज कर दीं. रचना व दर्जनों अन्य अध्यापकों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने दिया.

याचिकाओं में 2 जून 2023 को घोषित अंतरजनपदीय स्थानांतरण नीति के क्लाज चार को चुनौती दी गई थी. इस क्लाज के अनुसार, जनपद में स्वीकृत पद के सापेक्ष 30 अप्रैल 2023 तक कार्यरत अध्यापकों की संख्या के 10 प्रतिशत की अधिकतम सीमा तक अंतरजनपदीय स्थानांतरण किया जाएगा. किसी जनपद से स्थानांतरित होकर आने वाले व स्थानांतरित होकर जाने वाले शिक्षकों की अधिकतम सीमा 10 प्रतिशत होगी. इसके तहत सरकार ने कुछ ऐसे जिलों जहां पर कि स्वीकृत संख्या से अधिक संख्या में अध्यापक कार्यरत थे, वहां के संबंध में निर्णय लिया कि उन जिलों में कार्यरत अध्यापक दूसरे जिलों को स्थानांतरित तो किए जा सकेंगे. लेकिन, दूसरे जिलों से उन जिलों में कोई अध्यापक स्थानांतरित करके नहीं भेजा जाएगा. ऐसे जिलों को शून्य घोषित किया गया.

इस निर्णय के विरोध में याचिकाकर्ताओं का कहना था कि 10 प्रतिशत पदों की गणना व निर्धारण और उसकी व्याख्या व जिलों को शून्य घोषित करना न सिर्फ नीति के विपरीत है, बल्कि उक्त क्लाज चार की गलत व्याख्या भी है. कहा गया कि सरकार ने स्वीकृत पद के सापेक्ष अधिक संख्या वाले जिलों को भी 10 प्रतिशत की सीमा में शामिल कर लिया. इस प्रकार से पदों की गणना में गलती की गई है.

हाईकोर्ट का कहना था कि इस बात में कोई विवाद नहीं है कि कुछ जिलों में स्वीकृत संख्या के सापेक्ष अधिक संख्या में अध्यापक कार्यरत हैं. इसलिए, राज्य सरकार ने ऐसे जिलों में बाहर से किसी को स्थानांतरित नहीं करने का निर्णय लिया है. जिसे मनमाना नहीं कहा जा सकता है. क्योंकि, इन जिलों का निर्धारण स्वीकृत और कार्यरत की तुलना के आधार पर किया गया है. जोकि 10 प्रतिशत स्वीकृत और कार्यरत संख्या के अनुसार ही है. क्योंकि, ऐसे जिलों में जहां निर्धारित संख्या से अधिक संख्या में अध्यापक कार्यरत हैं. बाहर से अध्यापकों को स्थानांतरित करने से उनकी संख्या और ज्यादा बढ़ जाएगी. हाईकोर्ट ने कहा कि अध्यापकों को अपने इच्छित जिलों में कार्य करने का अधिकार नहीं है. स्थानांतरण नीति लोक कल्याणकारी राज्य की नीति है और किसी प्रकार के मनमाने या विधि विरुद्ध निर्णय के अभाव में इसमें हस्तक्षेप करना संभव नहीं है.

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