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इसरो चंद्रयान भेज रहा और अधिकारी हाथ से लिख रहे आदेश, हाईकोर्ट की एक अपठनीय आदेश पर टिप्पणी - इलाहाबाद हाईकोर्ट की टिप्पणी

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शनिवार को एक अपठनीय हस्तलिखित आदेश देखकर टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि आजकल इतने विकल्प होने के बाद भी इस तरह की लिखावट क्यों? कोर्ट ने इस आदेश की प्रति चकबंदी आयुक्त लखनऊ के साथ-साथ चकबंदी जौनपुर को भी भेजने का निर्देश दिया है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट
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Published : Jul 16, 2023, 9:32 AM IST

प्रयागराज: राजस्व अधिकारी द्वारा हाथ से अपठनीय आदेश लिखे जाने पर कड़ी टिप्पणी करते हुए इलाहबाद हाईकोर्ट ने कहा कि एक ओर इसरो चंद्रयान भेज रहा है और दूसरी ओर अधिकारी हाथ से ऐसे आदेश लिख रहे हैं, जिसे पढ़ पाना भी संभव नहीं है. शनिवार को मामले की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने कहा कि अदालत इस बात से आश्चर्यचकित है कि 21वीं सदी में जब भारत 'चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग' की प्रक्रिया में है. वहीं, चकबंदी जौनपुर के उप निदेशक ने अपनी हस्तलिखित में एक छोटा सा विवादित आदेश पारित किया है, जो बिल्कुल पढ़ने योग्य नहीं है. जबकि, अन्य विकल्प उपलब्ध हैं जैसे कि कंप्यूटर या वॉयस टाइपिंग का उपयोग करना. हालांकि, अधिकारी ने इसका उपयोग नहीं किया है.

कोर्ट में मौजूद कुछ वकीलों से आदेश पढ़ने के लिए भी कहा गया. लेकिन, कोई भी इसे पढ़ नहीं सका. अदालत ने कहा कि प्रतिद्वंद्वी पक्षों की ओर से पेश होने वाले वकील, यहां तक कि अदालत में मौजूद बार के सदस्य भी पूरे आदेश को सही ढंग से पढ़ने में सक्षम नहीं हैं. कोर्ट ने चकबंदी, जौनपुर के उप निदेशक को ऐसा आदेश पारित करने का निर्देश दिया, जो स्पष्ट हस्तलिखित या कंप्यूटर टाइपिंग द्वारा सुपाठ्य हो.

उपरोक्त प्रक्रिया तीन सप्ताह की अवधि के भीतर की जाएगी और उसके बाद याचिकाकर्ता को उसकी एक प्रमाणित प्रति निशुल्क प्रदान की जाएगी, जिसे तीन सप्ताह के बाद न्यायालय के समक्ष रखा जाएगा. अदालत ने इस आदेश की प्रति चकबंदी आयुक्त, लखनऊ के साथ-साथ उप निदेशक चकबंदी, जौनपुर को भी भेजने का निर्देश दिया.

यह भी पढ़ें: दहेज हत्या मामले में हाईकोर्ट ने खारिज की आरोपी पति की अग्रिम जमानत

प्रयागराज: राजस्व अधिकारी द्वारा हाथ से अपठनीय आदेश लिखे जाने पर कड़ी टिप्पणी करते हुए इलाहबाद हाईकोर्ट ने कहा कि एक ओर इसरो चंद्रयान भेज रहा है और दूसरी ओर अधिकारी हाथ से ऐसे आदेश लिख रहे हैं, जिसे पढ़ पाना भी संभव नहीं है. शनिवार को मामले की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने कहा कि अदालत इस बात से आश्चर्यचकित है कि 21वीं सदी में जब भारत 'चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग' की प्रक्रिया में है. वहीं, चकबंदी जौनपुर के उप निदेशक ने अपनी हस्तलिखित में एक छोटा सा विवादित आदेश पारित किया है, जो बिल्कुल पढ़ने योग्य नहीं है. जबकि, अन्य विकल्प उपलब्ध हैं जैसे कि कंप्यूटर या वॉयस टाइपिंग का उपयोग करना. हालांकि, अधिकारी ने इसका उपयोग नहीं किया है.

कोर्ट में मौजूद कुछ वकीलों से आदेश पढ़ने के लिए भी कहा गया. लेकिन, कोई भी इसे पढ़ नहीं सका. अदालत ने कहा कि प्रतिद्वंद्वी पक्षों की ओर से पेश होने वाले वकील, यहां तक कि अदालत में मौजूद बार के सदस्य भी पूरे आदेश को सही ढंग से पढ़ने में सक्षम नहीं हैं. कोर्ट ने चकबंदी, जौनपुर के उप निदेशक को ऐसा आदेश पारित करने का निर्देश दिया, जो स्पष्ट हस्तलिखित या कंप्यूटर टाइपिंग द्वारा सुपाठ्य हो.

उपरोक्त प्रक्रिया तीन सप्ताह की अवधि के भीतर की जाएगी और उसके बाद याचिकाकर्ता को उसकी एक प्रमाणित प्रति निशुल्क प्रदान की जाएगी, जिसे तीन सप्ताह के बाद न्यायालय के समक्ष रखा जाएगा. अदालत ने इस आदेश की प्रति चकबंदी आयुक्त, लखनऊ के साथ-साथ उप निदेशक चकबंदी, जौनपुर को भी भेजने का निर्देश दिया.

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