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गलत विवेचना करने के आरोपी डिप्टी एसपी का निलंबन हाईकोर्ट ने किया रद्द

इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने गलत विवेचना करने के आरोपी डिप्टी एसपी अभिषेक यादव का निलंबन रद्द कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि पहले से चल रही प्रक्रिया को पूरा किए बिना नया आदेश पारित करना अनुचित है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट
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Published : Dec 16, 2022, 10:51 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने चंदौसी में तैनात पुलिस क्षेत्राधिकारी अभिषेक यादव का निलंबन रद्द कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि आदेश पारित करने में सेवा नियमावली के प्रावधानों का पालन नहीं किया गया. आरोपी डिप्टी एसपी के खिलाफ पहले से ही विभागीय कार्रवाई चल रही थी, जिसे पूरा किए बिना नया आदेश पारित कर दिया गया. अभिषेक यादव की याचिका पर यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी और उनके सहयोगी विभु राय को सुन कर दिया.

याची 2017 में चंदौसी में पुलिस क्षेत्राधिकारी के पद पर तैनात था. इस दौरान उसे पुलिस स्टेशन बनिहार में दर्ज दुष्कर्म और एससी एसटी एक्ट के एक मामले की विवेचना सौंपी गई. याची ने जांच करने के बाद मामले में अंतिम रिपोर्ट दाखिल कर दी. इस रिपोर्ट को कोर्ट में चुनौती दी गई और कोर्ट के आदेश पर मामले में अग्रिम विवेचना की गई. चार्जशीट दाखिल होने के बाद मुकदमे का ट्रायल शुरू कर दिया गया.

इस दौरान सीओ अभिषेक यादव के खिलाफ विभागीय कार्रवाई यह कहते हुए शुरू की गई कि उसने मामले की विवेचना के दौरान सही तथ्यों को उजागर नहीं किया. याची ने पीड़िता के कपड़ों को फॉरेंसिक लैब जांच के लिए नहीं भेजा और ना ही कॉल डिटेल को अपने अंतिम रिपोर्ट में शामिल किया. विभागीय जांच में याची से स्पष्टीकरण लेने के बाद उसे परिनिंदा प्रविष्टि दे दी गई . याची ने परिनिंदा प्रविष्ट के आदेश को राज्य लोक सेवा अधिकरण के समक्ष चुनौती दी. अधिकरण ने विभागीय कार्रवाई रद्द करते हुए नए सिरे से याची का स्पष्टीकरण लेकर कार्रवाई करने की छूट दी . इसके बाद विभाग ने उसे फिर से नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा. याची ने अपना जवाब दाखिल किया मगर उस पर कोई आदेश पारित करने के बजाए 3 नवंबर 2022 को उसे निलंबित कर दिया गया.

निलंबन आदेश को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी. याची के अधिवक्ता का कहना था कि एक बार कोई प्रक्रिया शुरू कर दी गई, जिसके तहत परनिंदा प्रविष्टि दी गई थी. जिससे की राज्य अधिकरण ने रद्द कर दिया. इसके बाद इस प्रक्रिया को पूरा किए बिना नया आदेश पारित करना सेवा नियमावली के नियमों के विरुद्ध है. याची को उन्हीं आरोपों के तहत निलंबित किया गया. जिन आरोपों में उसे परिनिंदा प्रविष्टि दी गई थी. इस दौरान उक्त मुकदमे में आरोपी गण पीड़िता के बयान बदलने के आधार पर बरी कर दिए गए . कोर्ट ने याची के अधिवक्ता की दलीलों से सहमत होते हुए निलंबन आदेश रद्द कर दिया है.

यह भी पढ़ें: हाईकोर्ट ने कांस्टेबलों की वरिष्ठता सूची पर पुलिस मुख्यालय से मांगा जवाब

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने चंदौसी में तैनात पुलिस क्षेत्राधिकारी अभिषेक यादव का निलंबन रद्द कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि आदेश पारित करने में सेवा नियमावली के प्रावधानों का पालन नहीं किया गया. आरोपी डिप्टी एसपी के खिलाफ पहले से ही विभागीय कार्रवाई चल रही थी, जिसे पूरा किए बिना नया आदेश पारित कर दिया गया. अभिषेक यादव की याचिका पर यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप त्रिवेदी और उनके सहयोगी विभु राय को सुन कर दिया.

याची 2017 में चंदौसी में पुलिस क्षेत्राधिकारी के पद पर तैनात था. इस दौरान उसे पुलिस स्टेशन बनिहार में दर्ज दुष्कर्म और एससी एसटी एक्ट के एक मामले की विवेचना सौंपी गई. याची ने जांच करने के बाद मामले में अंतिम रिपोर्ट दाखिल कर दी. इस रिपोर्ट को कोर्ट में चुनौती दी गई और कोर्ट के आदेश पर मामले में अग्रिम विवेचना की गई. चार्जशीट दाखिल होने के बाद मुकदमे का ट्रायल शुरू कर दिया गया.

इस दौरान सीओ अभिषेक यादव के खिलाफ विभागीय कार्रवाई यह कहते हुए शुरू की गई कि उसने मामले की विवेचना के दौरान सही तथ्यों को उजागर नहीं किया. याची ने पीड़िता के कपड़ों को फॉरेंसिक लैब जांच के लिए नहीं भेजा और ना ही कॉल डिटेल को अपने अंतिम रिपोर्ट में शामिल किया. विभागीय जांच में याची से स्पष्टीकरण लेने के बाद उसे परिनिंदा प्रविष्टि दे दी गई . याची ने परिनिंदा प्रविष्ट के आदेश को राज्य लोक सेवा अधिकरण के समक्ष चुनौती दी. अधिकरण ने विभागीय कार्रवाई रद्द करते हुए नए सिरे से याची का स्पष्टीकरण लेकर कार्रवाई करने की छूट दी . इसके बाद विभाग ने उसे फिर से नोटिस जारी कर स्पष्टीकरण मांगा. याची ने अपना जवाब दाखिल किया मगर उस पर कोई आदेश पारित करने के बजाए 3 नवंबर 2022 को उसे निलंबित कर दिया गया.

निलंबन आदेश को हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई थी. याची के अधिवक्ता का कहना था कि एक बार कोई प्रक्रिया शुरू कर दी गई, जिसके तहत परनिंदा प्रविष्टि दी गई थी. जिससे की राज्य अधिकरण ने रद्द कर दिया. इसके बाद इस प्रक्रिया को पूरा किए बिना नया आदेश पारित करना सेवा नियमावली के नियमों के विरुद्ध है. याची को उन्हीं आरोपों के तहत निलंबित किया गया. जिन आरोपों में उसे परिनिंदा प्रविष्टि दी गई थी. इस दौरान उक्त मुकदमे में आरोपी गण पीड़िता के बयान बदलने के आधार पर बरी कर दिए गए . कोर्ट ने याची के अधिवक्ता की दलीलों से सहमत होते हुए निलंबन आदेश रद्द कर दिया है.

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