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'शिक्षा सेवा अधिकरण न्याय व्यवस्था को कमजोर करने का तंत्र' - advocates on strike

शिक्षा सेवा अधिकरण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता हड़ताल पर हैं. अधिकरण की उपयोगिता और इसकी वैधानिकता पर बहस छिड़ गई है. संविधान विद वरिष्ठ अधिवक्ता अमर नाथ त्रिपाठी कहते है कि मूल संविधान में अधिकरण की परिकल्पना नहीं थी.

इलाहाबाद हाईकोर्ट.
इलाहाबाद हाईकोर्ट.
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Published : Mar 2, 2021, 5:45 PM IST

प्रयागराज: शिक्षा सेवा अधिकरण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता हड़ताल पर हैं. अधिकरण की उपयोगिता और इसकी वैधानिकता पर बहस छिड़ गई है. संविधान विद वरिष्ठ अधिवक्ता अमर नाथ त्रिपाठी कहते है कि मूल संविधान में अधिकरण की परिकल्पना नहीं थी. 42वे संविधान संशोधन से अनुच्छेद 323 ए के तहत संसद के कानून से केन्द्रीय प्रशासनिक सेवा अधिकरण बनाने की व्यवस्था की गई है. अनुच्छेद 323 बी में राज्य सरकार को अन्य अधिकरण बनाने का अधिकार दिया गया है. इसमें शिक्षा शामिल नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में दी ये राय

सुप्रीम कोर्ट ने टीएमएपई केस में राय दी कि प्राइवेट और अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान के टीचर व स्टॉफ के लिए न्याय का फोरम दिया जाना चाहिए. इन्हें सिविल कोर्ट के भरोसे न्याय पाने के लिए छोड़ा नहीं जा सकता. सरकारी या वित्तीय सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं के सेवा कानून बने हैं, जिसका सहारा लेकर हाईकोर्ट से न्याय प्राप्त कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने प्राइवेट शिक्षण संस्थान के लिए अधिकरण देने की बात की थी, लेकिन राज्य सरकार ने वित्तीय सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थान के अध्यापकों के स्टॉफ के लिए अधिकरण बनाकर सुप्रीम कोर्ट की राय के विपरीत कार्य किया है.

'अधिकरण कानून से हाईकोर्ट के अधिकार में कटौती करने की कोशिश'

वरिष्ठ अधिवक्ता अमर नाथ त्रिपाठी ने कहा कि अनुच्छेद 226 में हाईकोर्ट को अंतर्निहित शक्तियां प्राप्त हैं. सुप्रीम कोर्ट के तमाम फैसलों ने अध्यापकों को इसके उपयोग का अधिकार दिया है. अब नए शिक्षा सेवा अधिकरण कानून से हाईकोर्ट के अधिकार में कटौती करने की कोशिश की गई है. अधिकरण के फैसले के खिलाफ अपील सुप्रीम कोर्ट में होगी. एल चंद्र कुमार केस में सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण मामले में कहा कि हाईकोर्ट की रिब्यू करने के अधिकारों में कटौती नहीं की जा सकती. इस फैसले के खिलाफ नए कानून में व्यवस्था देकर कोर्ट का मखौल उड़ाया गया है.

'सरकार हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार में कर रही हस्तक्षेप'

अमर नाथ त्रिपाठी ने कहा कि अमल्गमेशन आर्डर 1948 से लखनऊ की चीफ कोर्ट को दो कमिश्नरियों का क्षेत्राधिकार दिया गया. इसे राज्य पुनर्गठन के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ माना गया. दो मंडलों के अलावा पूरे प्रदेश का क्षेत्राधिकार इलाहाबाद हाईकोर्ट को है. शिक्षा सेवा अधिकरण की पीठ लखनऊ में बनाकर सरकार हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार में हस्तक्षेप कर रही है, जिसका उसे अधिकार नहीं है. लखनऊ पीठ के केस इलाहाबाद में सुने जा सकते हैं, लेकिन इलाहाबाद के केस लखनऊ पीठ को सुनने का वैधानिक अधिकार नहीं है.

'जहां हाईकोर्ट की पीठ हो, वहीं अधिकरण बनाया जाय'

अमर नाथ त्रिपाठी ने कहा कि 86वें संविधान संशोधन से शिक्षा अधिकार को अनुच्छेद 21के तहत मूल अधिकार में शामिल कर लिया गया है. अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 संसद द्वारा पारित किया गया है. समवर्ती सूची में होने के बावजूद शिक्षा केंद्र सरकार के अधिकार में चली गई है. एनसीटीई के नियम सभी राज्यों पर लागू हैं. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के जरिए केन्द्रीय नियंत्रण है. ऐसे में राज्य सरकार को शिक्षा अधिकरण बनाने का अधिकार नहीं है. वैसे भी यदि अधिकरण बनाना ही है तो मद्रास हाईकोर्ट बार एसोसिएशन केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जहां हाईकोर्ट की पीठ हो वहीं अधिकरण बनाया जाय, ताकि हाईकोर्ट के अधीक्षण में आसानी हो. मेसर्स टार्क फार्मास्युटिकल केस में हाईकोर्ट ने कहा है कि हाईकोर्ट पीठ व प्रधानपीठ समानार्थी है. इलाहाबाद हाईकोर्ट की प्रधानपीठ प्रयागराज में है, ऐसी दशा में अधिकरण की पीठ प्रयागराज में ही होनी चाहिए.

'कानून की डिग्री नहीं, फिर भी करेंगे न्याय'

यंग लॉयर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष संतोष कुमार त्रिपाठी ने अभी तक के अधिकरणों से न्याय के अनुभव को देखते हुए इसे वादकारी को न्याय की भूलभुलैया में उलझाने वाली संस्था बताया. साथ ही कहा कि अधिकरण केवल नौकरशाह की सेवानिवृत्ति के बाद भी फल पाने की सोच का नतीजा है. अधिकरण में ऐसे आईएएस अधिकारी भी न्याय देंगे, जिन्हें कानून का कोई ज्ञान ही नहीं है और न ही उनके पास कानून की डिग्री है.

उन्होंने सरकार पर नौकरशाही के चंगुल में फंसकर कोर्ट के फैसलों की अनदेखी करने का आरोप लगाते हुए कहा कि प्रशासन कानून के अनुशासन से निरंकुश होकर न्याय व्यवस्था को अपने हाथ में लेना चाहता है. सरकार उसकी बात आंख मूदकर मानने और हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करने पर आमादा है. इसलिए कानून व्यवस्था को कमजोर करने के लिए अधिकरण बनाए जा रहे हैं. इसका शिक्षक संघ भी विरोध कर रहे हैं.

प्रयागराज: शिक्षा सेवा अधिकरण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता हड़ताल पर हैं. अधिकरण की उपयोगिता और इसकी वैधानिकता पर बहस छिड़ गई है. संविधान विद वरिष्ठ अधिवक्ता अमर नाथ त्रिपाठी कहते है कि मूल संविधान में अधिकरण की परिकल्पना नहीं थी. 42वे संविधान संशोधन से अनुच्छेद 323 ए के तहत संसद के कानून से केन्द्रीय प्रशासनिक सेवा अधिकरण बनाने की व्यवस्था की गई है. अनुच्छेद 323 बी में राज्य सरकार को अन्य अधिकरण बनाने का अधिकार दिया गया है. इसमें शिक्षा शामिल नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में दी ये राय

सुप्रीम कोर्ट ने टीएमएपई केस में राय दी कि प्राइवेट और अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान के टीचर व स्टॉफ के लिए न्याय का फोरम दिया जाना चाहिए. इन्हें सिविल कोर्ट के भरोसे न्याय पाने के लिए छोड़ा नहीं जा सकता. सरकारी या वित्तीय सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं के सेवा कानून बने हैं, जिसका सहारा लेकर हाईकोर्ट से न्याय प्राप्त कर रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने प्राइवेट शिक्षण संस्थान के लिए अधिकरण देने की बात की थी, लेकिन राज्य सरकार ने वित्तीय सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थान के अध्यापकों के स्टॉफ के लिए अधिकरण बनाकर सुप्रीम कोर्ट की राय के विपरीत कार्य किया है.

'अधिकरण कानून से हाईकोर्ट के अधिकार में कटौती करने की कोशिश'

वरिष्ठ अधिवक्ता अमर नाथ त्रिपाठी ने कहा कि अनुच्छेद 226 में हाईकोर्ट को अंतर्निहित शक्तियां प्राप्त हैं. सुप्रीम कोर्ट के तमाम फैसलों ने अध्यापकों को इसके उपयोग का अधिकार दिया है. अब नए शिक्षा सेवा अधिकरण कानून से हाईकोर्ट के अधिकार में कटौती करने की कोशिश की गई है. अधिकरण के फैसले के खिलाफ अपील सुप्रीम कोर्ट में होगी. एल चंद्र कुमार केस में सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण मामले में कहा कि हाईकोर्ट की रिब्यू करने के अधिकारों में कटौती नहीं की जा सकती. इस फैसले के खिलाफ नए कानून में व्यवस्था देकर कोर्ट का मखौल उड़ाया गया है.

'सरकार हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार में कर रही हस्तक्षेप'

अमर नाथ त्रिपाठी ने कहा कि अमल्गमेशन आर्डर 1948 से लखनऊ की चीफ कोर्ट को दो कमिश्नरियों का क्षेत्राधिकार दिया गया. इसे राज्य पुनर्गठन के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ माना गया. दो मंडलों के अलावा पूरे प्रदेश का क्षेत्राधिकार इलाहाबाद हाईकोर्ट को है. शिक्षा सेवा अधिकरण की पीठ लखनऊ में बनाकर सरकार हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार में हस्तक्षेप कर रही है, जिसका उसे अधिकार नहीं है. लखनऊ पीठ के केस इलाहाबाद में सुने जा सकते हैं, लेकिन इलाहाबाद के केस लखनऊ पीठ को सुनने का वैधानिक अधिकार नहीं है.

'जहां हाईकोर्ट की पीठ हो, वहीं अधिकरण बनाया जाय'

अमर नाथ त्रिपाठी ने कहा कि 86वें संविधान संशोधन से शिक्षा अधिकार को अनुच्छेद 21के तहत मूल अधिकार में शामिल कर लिया गया है. अनिवार्य शिक्षा कानून 2009 संसद द्वारा पारित किया गया है. समवर्ती सूची में होने के बावजूद शिक्षा केंद्र सरकार के अधिकार में चली गई है. एनसीटीई के नियम सभी राज्यों पर लागू हैं. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के जरिए केन्द्रीय नियंत्रण है. ऐसे में राज्य सरकार को शिक्षा अधिकरण बनाने का अधिकार नहीं है. वैसे भी यदि अधिकरण बनाना ही है तो मद्रास हाईकोर्ट बार एसोसिएशन केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जहां हाईकोर्ट की पीठ हो वहीं अधिकरण बनाया जाय, ताकि हाईकोर्ट के अधीक्षण में आसानी हो. मेसर्स टार्क फार्मास्युटिकल केस में हाईकोर्ट ने कहा है कि हाईकोर्ट पीठ व प्रधानपीठ समानार्थी है. इलाहाबाद हाईकोर्ट की प्रधानपीठ प्रयागराज में है, ऐसी दशा में अधिकरण की पीठ प्रयागराज में ही होनी चाहिए.

'कानून की डिग्री नहीं, फिर भी करेंगे न्याय'

यंग लॉयर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष संतोष कुमार त्रिपाठी ने अभी तक के अधिकरणों से न्याय के अनुभव को देखते हुए इसे वादकारी को न्याय की भूलभुलैया में उलझाने वाली संस्था बताया. साथ ही कहा कि अधिकरण केवल नौकरशाह की सेवानिवृत्ति के बाद भी फल पाने की सोच का नतीजा है. अधिकरण में ऐसे आईएएस अधिकारी भी न्याय देंगे, जिन्हें कानून का कोई ज्ञान ही नहीं है और न ही उनके पास कानून की डिग्री है.

उन्होंने सरकार पर नौकरशाही के चंगुल में फंसकर कोर्ट के फैसलों की अनदेखी करने का आरोप लगाते हुए कहा कि प्रशासन कानून के अनुशासन से निरंकुश होकर न्याय व्यवस्था को अपने हाथ में लेना चाहता है. सरकार उसकी बात आंख मूदकर मानने और हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करने पर आमादा है. इसलिए कानून व्यवस्था को कमजोर करने के लिए अधिकरण बनाए जा रहे हैं. इसका शिक्षक संघ भी विरोध कर रहे हैं.

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