प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में आयकर विभाग कानपुर एवं नेशनल फेसलेस असेसमेंट सेंटर नई दिल्ली की मनमानी कार्यप्रणाली को नैसर्गिक न्याय के खिलाफ करार दिया है. कोर्ट ने कहा कि सभ्य न्याय व्यवस्था अधिकारियों को देश के नागरिकों को परेशान करने की मनमानी करने की इजाजत नहीं देती और न ही विधिक या राजनीतिक सिस्टम राज्य को कानून से ऊपर नहीं ले जा सकता. यह नागरिकों के साथ अन्याय होगा कि अधिकारियों की मनमानी से उन्हें संपत्ति से वंचित होना पड़े.
कोर्ट ने कहा कि आम आदमी के दावे को फेंका नहीं जा सकता. कल्याणकारी राज्य में अधिकारियों के आदेश, कानून के शासन को कमजोर नहीं कर सकते. अधिकारियों का कर्तव्य ही नागरिकों के अधिकार हैं, जिन्हें परेशान करने की कार्यवाही शक्ति का दुरुपयोग है. इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती.
कोर्ट ने जो राशि याची ने बैंक ऑफ बड़ौदा में जमा ही नहीं की उसे लेकर कर निर्धारण की कार्यवाही नोटिस पर आपत्ति पर विचार न कर उसे निरस्त कर देने को शक्ति का दुरुपयोग माना और आयकर विभाग पर 50 लाख रुपये हर्जाना लगाते हुए 3 सप्ताह में प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में जमा करने का निर्देश दिया. हालांकि अपर सॉलिसीटर जनरल के अनुरोध पर 1 सितंबर की सुनवाई की तिथि तक हर्जाना राशि के अमल को स्थगित कर दिया.
यह निर्णय न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी एवं न्यायमूर्ति जयंत बनर्जी की खंडपीठ ने एसआर कोल्ड स्टोरेज की याचिका पर दिया है. कोर्ट ने याची के खिलाफ आयकर निर्धारण कार्यवाही व नोटिस रद्द कर द्वारा है और केंद्र सरकार के वित्त सचिव को एक माह में ऐसा तंत्र विकसित करने का निर्देश दिया है ताकि पोर्टल का डाटा सही हो, कोई करदाता परेशान न किया जा सके। कार्यवाही खाली औपचारिकता न होकर वास्तविक हो.
कोर्ट ने केंद्र सरकार को ऐसा तंत्र बनाने का आदेश दिया है, जिसमें लापरवाह व मनमाने अधिकारियों की जवाबदेही तय हो सके. मामले के तथ्यों के अनुसार याची ने यूनियन बैंक में 3,41,81,000 रुपये कैश जमा किया है. बैंक ऑफ बड़ौदा में कोई कैश जमा नहीं किया फिर भी 13,67,24,000 रुपये बैंक ऑफ बड़ौदा में जमा करने के आरोप में उसके खिलाफ कार्यवाही की गई. याची ने बैंक के प्रमाणपत्र के साथ आपत्ति की और कहा कि उसने बैंक ऑफ बड़ौदा में पैसा जमा नहीं किया. नेशनल फेसलेस असेसमेंट सेंटर ने आपत्ति की अनदेखी कर उसे निरस्त कर दिया और ऐसा करने का कारण नहीं बताया, जिसे चुनौती दी गई.
याची ने कहा कि पोर्टल परेशान करने के लिए बनाया गया है. वहां कोई सुनवाई नहीं होती. शक्ति का दुरुपयोग किया गया है. प्रमुख मुख्य आयकर आयुक्त को अर्ध न्यायिक कार्यवाही की बेसिक सिद्धांत तक नहीं मालूम है. आयकर विभाग की ओर से कहा गया कि याचिका पोषणीय नहीं है।उसे अपील का अधिकार है.
कोर्ट ने कहा कि न्याय होना ही नहीं, दिखाई भी पड़ना चाहिए. न्याय किया जाए, इसके लिए आपत्ति पर विचार किया जाना जरूरी है. कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट को विवेकाधीन अधिकार प्राप्त है. वैकल्पिक अनुतोष पर वह निर्णय ले सकता है. याचिका में तथ्य का मुद्दा नहीं है. कानून का मसला है. याचिका की सुनवाई की जा सकती है.
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