प्रतापगढ़: उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले की विश्वनाथगंज विधानसभा 2009 में हुए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई. इस विधानसभा की सीमाएं अमेठी और प्रयागराज जिले से जुड़ी हुई हैं. जगतगुरु कृपालु जी महाराज का पैतृक गांव हंडौर इसी विधानसभा के मध्य स्थित है. इस क्षेत्र में सई, बकुलाही, लोनी और सकरनी नदियां बहती हैं. इस विधानसभ सीट पर ज्यादा समय तक ब्राम्हणों का कब्जा रहा.
2014 में हुए लोकसभा चुनाव के साथ पूर्व मंत्री राजाराम पाण्डेय के निधन से खाली हुई सीट पर अपनादल(एस) और बीजेपी गठबंधन के प्रत्याशी आरके वर्मा ने इस सीट से जीत दर्ज की. 2017 के विधानसभा चुनाव में फिर से एक बार आरके वर्मा का मौका दिया गया और वे पार्टी की उम्मीदों पर खरे उतरे. हालांकि दोनों चुनाव में भाजपा की लहर का लाभ मिला और कांग्रेस- सपा गठबंधन के संजय पांडेय को हराकर आरके वर्मा ने जीत दर्ज की.
साल 2017 में कुल 3,80,372 मतों के सापेक्ष 1,95,541 मत पड़े. यहां पर सर्वाधिक ब्राम्हण मतदाता 61,096 है तो वहीं दूसरे स्थान पर मुस्लिम मतदाता है जिनकी संख्या 55,386 के करीब है. वहीं, तीसरे स्थान पर पिछड़े वर्ग के 42,003 मतदाता है.
हालांकि 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा के राजाराम पांडेय ने जीत दर्ज की तो वहीं 2007 के चुनाव बसपा के बृजेश मिश्र ने जीत हासिल की थी. विधायक आरके वर्मा इस समय बागी हो चुके है और नए राह की तलाश में हैं. इन्हें अबतक भाजपा की लहर का फायदा मिलता रहा है, लेकिन किसी अन्य दल से लड़ने पर 41,983 पटेलों में जो ज्यादातर अपनादल के साथ रहती है. उसमे सेंधमारी कर अन्य पिछड़ी जातियों का सहारा होगा. इनकी छवि कट्टर पिछड़ावादी है.
समाजवादी पार्टी से संजय पांडेय की स्थिति इस बार ज्यादा मजबूत नजर आ रही है. इनके पिता पूर्वमंत्री राजाराम पाण्डेय की कर्मभूमि है. विधानसभा में सर्वाधिक ब्राम्हण दूसरे स्थान पर मुस्लिम के अलावा यादव समीकरण जीत दिला सकता है. सौरभ सिंह व जफरुल हसन पेशे से व्यापारी हैं. इन्हें सजातीय व सपाई वोटों का सहारा है तो वहीं कांग्रेस के प्रशांत सिंह टीम प्रियंका के संदीप सिंह के गांव से है और एक साल से अधिक से लगातार क्षेत्र में सक्रिय है इनका सजातीय और प्रियंका के करिश्मे पर भाग्य निर्धारित होगा.
अगर बात करें बसपा की तो 2007 में बसपा के टिकट पर प्रतापगढ़ विधानसभा से विधायक रहे संजय तिवारी इस बार विश्वनाथगंज विधानसभा से बसपा से दावा ठोंक रहे हैं. इन्हें दलितों, सजातीय ब्राम्हणों और मुस्लिम मतदाताओं का भरोसा है. फिलहाल अपनादल की इस सीट पर अभी तक कोई दावेदार नजर नहीं आ रहा है. इस क्षेत्र में चुनाव का मुख्य मुद्दा आवारा जानवर है. दरअसल, यहां आवारा पशुओं से किसान काफी परेशान हैं. यहां तक बहुत से किसानों ने आवारा जानवर के चलते खेती-किसानी भी करनी छोड़ दी है.
बिजली भी इस विधानसभा की समस्याओं में से एक है. यहां महज 12 से 14 घंटे ही बिजली मिल पा रही है. वहीं, बढ़ती महंगाई से भी यहां के लोग काफी त्रस्त हैं. डीजल भी खेती को बर्बाद करने में अहम भूमिका निभा रहा है. यहां युवाओं में बेरोजगारी के खिलाफ जबरदस्त आक्रोश है. नौकरियों के अभाव में युवाओं में अवसाद बढ़ रहा है. इस सीट पर जातीय समीकरण ही नेताओं का खेल बनाता बिगाड़ता रहा हैं. यहां का मुस्लिम मतदाता चुनाव में अहम किरदार निभाता है.
जातीय आंकड़ा
ब्राम्हण- 61,096
क्षत्रिय- 30,548
मुस्लिम-55368
वैश्य-190,92
कायस्थ-2,864
यादव- 38,185
पटेल- 41,983
मौर्य- 6491
मल्लाह-115
कहार-4544
गड़रिया-12,219
लोनिया-4,468
चौरसिया-1,756
धोबी-5,919
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