प्रतापगढ़ : खुशियां आने वाली थीं. और उधर अनहोनी भी साथ-साथ चली आ रही थी. रफ्तार की जंग में खुशियां थोड़ी पीछे रह गईं और फिर अनहोनी हावी हो गई. लगा कि जैसे सबकुछ अब खत्म हो गया. खुशियों पर हादसे का ग्रहण 8 दिसंबर को ही लग गया. लेकिन उसके इरादे और प्यार ने साबित कर दिया कि हादसे की औकात उसके इरादों से बड़ी नहीं थी. अब वह संघर्ष कर रहा है और इंतजार कर रहा है कि उसका प्यार अपने पैरों पर चलकर उसके घर तक पहुंचे.
जिंदगी जब रंगों से सजने वाली थी...
जिंदगी जब रंगों से सजने वाली थी तभी आरती को लगा कि जैसे उसकी दुनिया में अंधेरा छा गया हो. बारात आने के चंद घंटों पहले ही वह छत से गिर गई और रीढ़ की हड्डी टूट गई. डॉक्टर ने भी कह दिया कि आरती फिलहाल अपने पैरों पर नहीं चल सकती है. उसे महीनों या फिर बरसों इंतजार करना होगा. लेकिन दूल्हे अवधेश को इसकी परवाह नहीं थी. उसने तय मुहूर्त पर ही आरती की मांग में सिंदूर डालते हुए अनहोनी को चुनौती दी और आरती को अपना बना लिया. रस्म-रिवाज के वक्त सभी की आंखें नम थीं.
बचपन में पिता को खो चुके...
फिलहाल बेहतर इलाज के लिए आरती को प्रयागराज से लखनऊ के पीजीआई में भर्ती कराया गया है. बचपन में ही अपने पिता को खो चुके अवधेश ने आरती के इलाज में अपनी पूरी जमा-पूंजी खर्च कर दी. दोस्तों और रिश्तेदारों से ली गई रकम भी इलाज में लगा दी. कमबख्त कोरोना ने नौकरी पहले ही छीन ली.
जेब का मजबूत होना भी जरूरी...
परिवार की माली हालत पहले से ही खस्ता है. अब इंतजार है कि किसी तरह से आरती का इलाज पूरा हो जाए. मदद के लिए किसी का हाथ आगे आ जाए. विपरीत हालात में भी जिस तरह से अवधेश ने आरती का साथ नहीं छोड़ा वह काबिले तारीफ है. लेकिन केवल मजबूत हौसलों से ही काम नहीं चलता साहब, जिंदगी के लिए जेब का मजबूत होना भी जरुरी है. अवधेश को उम्मीद है कि कोई ना कोई हाथ मदद के लिए जरुर आगे बढ़ाएगा.
सूनी आंखों को है इंतजार...
एक बाप की सूनी आंखों को अपनी बेटी के कदमों की आहट का इंतजार है और आरती को अपने पिया घर जाने का.