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प्रतापगढ़ में दिवाली की तैयारी जोरों पर, अंतिम रूप देने में जुटे मूर्तिकार

यूपी के प्रतापगढ़ जिले में दिवाली पर्व के लिए गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों को कुम्हारपारा के मूर्तिकार इन दिनों अंतिम रूप देने में जुटे हैं. वहीं मूर्ति बनाने वाले कारीगरों को आशा है कि इस बार लोग स्वदेशी मूर्ति जरूर खरीदेंगे.

गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति
गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति
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Published : Nov 12, 2020, 7:07 PM IST

प्रतापगढ़ः दिवाली के दिन लोग अपने घरों में गणेश और लक्ष्मी की मूर्ति रखकर पूजा करते हैं और परिवार के सुख-समृद्धि की कामना करते हैं. महिला मूर्तिकार फूल कुमारी प्रजापति ने बताया कि हम लोग पूरे परिवार के साथ मिलकर दिवाली आने से 4 माह के पहले से ही मूर्ति बनाने का काम शुरू कर देते हैं, लेकिन इस बार कोविड-19 की वजह से व्यापार पर बहुत ज्यादा फर्क पड़ा है. इसलिए बस कुछ हफ्तों पहले से मूर्ति बनाने का कार्य किया जा रहा है.

गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति बनाने में जुटे मूर्तिकार.

छोटे बच्चे भी बटाते हैं हाथ
छोटे-छोटे बच्चे भी मूर्ति बनाने में बड़े उत्साह के साथ जुटे हुए हैं. मूर्ति बनाने की कला छोटे बच्चों ने भी सीख ली है. निखिल प्रजापति ने बताया कि लॉकडाउन के कारण स्कूल बंद होने की वजह से हम लोग घरों में है, तो अपने दादा-दादी और मम्मी-पापा हाथ बंटा लेते हैं. चाचा ने हमें मूर्ति बनाने का काम सिखाया है और हम भी आज मूर्ति बना रहे हैं, इसके साथ पढ़ाई भी करते हैं.

दिवाली से पहले होने लगती है तैयारी
वहीं एक छोटी सी बच्ची भी मूर्ति बनाने का काम कर रही है. बच्ची नेहा का कहना है कि हम लोग का परिवार जब दिवाली आने वाली रहती है तो उसके कुछ महीनों पहले से ही तैयारियां में जुट जाते हैं. पेंटिंग वगैरह करके मूर्ति को अंतिम रूप दिया जाता है उसके बाद मार्केट में बेची जाती है. महिलाएं एकत्रित होकर देव जागरण के लिए पारंपरिक लोकगीत गाती हैं.

मूर्ति का है पुश्तैनी धंधा
मूर्तिकार रामा देवी का कहना है कि इस बार कोरोना वायरस के कारण धंधा कम हुआ है. यह काम पुश्तैनी से करते चले आ रहे हैं और दुकान लगेगी कि नहीं लगेगी इसका कुछ कह पाना मुश्किल है. अबकी बार मूर्ति कम बना पाए हैं. भगवती प्रसाद कुंभकार ने बताया कि मूर्ति बिक्री से 15 हजार बचत होने की उम्मीद है.

तालाब की मिट्टी से बनती है मूर्ति
मूर्तिकार इन मूर्तियों को पूरे दिन बड़ी तल्लीनता के साथ बनाने में जुटे हुए हैं. मूर्ति बनाने के लिए पहले तालाब की मिट्टी को तैयार किया जाता है. इसके बाद मूर्ति का आधार बनाने हैं. आधार पर मिट्टी की तह लगाकर उसे एक आकार दिया जाता है. इसके बाद इसे सुखाया जाता है. सूखने के बाद मूर्तियों के ऊपर सजावट शुरू की जाती है.

प्रतापगढ़ः दिवाली के दिन लोग अपने घरों में गणेश और लक्ष्मी की मूर्ति रखकर पूजा करते हैं और परिवार के सुख-समृद्धि की कामना करते हैं. महिला मूर्तिकार फूल कुमारी प्रजापति ने बताया कि हम लोग पूरे परिवार के साथ मिलकर दिवाली आने से 4 माह के पहले से ही मूर्ति बनाने का काम शुरू कर देते हैं, लेकिन इस बार कोविड-19 की वजह से व्यापार पर बहुत ज्यादा फर्क पड़ा है. इसलिए बस कुछ हफ्तों पहले से मूर्ति बनाने का कार्य किया जा रहा है.

गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति बनाने में जुटे मूर्तिकार.

छोटे बच्चे भी बटाते हैं हाथ
छोटे-छोटे बच्चे भी मूर्ति बनाने में बड़े उत्साह के साथ जुटे हुए हैं. मूर्ति बनाने की कला छोटे बच्चों ने भी सीख ली है. निखिल प्रजापति ने बताया कि लॉकडाउन के कारण स्कूल बंद होने की वजह से हम लोग घरों में है, तो अपने दादा-दादी और मम्मी-पापा हाथ बंटा लेते हैं. चाचा ने हमें मूर्ति बनाने का काम सिखाया है और हम भी आज मूर्ति बना रहे हैं, इसके साथ पढ़ाई भी करते हैं.

दिवाली से पहले होने लगती है तैयारी
वहीं एक छोटी सी बच्ची भी मूर्ति बनाने का काम कर रही है. बच्ची नेहा का कहना है कि हम लोग का परिवार जब दिवाली आने वाली रहती है तो उसके कुछ महीनों पहले से ही तैयारियां में जुट जाते हैं. पेंटिंग वगैरह करके मूर्ति को अंतिम रूप दिया जाता है उसके बाद मार्केट में बेची जाती है. महिलाएं एकत्रित होकर देव जागरण के लिए पारंपरिक लोकगीत गाती हैं.

मूर्ति का है पुश्तैनी धंधा
मूर्तिकार रामा देवी का कहना है कि इस बार कोरोना वायरस के कारण धंधा कम हुआ है. यह काम पुश्तैनी से करते चले आ रहे हैं और दुकान लगेगी कि नहीं लगेगी इसका कुछ कह पाना मुश्किल है. अबकी बार मूर्ति कम बना पाए हैं. भगवती प्रसाद कुंभकार ने बताया कि मूर्ति बिक्री से 15 हजार बचत होने की उम्मीद है.

तालाब की मिट्टी से बनती है मूर्ति
मूर्तिकार इन मूर्तियों को पूरे दिन बड़ी तल्लीनता के साथ बनाने में जुटे हुए हैं. मूर्ति बनाने के लिए पहले तालाब की मिट्टी को तैयार किया जाता है. इसके बाद मूर्ति का आधार बनाने हैं. आधार पर मिट्टी की तह लगाकर उसे एक आकार दिया जाता है. इसके बाद इसे सुखाया जाता है. सूखने के बाद मूर्तियों के ऊपर सजावट शुरू की जाती है.

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