पीलीभीत: सांसद वरुण गांधी दो दिवसीय दौरे पर रविवार को पीलीभीत पहुंचे. इस दौरान सीमा खमरिया पुल पर कार्यकर्ताओं ने उनका स्वागत किया. इसके बाद ग्राम सिमरिया, महाराजपुर, रुद्रपुर, जटपुरा, उदय्यापुर, लाह, गजरौला, बिलहारी, दुधिया खुर्द, धर्मापुर, नौगवा आदि गांवों में जनसंवाद किया. सांसद ने कहा कि पिछले 5 साल से कोशिश है कि जो देश के बुनियादी मुद्दे हैं, उन पर हम संघर्ष करें. लेकिन, चिंतित इस बात से हूं कि मौजूदा अवसरों की खाई बढ़ती जा रही है.
सांसद वरुण गांधी ने कहा कि करोड़ों लोग संघर्ष करते हैं. इस उम्मीद के साथ कि आने वाली पीढ़ी को संघर्ष न करना पड़े. लोग इमारत को मजबूत करने के लिए अपने पारिवारिक मान-सम्मान को सशक्त करने के लिए हाथ-पैर मारते हैं. समस्याएं तब आती हैं, जब एक व्यक्ति को रास्ता पूरी तरह खाली मिलता है. वहीं, दूसरे व्यक्ति को रास्ता ही नहीं दिया जाता. यह कैसा देश बनता जा रहा है.
सांसद ने कहा कि राजनीति का एक मुख्य बिंदु होता है कि यदि बुनियादी समस्याओं के ऊपर प्रकाश न डाला जाए तो समस्या का समाधान कभी नहीं हो सकता. आखिर ऐसा क्यों है? आज बड़ी सरकारी योजनाओं के तहत सारा नया रोजगार संविदा पर है. आपके गांव में कई संविदाकर्मी आशा बहू, शिक्षा मित्र, आंगनबाड़ी होंगे, जो सभी बहुत दुखी हैं. उनका मानदेय पिछले 8-10 साल से बढ़ा नहीं है. उनका न स्थायीकरण हुआ और न ही पेंशन, न इंश्योरेंस है न कोई अन्य लाभ है. मैं संविदा के रोजगार के खिलाफ नहीं हूं. मेरा कहना है कि महंगाई के आधार पर इनका भी मानदेय बढ़ाया जाए. इंश्योरेंस का लाभ दिया जाए. स्थायीकरण किया जाये, ताकि उनको भी लगे कि अब उनकी भी वैल्यू हैं.
लोन व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए सांसद ने कहा कि पिछले 10 साल में 13 लाख करोड़ माफ किए गए हैं. इनमें से अधिकतर लोन उद्योगपतियों के माफ किए गए हैं. किसी गरीब का एक पैसा भी माफ नहीं हुआ है. सांसद ने कहा कि अगर गांव का एक सामान्य आदमी लोन लेता है और वापस नहीं देता है, तो उसके घर की कुर्की हो जाती है. उसका अपमान होता है, उसकी सारी स्थाई संपत्ति जब्त कर दी जाती है. लेकिन, उद्योगपतियों के साथ ऐसा नहीं होता हैं. उनका लोन माफ हो जाता है, क्या ऐसा होना चाहिए?
सांसद वरुण गांधी ने अग्निवीर योजना पर सवाल उठाते हुए कहा कि अग्निवीर के तहत भर्ती होने वाले 50% युवाओं को बाहर निकाल दिया जाएगा. गांव में उनको कोई भी रोजगार नहीं मिलेगा. वह छोटे छोटे काम करने को मजबूर होंगे. क्या ऐसे में देश और वर्दी का यह अपमान नहीं हैं. क्या देश का मनोबल नहीं गिरेगा. जो लाखों लोग हटाएंगे जाएंगे, उनकी कौन जिम्मेदारी लेगा. इन युवाओं ने हथियार चलाना सीखा, फुल ट्रेनिंग ली. अब वह गांव में बेरोजगार रहेंगे तो क्या सुखी रहे पाएंगे. देश नारों से नहीं, बल्कि नीतियों से चलता है. सांसद ने कहा कि मेरा मत है कि लोग खेती करें. लेकिन, आज की पीढ़ी खेती की ओर नहीं आना चाहती है. क्योंकि, खेती में न तो समय से पैसा मिलता है और न ही कोई भुगतान होता है. कुछ भी स्थायी नहीं है. इसकी वजह से अब लोग खेती करना नहीं करना चाहते. जो चिंता का विषय है.
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