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रामपुर तिराहा कांड में न्याय का इंतजार, इस दिन होगी मुजफ्फरनगर फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई - Uttarakhand formation movement

28 साल बीतने के बावजूद उत्तराखंड गठन आंदोलन में शहीद हुए लोगों के स्वजन इंसाफ को भटक रहे हैं. मुजफ्फरनगर फास्ट ट्रैक कोर्ट में सोमवार को इस मामले सुनवाई होगी.

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रामपुर तिराहा कांड
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Published : Jun 26, 2022, 9:34 PM IST

मुजफ्फरनगर: लगभग 28 साल बीतने के बावजूद उत्तराखंड गठन आंदोलन में शहीद हुए लोगों के स्वजन इंसाफ को भटक रहे हैं. मामला फास्ट ट्रैक कोर्ट में ट्रांसफर हुए भी सात महीने से ज्यादा समय हो गया है, लेकिन सुनवाई आगे नहीं बढ़ सकी. कोर्ट में सोमवार को फिर तारीख है, लेकिन सीबीआई की ओर से पैरवी के लिए अधिवक्ता नियुक्त न होने के चलते कार्यवाही आगे बढ़ने की संभावना है.

दरअसल, तीन दशक पहले पहाड़ों में अलग उत्तराखंड की मांग धीरे-धीरे बढ़ने लगी थी. अक्टूबर 1994 में उत्तराखंड निर्माण के लिए दिल्ली कूच का कार्यक्रम रखा गया था और एक अक्टूबर को उत्तराखंड से गाड़ियों में भरकर आंदोलनकारियों ने दिल्ली के लिए कूच किया था. शाम के समय जैसे ही आंदोलनकारियों की गाड़ियां जिले के छपार थाना क्षेत्र के रामपुर तिराहे पर पहुंची, तो उन्हें बेरीकैड कर रोक लिया गया. विरोध बढ़ने के चलते पुलिस ने फायरिंग कर दी. इसमें सात आंदोलकारियों के शहीद होने की बात सामने आई है. महिलाओं के साथ अभद्रता हुई, लेकिन स्थानीय निवासियों ने आंदोलनकारियों की भरपूर मदद की.

यह भी पढ़ें- राज्यसभा सांसद प्रमोद तिवारी ने कहा नौजवानों के साथ हो रही वादा खिलाफी

सीबीआई ने की थी जांच, दर्ज कराए थे सात मुकदमे

उत्तराखंड की मांग को हुए संघर्ष में सात लोगों की जान चली गई थी. इनमें देहरादून नेहरू कॉलोनी निवासी रविंद्र रावत उर्फ गोलू, भालावाला निवासी सतेंद्र चौहान, बदरीपुर निवासी गिरीश भदरी, अजबपुर निवासी राजेश लखेड़ा, ऋषिकेश निवासी सूर्यप्रकाश थपलियाल, ऊखीमठ निवासी अशोक कुमार और भानियावाला निवासी राजेश नेगी की मौत की पुष्टि हुई थी. इसके बाद 1995 में पूरे घटनाक्रम की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी. जांच कर सीबीआई ने 7 मामलों में चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की थी. इनमें अलग-अलग कारणों से 3 मुकदमे खत्म हो चुके हैं और 4 मुकदमे अभी भी विचाराधीन हैं. इन मामलों में तत्कालीन डीएम अनंत कुमार सिंह और एसपी आरपी सिंह आज भी आरोपी है.

वहीं, उत्तराखंड आंदोलन में शहीद हुए लोगों और महिलाओं के साथ अभद्रता के मुकदमों की सुनवाई एसीएजेएम-2 कोर्ट में विचाराधीन थी. नवंबर 2021 में सभी मुकदमे अपर सिविल जज सीनियर डिवीजन मयंक जायसवाल की फास्ट ट्रैक कोर्ट में स्थानांतरित हो गए थे. उत्तराखंड आंदोलनकारी संघर्ष समिति की और से पैरवी के लिए पैनल में रखे गए एडवोकेट अनुराग वर्मा कहते हैं कि एफटीसी में मुकदमे ट्रांसफर होने के बाद पीड़ितों को लगा था कि शायद उन्हें अब शीघ्र न्याय मिल जाएगा. सीबीआई की ओर से अधिवक्ता नियुक्त न होने के कारण सुनवाई आज तक नहीं हो पाई है.

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मुजफ्फरनगर: लगभग 28 साल बीतने के बावजूद उत्तराखंड गठन आंदोलन में शहीद हुए लोगों के स्वजन इंसाफ को भटक रहे हैं. मामला फास्ट ट्रैक कोर्ट में ट्रांसफर हुए भी सात महीने से ज्यादा समय हो गया है, लेकिन सुनवाई आगे नहीं बढ़ सकी. कोर्ट में सोमवार को फिर तारीख है, लेकिन सीबीआई की ओर से पैरवी के लिए अधिवक्ता नियुक्त न होने के चलते कार्यवाही आगे बढ़ने की संभावना है.

दरअसल, तीन दशक पहले पहाड़ों में अलग उत्तराखंड की मांग धीरे-धीरे बढ़ने लगी थी. अक्टूबर 1994 में उत्तराखंड निर्माण के लिए दिल्ली कूच का कार्यक्रम रखा गया था और एक अक्टूबर को उत्तराखंड से गाड़ियों में भरकर आंदोलनकारियों ने दिल्ली के लिए कूच किया था. शाम के समय जैसे ही आंदोलनकारियों की गाड़ियां जिले के छपार थाना क्षेत्र के रामपुर तिराहे पर पहुंची, तो उन्हें बेरीकैड कर रोक लिया गया. विरोध बढ़ने के चलते पुलिस ने फायरिंग कर दी. इसमें सात आंदोलकारियों के शहीद होने की बात सामने आई है. महिलाओं के साथ अभद्रता हुई, लेकिन स्थानीय निवासियों ने आंदोलनकारियों की भरपूर मदद की.

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सीबीआई ने की थी जांच, दर्ज कराए थे सात मुकदमे

उत्तराखंड की मांग को हुए संघर्ष में सात लोगों की जान चली गई थी. इनमें देहरादून नेहरू कॉलोनी निवासी रविंद्र रावत उर्फ गोलू, भालावाला निवासी सतेंद्र चौहान, बदरीपुर निवासी गिरीश भदरी, अजबपुर निवासी राजेश लखेड़ा, ऋषिकेश निवासी सूर्यप्रकाश थपलियाल, ऊखीमठ निवासी अशोक कुमार और भानियावाला निवासी राजेश नेगी की मौत की पुष्टि हुई थी. इसके बाद 1995 में पूरे घटनाक्रम की जांच सीबीआई को सौंप दी गई थी. जांच कर सीबीआई ने 7 मामलों में चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की थी. इनमें अलग-अलग कारणों से 3 मुकदमे खत्म हो चुके हैं और 4 मुकदमे अभी भी विचाराधीन हैं. इन मामलों में तत्कालीन डीएम अनंत कुमार सिंह और एसपी आरपी सिंह आज भी आरोपी है.

वहीं, उत्तराखंड आंदोलन में शहीद हुए लोगों और महिलाओं के साथ अभद्रता के मुकदमों की सुनवाई एसीएजेएम-2 कोर्ट में विचाराधीन थी. नवंबर 2021 में सभी मुकदमे अपर सिविल जज सीनियर डिवीजन मयंक जायसवाल की फास्ट ट्रैक कोर्ट में स्थानांतरित हो गए थे. उत्तराखंड आंदोलनकारी संघर्ष समिति की और से पैरवी के लिए पैनल में रखे गए एडवोकेट अनुराग वर्मा कहते हैं कि एफटीसी में मुकदमे ट्रांसफर होने के बाद पीड़ितों को लगा था कि शायद उन्हें अब शीघ्र न्याय मिल जाएगा. सीबीआई की ओर से अधिवक्ता नियुक्त न होने के कारण सुनवाई आज तक नहीं हो पाई है.

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