मुजफ्फरनगर: रामपुर तिराहा गोलीकांड की भयावह स्थिति आज भी लोगों को याद है. यह घटना 29 साल पहले 2 अक्टूबर 1994 को हुई थी. उत्तराखंड को कलंकित करने वाले इस मामले में पीड़ितों से हथियारों की फर्जी बरामदगी मामले में बुधवार को सुनवाई हुई. जहां कोर्ट में बचाव पक्ष की ओर से कुछ साक्ष्य प्रस्तुत किए गए. मामले की सिविल जज सीनियर डिवीजन मयंक जायसवाल ने सुनवाई की.
उत्तराखंड से आए अधिवक्ता ने बताया कि सिविल जज सीनियर डिवीजन की अदालत में सीबीआई बनाम बृज किशोर की पत्रावली की सुनवाई हुई. बचाव पक्ष की ओर से प्रदीप शर्मा का साक्ष्य कराया गया. जहां शामली के झिंझाना थाने के तत्कालीन इंस्पेक्टर रहे बृज किशोर सहित दो लोग आरोपी हैं. आरोपी बृज किशोर और अनिल अदालत में पेश हुए.
अधिवक्ता ने बताया कि आंदोलनकारियों पर फर्जी हथियार बरामदगी के मामले में बचाव पक्ष की और से सफाई में गवाह पत्रकार प्रदीप शर्मा को पेश किया गया. बचाव पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता सुरेन्द्र शर्मा ने बताया कि प्रदीप शर्मा ने अपने बयान में बताया कि घटना के दिन पुलिस ने उसके सामने अवैध हथियार बस से बरामद किए थे. सिविल जज सीनियर डिवीजन विशेष कोर्ट के जज मयंक जायसवाल ने गवाह से जिरह के लिए 30 अक्टूबर का समय नियत किया है.
बता दें कि एक अक्तूबर 1994 को अलग-अलग राज्य बनवाने के लिए उत्तराखंड से बसों में सवार होकर आंदोलनकारी दिल्ली के जंतर-मंतर के लिए निकले थे. देर रात 2 अक्टूबर को रामपुर तिराहा पर पुलिस ने आंदोलनकारियों को रोकने का प्रयास किया था. उन्हें बलपूर्वक रोकने का प्रयास किया गया. इस दौरान पुलिस की फायरिंग में 7 आंदोलनकारियों की मौत हो गई. मामले में महिलाओं के साथ रेप करने का भी आरोप लगा था. सीबीआई के जांच के बाद इस मामले की अलग-अलग सुनवाई अदालत में हो रही है. जबकि उत्तराखंड की आंदोलनकारी महिलाओं से रेप के मामले में बुधवार को अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश कोर्ट संख्या-7 में सुनवाई नहीं हो सकी. न्यायाधीश शक्ति सिंह के अवकाश पर होने के कारण सुनवाई टल गई है.
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