मुजफ्फरनगर: गौ सेवा से बढ़कर कोई सेवा नहीं इसे चरितार्थ कर रही है शहर की बेटी जैस्मिन मलिक. जी हां दिन भर ऑफिस का काम करके जैस्मिन सुबह शाम गायों की सेवा करती है. उन्होंने शिवजी के नंदियो का घर नाम से दो गौशाला भी चलाई हुई है. इस सेवा में जैस्मिन 2 वर्षों से लगी हुई है. वह छोटे-छोटे गाय के बछड़े को जीमाने, उनकी देखभाल और उनके चारा का पूर्ण खर्च भी उठाती है.
ईटीवी भारत से खास बात-चीत में जैस्मिन मलिक ने बताया सबसे पहले मुझे एक बछड़ा, जो की कुत्तों से बचने के लिए नाले में छिपा बैठा था. वह मिला था और उसे अपने पिता द्वारा नाले से निकलवा कर उसकी सेवा की. धीरे-धीरे हौसला बढ़ा तो और छोटे-छोटे गाय, बछड़ों को लाकर उनकी सेवा करने लगी. धीरे-धीरे दो गौशाला शिवजी के नंदियों का घर के नाम से किराया देकर गौशाला शुरू की. इसके बाद गोवंश की संख्या बढ़ती गई. जैसमीन करीबन 35 गोवंश की सेवा कर रही है. जैस्मिन ने बताया कि प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की तरफ से उसे किसी तरह की कोई आर्थिक मदद नहीं मिलती है, लेकिन कुछ पड़ोसी और दोस्त ने इस सेवा में मेरा हाथ बटाया.
जैस्मिन ने बताया कि यह सब गोवंश प्यार और गुस्सा भी करते हैं. बताया कि बछड़ों को कोई उठाकर भी ले जाता था. मुझे अपनी कमाई ही नहीं अपनी जान भी देनी पड़े तो जब भी इन पशुओं की सेवा करती रहूंगी. पशुओं से बहुत लगाव है. यह बहुत थका देने वाला काम है. जब मैं देखती हूं कि मैं क्या कमा रही हूं, तो मैं इन की जान बचा रही हूं और बछड़े मेरा इंतजार करते रहते हैं. मैं उनकी मां की तरह हूं. मेरी सबसे बड़ी कमाई यही है. मेरा मन जब मैं बछड़ों को देख लेती हूं तो बहुत खुश रहता है. जैसमीन ने बताया कि लंपी वायरस से भी मेरे कई गोवंश मरे. मैं पिछले 5 सालों से जॉब करती आ रही हूं. सोशल मीडिया पर भी इन सब के बारे में बताती हूं कि वह मेरी कुछ सहायता करें.
जैस्मिन ने कहा कि मैंने सोचा कि मैं खुद रुपए इकट्ठा करके एक जमीन का टुकड़ा लेकर इन बछड़ों के लिए आवास बना दूं. मेरे बछड़े भी उठने लगे थे. आज एक, कल दो और फिर एक दिन मेरा एक गोवंश मुझे मिल गया. वह इतना रो रहा था और डर रहा था. फिर मैंने उसे अपनी गोद में लेकर सहलाया और फिर मैंने दो जगहों को किराए पर लेकर जो कि एक जगह ₹4000 में और दूसरी जगह 1800 में है, मैं यहां के एसडीएम साहब से भी मिली थी और उन्होंने मुझे सहायता का आश्वासन दिया था और मैं इन बछड़ों और गौ को चाट, पानीपुरी भी खिलाती हूं और फल से लेकर घास (चारा) तक हर चीज देती हूं. इससे मुझे बहुत खुशी मिलती है.