मुजफ्फरनगर : जिले में पकिस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री नवाब लियाकत अली के वंशजों की लाला दीपचंद्र को बेची गयी जमीन के वर्तमान में विवादित भूमि के स्वामित्व रघुराज स्वरूप के वंशजों पर उपजिलाधिकारी कोर्ट ने एक आदेश के तहत शत्रु संपत्ति घोषित की. जबकि जमीन पर काबिज रघुराज के वंशजों का कहना है की उस जमीन का सुप्रीम कोर्ट के निर्देशन में कराया गया बैनामा और स्वामित्व के सभी अभिलेख उनके पास सुरक्षित हैं. यह जमीन शत्रु संपत्ति नहीं बल्कि खरीदी गयी जमीन है. समाजसेवी कुंवर आलोक स्वरूप ने आरोप लगाया है कि राजनीतिक कारणों से शासन और प्रशासन उनकी निजी सम्पत्ति को विवादित बना रहा है और उनका उत्पीड़न कर रहा है.
दरअसल समाजसेवी कुंवर आलोक स्वरूप और उनके छोटे भाई कुंवर अनिल स्वरूप ने आज एक प्रेसवार्ता की. इस दौरान उन्होंने बताया कि उनकी निजी स्वामित्व भूमि को शत्रु संपत्ति मानते हुए उस जमीन को राज्य सरकार में दर्ज किये जाने से सम्बंधित प्रकरण में पिछले कुछ दिनों से उनका उत्पीड़न किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि उप जिलाधिकारी सदर ने एक आदेश 31 दिसम्बर 2020 को पारित किया है.
इसमें उन्होंने आदेश किया है कि ग्राम-युसुफपुर बाहर हदूद के खाता सं. 3 खसरा नं. 37, 39, 43, 44, एवं 45 हे., ग्राम-युसुफपुर अन्दर हदूद के खाता सं. 7 खसरा नं. 182, 2/2, 361, 363, 364, 37, 374, 375, 376, 378 हे., ग्राम-युसुफपुर नॉन जेडए के खाता सं. 5 खसरा नं. 365, 366, खाता सं. 7 के खसरा नं. 371, 372, 373, 377, 379, 382, 383, व 384 हे. तथा खाता सं. 12 खसरा नं. 2/3 व 2/4 हे. से वर्तमान प्रविष्टि को धारा-38(5) उप्र राजस्व संहिता, 2006 के अन्तर्गत निरस्त कर भूमि को राज्य सरकार में दर्ज किया जाता है. कुंवर आलोक स्वरूप ने कहा कि आदेश निराधार है, न्यायहित में नहीं है तथा नियम विरूद्ध है.
उन्होंने बताया कि उप जिलाधिकारी सदर के आदेश में है कि प्रतिवादी आलोक और अनिल को नोटिस देकर जवाब और साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर प्रदान दिया गया, लेकिन उनके द्धारा जवाब नहीं किया गया. उन्होंने बताया कि वास्तविकता यह है कि हमनें नोटिस की तामील करते हुए उप जिलाधिकारी सदर को प्रार्थनापत्र भेजकर अवगत कराया था, कि कोरोना महामारी के मद्देनजर विशेष रूप से वरिष्ठ नागरिकों को लॉकडाउन में आवागमन कम करने के लिए सचेत किया है. इसलिए मैं घर से कही भी बाहर नहीं जा रहा हूं. वहीं जुलाई-अगस्त की तिथि नियुक्त करने की मांग की थी, लेकिन आजतक भी सुनवाई की तिथि से अवगत नहीं कराया गया है. आलोक स्वरूप और अनिल स्वरूप ने कहा कि यह कहना कि हमने जानबूझकर नोटिस प्राप्त नहीं किया और अपना पक्ष नहीं रखा, बिल्कुल बेबुनियाद और निराधार है. कोरोना महामारी में एकपक्षीय आदेश पारित करना, वो भी सुनवाई किये बिना किसी भी दशा में न्यायोचित नहीं है.