चन्दौलीः बसपा नेता राम बिहारी चौबे हत्याकांड मामले में भाजपा विधायक सुशील सिंह की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट को नकारते हुए एसआईटी गठित करते हुए खुद की निगरानी में जांच के आदेश दिए हैं. वहीं आरोपी बीजेपी विधायक सुशील सिंह का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का वह सम्मान करते हैं. वे एसआईटी जांच के लिए नियुक्त जांच अधिकारी का पूरा सहयोग करेंगे. इस हत्याकांड से उनका कोई संबंध नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट ने क्लोजर रिपोर्ट को किया दरकिनारजस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने बसपा नेता की हत्या के मामले में पुलिस द्वारा चंदौली के सैयदराजा के भाजपा विधायक सुशील सिंह को लेकर दायर की गई क्लोजर रिपोर्ट को दरकिनार कर दिया. कोर्ट ने फिर से जांच करने का आदेश दिया है. इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने इस जांच की निगरानी का भी फैसला किया है.
बदल दिए गए 8 जांच अधिकारी बसपा नेता के बेटे ने याचिका दायर कर जांच में खामियों का जिक्र किया था. पीठ ने पाया कि चार दिसंबर, 2015 को एफआईआर दर्ज की गई थी. इस मामले में आठ जांच अधिकारियों को बदला गया था. काफी समय तक जांच लंबित थी और सात सितंबर 2018 में अदालत द्वारा नोटिस किए जाने के बाद नवंबर 2019 में सुशील सिंह के खिलाफ मामले को बंद कर दिया गया.
जांच से अधिक छिपाने की कोशिश सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा है कि इस मामले में जांच से अधिक छिपाने की कोशिश की गई. जांच और क्लोजर रिपोर्ट की प्रवृत्ति गैरजिम्मेदाराना और आनन-फानन वाली है. पीठ ने पुलिस की उस रिपोर्ट को दरकिनार कर दिया. जिनमें इस आधार पर सुशील सिंह के खिलाफ मामला बंद करने की गुहार लगाई गई थी कि मृतक का बेटा कोई भी ठोस सबूत देने में विफल रहा.
सत्यार्थ अनुरुद्ध पंकज के नेतृत्व में SIT का गठन
इस हत्याकांड में वाराणसी पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट पर तल्ख टिप्पणी करते हुए बीजेपी विधायक सुशील सिंह को क्लीन चिट दिए जाने पर सवाल खड़े किए है. SC ने आईपीएस सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज के नेतृत्व में SIT का गठन किया है. साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है की सत्यार्थ अनिरुद्ध को उनकी टीम चुनने और जांच में सहयोग करें.
सुप्रीम कोर्ट का सम्मान, जांच अधिकारी को मिलेगा पूरा सहयोग
वहीं इस बाबत सुशील सिंह का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का सम्मान करते हैं. मामले की जांच के लिए एसआईटी के जिस अधिकारी को नियुक्त किया है, उसे पूरा सहयोग किया जाएगा. मृतक रामबिहारी चौबे से हमलोगों के अच्छे ताल्लुकात थे. चाचा ब्रजेश सिंह से भी अच्छे संबंध थे, लेकिन उनके बेटे हत्या के बाद महत्वाकांक्षी हो गए. वे पैसे और विधानसभा टिकट की मांग करने लगे लेकिन चाचा ने ऐसा नहीं किया तो वे इस तरह आरोप लगाने. यहीं उनका संबंध हमारे विरोधी मुख्तार अंसारी और मुन्ना बजरंगी जैसे लोगों हैं. उन्हीं के इशारे पर वो इस तरह का आरोप लगा रहे हैं. हम लोग राजनीतिक व्यक्ति हैं. अपराध या अपराधियों से हमारा कोई संबंध नहीं है.
सुशील सिंह की साजिशकर्ता की भूमिका आई थी सामने
बता दें कि 2015 में बसपा नेता राम बिहारी चौबे की हत्या हुई थी. जिसमें शुरुआती जांच में सुशील सिंह की भूमिका संदिग्ध पाई थी और हत्या की साजिश रचने का आरोप लगा था. यहीं नहीं हत्याकांड के मुख्य आरोपी अजय मरदह की गिरफ्तारी के विरोध में उतर गए थे. चार्जशीट में नाम डाले जाने को लेकर तत्कालीन वाराणसी एसपी नितिन तिवारी से भी तनातनी की बात सामने आई थी.
विधानसभा चुनाव में थे आमने-सामने
गौरतलब है कि बसपा नेता रहे राम बिहारी चौबे और बीजेपी विधायक सुशील सिंह के बीच राजनीतिक वर्चस्व की लड़ाई रही है. चन्दौली के सकलडीहा सीट से दोनों व्यक्ति विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं. जिसमें सुशील सिंह नजदीकी अंतर से चुनाव जीत कर आए थे. उसके बाद से ही दोनों में अदावत चल रही थी. इस बीच वाराणसी के चौबेपुर में बाइक सवार बदमाशों ने राम बिहारी चौबे की गोली मारकर हत्या कर दी थी.