चंदौली: देश और दुनिया में आधुनिकता की इस दौड़ में ऐसी होड़ मची है कि प्रकृति संग खिलवाड़ करने से भी लोग बाज नहीं आ रहे है. हालांकि इसका नतीजा प्राकृतिक आपदा के रूप में सबके सामने है. इसके बावजूद लोग नए पेड़ पौधे लगाने व संरक्षित करने के उनकी कटाई कर सुख सुविधाओं को बढ़ाने में जुटे है. नतीजा ये है की नगरों कस्बों में कंक्रीट के जंगल खड़े हो रहे है. जिसका सीधा असर मानव के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है. हालांकि पर्यावरणविद इसके जनजागरूकता की बात कह रहे है.
स्वास्थ्य पर पड़ेगा पेड़ों की कटाई का असर
यूपी, बिहार बॉर्डर पर बसा चन्दौली वन संपदा से भरपूर है, लेकिन यहां भी हालात बदल रहे है. जंगलों में आर्थिक लाभ के लिए चोरी छिपे कटान जारी है. नगरों कस्बों में हालात सबसे ज्यादा खराब है. बढ़ती आबादी के साथ पेड़ों का कटान भी तेजी से हो रहा है. यहां पेड़ों की अंधाधुन कटाई के साथ ही कंक्रीट के जंगल तैयार हो रहे है. जिसका सीधाल असर पर्यावरण पर पड़ा है.
प्रकृति की संरक्षा के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी
इस बाबत ईटीवी भारत की टीम ने पर्यावरण प्रेमियों और जिम्मेदार अधिकारियों से बात की तो उन्होंने कहा कि पर्यावरण से खिलवाड़ मानव जाति के लिए खतरनाक है. सभी लोगों को इसके संरक्षण के लिए सजग होने की जरूरत है. सरकार और आम जनमानस का सामूहिक प्रयास ही इस अभियान को सफल बना सकता है.
जमीन की कीमतों और उपयोग को लेकर बढ़ी है हवस
समाजसेवी धर्मेंद्र सिंह ने कहा कि जमीन को कीमतों और उसके उपयोग को लेकर उसका जो यूटीलाइजेशन को लेकर लोगों में हवस बढ़ी है. इसको लेकर शहर और गांवों में भी जो पुराने पेड़ थे. सभी को काट दिया गया. उसकी जगह कंक्रीट के जंगल तैयार कर दिए गए. जिससे पर्यावरण को काफी नुकसान हुआ है. ऐसे में जिम्मेदार विभाग और जनता एक साथ मिलकर त्योहार के तौर मनाते हुए नए पेड़ पौधों के लगाने के साथ ही बढ़ने देना होगा. जिम्मेदार विभाग भी सिर्फ प्रचार प्रसार से हटकर ठोस रणनीति के साथ काम करना होगा.
भौतिकवादी युग मे अंधा हो गया है इंसान
पर्यावरण प्रेमी परशुराम सिंह ने कहा की प्रकृति का इनवायरमेंट हो या सोशल इनवायरमेंट दोनों के जड़ में पेड़ ही है. जिसके खत्म होने का सीधा असर मनुष्य के स्वास्थ्य पर पड़ता है. इस भौतिकवादी युग इतने अंधे ही गए है. उसके आगे कुछ दिखाई नहीं दे रहा है. पेड़ों को काटकर भवन सड़क आदि का निर्माण किया जा रहा है. इसका परिणम भयावह हो रहा है. प्रकृति से दूरी का सीधा असर मानव सभ्यता पर पड़ रहा है. डायनामाइट से पहाड़ तोड़े जा रहे है नदियां के इंक्रोचमेंट के साथ ही कैमिकल डालकर मिट्टी के मूल में परिवर्तन देना है. स्वार्थ में लोग प्रकृति से दूर होते जा रहे है.
पीपल और बरगद है नेचर के ऑक्सीजन प्लांट
उन्होंने कोरोना का उदाहरण देते हुए कहा कि यह कुछ और नहीं बल्कि नेचर से खिलवाड़ का नतीजा है. लोगों को बड़े-बड़े भवनों एसी कमरों में रहने की आदत होती जा रही है. जिसका सीधा असर उनके शरीर पर पड़ रहा है. कोरोना काल में लोग ऑक्सीजन की एक-एक बूंद के लिए मारामारी कर रहे है. जबकि नेचर ने 17 से 18 हजार मीट्रिक टन ऑक्सीजन उत्पादक पीपल और बरगद के पेड़ की अनदेखी कर रहा है. जबकि वैकल्पिक ऑक्सीजन के लिए लोग मारी मार कर रहे हैं.
चंदौली में बढ़ा है वनक्षेत्र का दायरा
चंदौली के डीएफओ दिनेश सिंह ने बताया कि नगरी शहरीकरण की तरफ बढ़ रही आबादी से पेड़ों की कटान में जरूर देती हुई है, लेकिन सरकार और वन विभाग इसके लिए सजग है और तमाम अभियान चलाकर वृहद स्तर पर वृक्षारोपण का कार्यक्रम कर रही है. इस साल जिले में 49 लाख पौधों का रोपण होना है. इसके लिए वन विभाग समेत अन्य विभागों को जिम्मेदारी दी गई है.सारी तैयारियां हो चुकी है.हालांकि उनका कहना है कि जिले में वन क्षेत्रों में कोई कमी नहीं है. सर्वे ऑफ इंडिया का हवाला देते हुए उन्होंने कहा है कि चन्दौली और सोनभद्र में इसका दायरा बढ़ा है.
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