चंदौलीः 'लिख रहा हूं मैं अंजाम जिसका कल आगाज आएगा, मेरे लहू का हर एक कतरा इंकलाब लाएगा. 'मैं रहूं या न रहूं पर ये वादा है तुमसे कि मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आएगा.' शहीद ए आजम भगत सिंह की ये बातें वर्ष 1942 में शोला बन गई थी. वहीं, महात्मा गांधी ने भी 9 अगस्त 1942 को जब करो या मरो का सिंहनाद किया तो उसकी गूंज धानापुर और सैयदराजा की धरती तक पहुंची थी.
6 क्रांतिकारी हुए थे शहीदः धानापुर थाने में वीरों ने 16 अगस्त को और सैयदराजा थाने में 28 अगस्त 1942 को आजादी का तिरंगा फहरा कर आजादी की घोषणा कर दी थी. इस प्रयास में 16 अगस्त 1942 को धानापुर में हीरा सिंह, महंगू सिंह और रघुनाथ सिंह सैयदराजा में और 28 अगस्त को श्रीधर, फेकू राय और गणेश सिंह शहीद हो गए थे. इस दौरान दोनों जगहों पर दर्जनों क्रांतिकारी घायल भी हुए थे. धानापुर व सैयदराजा कांड की गूंज ब्रिटेन की संसद में भी गूंजा था और प्रधानमंत्री चर्चिल को बयान देने को मजबूर कर दिया था. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद ऐसे गौरवशाली पूर्वजों के व्यक्तित्व को समाज में जीवंत बनाए रखने के लिए सैयदराजा और धानापुर में शहीद स्मारक की स्थापना की गई है. यहां हर वर्ष देश के उन अमर शहीदों की याद में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. जो जगदम्बा प्रसाद मिश्र 'हितैषी' की लिखी इन पंक्तियों को चरितार्थ करते हैं कि "शहीदों की चिताओं पर लगेगें हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा".
थाने में दारोगा सहित 3 सिपाहियों जिंदा जला डाला: स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कामता प्रसाद विद्यार्थी के पौत्र आशीष विद्यार्थी बताते हैं कि 9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के मुंबई अधिवेशन में करो या मरो का एक नारा दिया तो पूरे देश की जनता इस आजादी की लड़ाई में कूद पड़ी थी. उसी दौरान जगह-जगह आंदोलन शुरू हुए और तमाम सरकारी कार्यालय पर तिरंगा फहराया गया. उसी पक्ष में 9 अगस्त को धानापुर में स्वतंत्रता सेनानी कांता प्रसाद विद्यार्थी की अगुवाई में इसकी योजना बनाई गई. लेकिन उस समय अंग्रेजी हुकूमत चौकन्ना हो चुकी थी. इसके बाद भी सैकड़ों की संख्या में स्वतंत्रता सेनानियों ने हाथों में तिरंगा लिए धानापुर थाने को घेर लिया. लोग थाने पर तिरंगा फहराने की जिद करने लगे. दारोगा ने तिरंगा फहराए जाने से मना कर दिया. इसके बाद उग्र हुए अंग्रेजी हुकूमत ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर गोलियां चलवा दी. इस बीच 3 क्रांतिकारी हीरा सिंह, रघुनाथ सिंह और मंहगू सिंह को गोली लग गई. गोली लगने के बाद तीनों वीर गति को प्राप्त हो गए. इससे क्रांतिकारियों का गुस्सा और भड़क गया. बताया जाता है कि लोगों ने थाने में दरोगा सहित 3 सिपाहियों को घेर कर जिंदा जला डाला था. जिसके बाद वीरों ने धानापुर थाने पर तिरंगा फहराया. इस घटना से पूरे देश में हलचल मच गई थी.
पीछे मत हटना, डटे रहना वीरोंः शहीदी धरती धानापुर के रहने वाले रिटायर्ड फौजी और जिला पंचायत सदस्य अंजनी ने बताया कि ऐसे वीर सपूतों का वंशज होना भी अभिमान योग्य है. स्वंय आगे बढ़ कर अपने मृत्यु को गले लगाना आसान काम नहीं होता है. 9 अगस्त 1942 को धानापुर में कांता प्रसाद विद्यार्थी की अगुवाई में तिरंगा फहराने की योजना बनाई गई थी. 28 अगस्त 1942 को सैयदराजा में थाने,रेलवे स्टेशन, पोस्ट ऑफिस पर तिरंगा फहराया जाने का निर्णय लिया गया था. इसके लिए दो-तीन जत्थे बनाए गए थे जो कि एक उत्तरी दिशा से था और दूसरा दक्षिण दिशा से था. उत्तरी दिशा से बौहारी बाबा की कुटिया से स्वर्गीय जगत नारायण पांडे, चंद्रिका शर्मा, रामनरेश सिंह ,जोखन सिंह, समेत लोगों का जत्था था. दक्षिणी सिरे से पंडित चंद्रिका शर्मा, देवनाथ दादा ,पराहु सिंह इत्यादि लोगों का जत्था था. दूसरे जत्थे में सैकड़ों लोगों की संख्या थी. यह भीड़ थाने पर झंडा फहराने के लिए आमादा थी. रास्ते में पंडित जगत नारायण दुबे को मना किया गया कि आप लोग वहां मत जाइए. अंग्रेज के सिपाही चारों ओर घेरा डाले हुए हैं. लेकिन जान की परवाह न करते हुए आजादी के दीवाने आगे बढ़ गए. यहां आते-आते रामसुधार पाण्डेय को गोली लग गयी थी. यहां रेलवे क्रासिंग पर ही वह गिर पड़े. इसी बीच वीर लक्ष्मण शास्त्री ने नारा दिया पीछे मत हटना, डटे रहना वीरों, फिर सब लोग आगे बढ़े और शहीद स्मारक पर झंडा फहरा दिया.
धानापुर कांड का इतिहासः गोरखपुर के चौरी-चौरा और काकोरी कांड की तरह धानापुर कांड भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है. हालांकि इसे उतना महत्व नहीं मिला. जितना मिलना चाहिए था. देश की आजादी से बहुत पहले धानापुर में स्वतंत्रता सेनानियों ने सबसे पहले तिरंगा फहराया था. महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे असहयोग आंदोलन के रुकने के बाद भी धानापुर में क्रांतिकारियों का जोश उफान पर रहा था.