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मुरादाबाद: गांव के बच्चों को पाठशाला लगाकर नि:शुल्क शिक्षा दे रहे युवक - free education to children of the village

उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में गांव लोधिपुर राजपूत में शिक्षित युवकों ने गांव के ही बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देकर शिक्षित करने का बीड़ा उठाया है. सरकार की लाख कोशिशों के बाद उत्तर प्रदेश में ग्रामीण क्षेत्रों के शिक्षण संस्थानों में शिक्षा का स्तर सुधर नहीं पाया है.

गांव के युवक कर रहे है बच्चों को शिक्षित.
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Published : Oct 25, 2019, 7:37 PM IST

मुरादाबाद: जिले के एक गांव के पढ़े शिक्षित युवकों ने गांव के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देने का जिम्मा उठाया है. करीब साठ से सत्तर बच्चों को रोज दो घंटे पढ़ाने के लिए गांव के ही एक मंदिर में पाठशाला लगती है. पाठशाला में पढ़ने आने वाले बच्चों में काफी उत्साह है.

शिक्षित युवकों ने बच्चों को शिक्षित करने का उठाया बीड़ा
गांव के ही शिक्षित युवकों ने गांव के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देकर शिक्षित करने का बीड़ा उठाया है. शहर से 15 किलोमीटर दूर लोदीपुर गांव में एक प्राइवेट स्कूल एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय है. प्राथमिक विद्यालय और प्राइवेट स्कूल में पढ़ने के बाद बच्चे पढ़ने लिखने में बहुत कमजोर है. बच्चों को पहाड़े, गिनती, महीने और सप्ताह के दिन तक याद नहीं है.

गांव के युवक कर रहे है बच्चों को शिक्षित.

इसको लेकर गांव के कुछ युवाओं को चिंता होने लगी तो चारों युवकों ने बच्चों को निशुल्क पढ़ाने के लिए गांव के ही एक मंदिर में शाम चार से छह बजे तक पाठशाला लगाकर पढ़ाने का काम शुरू किया. इस पाठशाला में करीब 60 से 70 बच्चों को पढ़ाया जा रहा है.

इसे भी पढ़ें-वाराणसीः नगर आयुक्त ने ठेला व्यापारियों को दिलाया 'पॉलीथिन मुक्त काशी' का संकल्प

शिक्षा में काफी पिछड़े थे हमारे गांव के बच्चे
पाठशाला चलाने वाले प्रेम ने बताया कि मैंने देखा कि हमारे समाज और गांव के बच्चे शिक्षा में काफी पिछड़े हुए है. मैंने अपने दोस्तों के साथ बात करके उन लोगों से अनुरोध किया है कि क्यों न हम थोड़ा टाइम निकालकर इन बच्चों को पढ़ाएं और इन्हें शिक्षित बनाएं.

प्रेम ने बताया कि पाठशाला में पढ़ाने वाले मेरे कुछ साथी विद्यार्थी भी हैं, जो अपने स्कूल के बाद इन बच्चों को शिक्षा देते है. मैं एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता हूं. दोपहर के बाद मैं फ्री हो जाता हूं और फिर शाम को 2 घंटे इन बच्चों को पढ़ाता हूं. इन बच्चों को हम हिंदी, इंग्लिश, गणित, सामाजिक विज्ञान के साथ सामाजिक जागरूकता की शिक्षा देते हैं.

हर रविवार होता है बच्चों का टेस्ट
हमने बच्चों से बात की और परखा कि बच्चे किस क्षेत्र में कमजोर हैं. उन्हीं बिंदुओं को नोट कर इन बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. हर रविवार को इन बच्चों का एक टेस्ट लिया जाता है, जिससे पता चलता है कि इन बच्चों में कितना इंप्रूवमेंट हुआ है.

पाठशाला शुरु करने में हुई थी परेशानी
हालांकि पाठशाला शुरू करने में कुछ परेशानी भी हुई. कुछ लोगों ने विरोध भी किया, लेकिन गांव वालों दोस्तों ने हमारा बहुत मनोबल बढ़ाया. हम शिक्षा दे रहे हैं और आगे भी शिक्षा देते रहेंगे.

प्रतिदिन दो घंटे चलती है बच्चों की क्लास
अंतिम कुमार ने बताया कि 2014 में मुरादाबाद शिक्षा ग्रहण करने के लिए आया था. इसी गांव में किराए के एक मकान में रहता हूं. जब मैंने देखा कि मेरे मित्र प्रेम ने पढ़ाई में कमजोर बच्चों के लिए एक पाठशाला शुरू की है. तो मैं भी इस पाठशाला में आकर बच्चों को पढ़ाने लगा. यहां आने वाले बच्चे बहुत गरीब परिवार से हैं और पढ़ने में भी बहुत कमजोर है. हम प्रतिदिन 2 घंटे में बच्चों को पढ़ाते हैं. गांव के बच्चों की शिक्षा में हालत ऐसी थी कि उनको गिनती भी याद नहीं थी.

यहां आने के बाद महीने, सप्ताह, और पहाड़ याद हो गए हैं. अभी अंग्रेजी कमजोर है. पाठशाला में आना बहुत अच्छा लगता है.
-खुशी, छात्रा

यह बच्चे समाज के लिए बहुत बढ़िया काम कर रहे हैं. यह पाठशाला में आने वाले बच्चों को कॉपी, पेंसिल, रबर, कटर फ्री देते हैं. अब बच्चे पढ़ाई लिखाई में बहुत सही है. प्राइमरी स्कूल में तो इंटरवेल में ही घर चले आते थे. बच्चे पढ़ाई लिखाई पर ध्यान नहीं देते थे. पाठशाला में आकर यह पढ़ रहे हैं तो थोड़ा उनका ज्ञान बढ़ रहा है.
-श्यामलाल, ग्रामीण

मुरादाबाद: जिले के एक गांव के पढ़े शिक्षित युवकों ने गांव के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देने का जिम्मा उठाया है. करीब साठ से सत्तर बच्चों को रोज दो घंटे पढ़ाने के लिए गांव के ही एक मंदिर में पाठशाला लगती है. पाठशाला में पढ़ने आने वाले बच्चों में काफी उत्साह है.

शिक्षित युवकों ने बच्चों को शिक्षित करने का उठाया बीड़ा
गांव के ही शिक्षित युवकों ने गांव के बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा देकर शिक्षित करने का बीड़ा उठाया है. शहर से 15 किलोमीटर दूर लोदीपुर गांव में एक प्राइवेट स्कूल एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय है. प्राथमिक विद्यालय और प्राइवेट स्कूल में पढ़ने के बाद बच्चे पढ़ने लिखने में बहुत कमजोर है. बच्चों को पहाड़े, गिनती, महीने और सप्ताह के दिन तक याद नहीं है.

गांव के युवक कर रहे है बच्चों को शिक्षित.

इसको लेकर गांव के कुछ युवाओं को चिंता होने लगी तो चारों युवकों ने बच्चों को निशुल्क पढ़ाने के लिए गांव के ही एक मंदिर में शाम चार से छह बजे तक पाठशाला लगाकर पढ़ाने का काम शुरू किया. इस पाठशाला में करीब 60 से 70 बच्चों को पढ़ाया जा रहा है.

इसे भी पढ़ें-वाराणसीः नगर आयुक्त ने ठेला व्यापारियों को दिलाया 'पॉलीथिन मुक्त काशी' का संकल्प

शिक्षा में काफी पिछड़े थे हमारे गांव के बच्चे
पाठशाला चलाने वाले प्रेम ने बताया कि मैंने देखा कि हमारे समाज और गांव के बच्चे शिक्षा में काफी पिछड़े हुए है. मैंने अपने दोस्तों के साथ बात करके उन लोगों से अनुरोध किया है कि क्यों न हम थोड़ा टाइम निकालकर इन बच्चों को पढ़ाएं और इन्हें शिक्षित बनाएं.

प्रेम ने बताया कि पाठशाला में पढ़ाने वाले मेरे कुछ साथी विद्यार्थी भी हैं, जो अपने स्कूल के बाद इन बच्चों को शिक्षा देते है. मैं एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता हूं. दोपहर के बाद मैं फ्री हो जाता हूं और फिर शाम को 2 घंटे इन बच्चों को पढ़ाता हूं. इन बच्चों को हम हिंदी, इंग्लिश, गणित, सामाजिक विज्ञान के साथ सामाजिक जागरूकता की शिक्षा देते हैं.

हर रविवार होता है बच्चों का टेस्ट
हमने बच्चों से बात की और परखा कि बच्चे किस क्षेत्र में कमजोर हैं. उन्हीं बिंदुओं को नोट कर इन बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. हर रविवार को इन बच्चों का एक टेस्ट लिया जाता है, जिससे पता चलता है कि इन बच्चों में कितना इंप्रूवमेंट हुआ है.

पाठशाला शुरु करने में हुई थी परेशानी
हालांकि पाठशाला शुरू करने में कुछ परेशानी भी हुई. कुछ लोगों ने विरोध भी किया, लेकिन गांव वालों दोस्तों ने हमारा बहुत मनोबल बढ़ाया. हम शिक्षा दे रहे हैं और आगे भी शिक्षा देते रहेंगे.

प्रतिदिन दो घंटे चलती है बच्चों की क्लास
अंतिम कुमार ने बताया कि 2014 में मुरादाबाद शिक्षा ग्रहण करने के लिए आया था. इसी गांव में किराए के एक मकान में रहता हूं. जब मैंने देखा कि मेरे मित्र प्रेम ने पढ़ाई में कमजोर बच्चों के लिए एक पाठशाला शुरू की है. तो मैं भी इस पाठशाला में आकर बच्चों को पढ़ाने लगा. यहां आने वाले बच्चे बहुत गरीब परिवार से हैं और पढ़ने में भी बहुत कमजोर है. हम प्रतिदिन 2 घंटे में बच्चों को पढ़ाते हैं. गांव के बच्चों की शिक्षा में हालत ऐसी थी कि उनको गिनती भी याद नहीं थी.

यहां आने के बाद महीने, सप्ताह, और पहाड़ याद हो गए हैं. अभी अंग्रेजी कमजोर है. पाठशाला में आना बहुत अच्छा लगता है.
-खुशी, छात्रा

यह बच्चे समाज के लिए बहुत बढ़िया काम कर रहे हैं. यह पाठशाला में आने वाले बच्चों को कॉपी, पेंसिल, रबर, कटर फ्री देते हैं. अब बच्चे पढ़ाई लिखाई में बहुत सही है. प्राइमरी स्कूल में तो इंटरवेल में ही घर चले आते थे. बच्चे पढ़ाई लिखाई पर ध्यान नहीं देते थे. पाठशाला में आकर यह पढ़ रहे हैं तो थोड़ा उनका ज्ञान बढ़ रहा है.
-श्यामलाल, ग्रामीण

Intro:एंकर:- सरकार की लाख कोशिशों के बाद उत्तर प्रदेश में ग्रामीण क्षेत्रों के शिक्षण संस्थानों में शिक्षा का स्तर सुधर नहीं पाया है. जिस वजह से गांव के ही पढ़े शिक्षित युवकों ने गांव के बच्चों को निशुल्क शिक्षा देने का जिम्मा उठाया है. करीब साठ से सत्तर बच्चों को रोज दो घंटे पढ़ाने के लिए गांव के ही एक मंदिर में पाठशाला लगती है. पाठशाला में पढ़ने वाले आने वाले बच्चों में तो उत्साह है साथ ही निशुल्क पाठ सालों से बच्चों के परिजन व गांव के लोग भी खुश.


Body:एंकर:- मुरादाबाद के गांव लोधिपुर राजपूत में शिक्षित युवकों ने गांव के ही बच्चों को निशुल्क शिक्षा देकर शिक्षित करने का बीड़ा उठाया है. शहर से 15 किलोमीटर दूर लोदीपुर गांव में एक प्राइवेट स्कूल एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय है. प्राथमिक विद्यालय प्राइवेट स्कूल में पढ़ने के बाद बच्चे पढ़ने लिखने में बहुत कमजोर है. बच्चों के पहाड़े, गिनती, महीने और सप्ताह के दिन तक याद नहीं थे. जिसको लेकर गांव के युवकों को चिंता होने लगी. गांव के चारों युवकों ने बच्चों को निशुल्क पढ़ाने के लिए गांव के ही एक मंदिर में शाम चार बजे से छह बजे तक करीब 60 से 70 बच्चों को एक पाठशाला लगाकर पढ़ाने का काम शुरू किया. गांव के लोगों को इन चारों युवकों पर गर्व है.
वीओ:- पाठशाला में पढ़ने वाली खुशी कक्षा चार की छात्रा है. उसका कहना है कि यहां आने के बाद उसको महीने, सप्ताह, और पहाड़ याद हो गए लेकिन अभी भी उसकी अंग्रेजी कमजोर है. पाठशाला में आना उसको बहुत अच्छा लगता है.


Conclusion:वीओ:- पाठशाला चलाने वाले प्रेम ने बताया कि हमने देखा कि हमारे समाज और हमारे गांव के बच्चे वे शिक्षा में काफी पिछड़े हुए है. मैंने अपने दोस्तों के साथ बात करके उन लोगों से अनुरोध किया है कि क्यों ना हम थोड़ा टाइम निकालकर इन बच्चों को पढ़ाएं और इन्हें शिक्षित बनाएं. पाठशाला में पढ़ाने आने वाले कुछ साथी मेरे विद्या विद्यार्थी भी रह चुके है. जो अपने स्कूल के समय के बाद इन बच्चों को शिक्षा देते है. मैं एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता हूं दोपहर के बाद मैं फ्री हो जाता हूं फिर शाम को 2 घंटे इन बच्चों को पढ़ाता हूं. इन बच्चों को हम अपनी पाठशाला में हिंदी, इंग्लिश, गणित, सामाजिक विज्ञान साथ ही साथ हम इन बच्चों को सामाजिक जागरूकता की शिक्षा देते है. हमने सोचा है कि इन बच्चों को निशुल्क शिक्षा देकर इन बच्चों का ज्ञानवर्धक किया जाए. शिक्षा देने के लिए जरूरत इसलिए दिखाई दी कि जब हम ने इन बच्चों से बातचीत की और कुछ सवालों के जवाब भी नहीं दिए गए. हमने उन्हीं बिंदुओं को नोट करके इन बच्चों को पढ़ाना शुरू किया और इन बच्चों का हर रविवार को एक टेस्ट लिया जाता है जिससे यह जानकारी हो जाती है कि इन बच्चों में कितना इंप्रूवमेंट हुआ है. पाठशाला शुरू करने में कुछ परेशानी भी हुई, कुछ लोगों ने विरोध भी किया. लेकिन गांव वालों दोस्तों ने हमारा बहुत मनोबल बढ़ाया. हम शिक्षा दे रहे हैं और आगे भी शिक्षा देते रहेंगे.
वीओ:- बनारस से मुरादाबाद शिक्षा ग्रहण करने आए अंतिम कुमार ने बताया कि 2014 में मुरादाबाद शिक्षा ग्रहण करने के लिए आया था. इसी गांव में किराए के एक मकान में रहता हूं. जब मैंने देखा कि मेरे मित्र प्रेम ने पढ़ाई लिखाई में कमजोर बच्चों के लिए एक पाठशाला शुरू की है. तो मैं भी इस पाठशाला में आकर बच्चों को पढ़ाने लगा. यहां आने वाले बच्चे बहुत गरीब परिवार से हैं और पढ़ाई लिखाई में भी बहुत कमजोर है. हम प्रतिदिन 2 घंटे में बच्चों को पढ़ाते है. गांव के बच्चों की शिक्षा में हालत ऐसी थी कि उनको गिनती भी याद नही थी.
वीओ:- गांव के ही रहने वाले बुजुर्ग श्यामिलाल ने बताया कहा कि यह बच्चे समाज के लिए बहुत बढ़िया काम कर रहे है. यह पाठशाला में आने वाले बच्चों को कॉपी पेंसिल रबड़ कटर फ्री देते है. अब बच्चे पढ़ाई लिखाई में बहुत सही है. प्राइमरी स्कूल में तो इंटरवेल में ही घर चले आते थे. बच्चे पढ़ाई लिखाई पर ध्यान नहीं देते थे. पाठशाला में आकर यह पढ़ रहे हैं तो थोड़ा उनका ज्ञान बढ़ रहा है.
बाइट:- छात्रा खुशी
बाइट:- प्रेम
बाइट:- अंतिम कुमार
बाइट:- श्यामिलाल

सुशील कुमार सिंह
ईटीवी भारत
मुरादाबाद
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