मुरादाबादः खेती किसानी के काम को जो लोग बेकार और परिवार का पालन-पोषण न कर पाने वाला रोजगार बताते थे. उन्हें अब युवा प्रगतिशील किसान न केवल बेहतर सीख दे रहे हैं. बल्कि इस क्षेत्र में नजीर भी कायम कर रहे हैं. इन प्रगतिशील किसानों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वकांक्षी आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत मदद दी जा रही है. प्रशांत सिंह कुछ इसी तरह के प्रगतिशील किसान हैं. इन्होंने 17 सालों तक आर्मी के मेडिकल कोर में सेवा दी. उन्होंने रिटायरमेंट लेकर मशरूम की खेती शुरू की है. साथ ही स्थानीय लोगों को रोजगार उपलब्ध करवा रहे हैं.
फौजी से किसान बनने की यात्रा
मुरादाबाद के बिलारी तहसील के रहने वाले प्रशांत सिंह ने की 31 जुलाई 2019 को सेना की नौकरी से सेवानिवृत्त ले ली है. जब वह घर लौटे तो उनका मन शहर में नहीं रमा. पिता के बनवाएं गए कस्बे के घर को छोड़कर वह गांव चले आए. उन्होंने नरुखेड़ा में खेती करने की ठानी. जमीन कम थी इसलिए उन्हें कुछ ऐसी फसल उगाने थी, जो ज्यादा लाभ दे सके और लागत भी नियंत्रित हो.
सोनीपत से ली खेती करने की ट्रेनिंग
रिटायर्ड फौजी प्रशांत सिंह ने हरियाणा के सोनीपत से पहले तो मशरूम उगाने की ट्रेनिंग ली. फिर अपने गांव नरुखेड़ा पहुंच गए. यहां पर उन्होंने फूस के दो शेड्स बनाए और लेयर पद्धति के जरिए खेती शुरू की.
2 बड़े शेड्स में करते हैं मशरूम का उत्पादन
प्रशांत सिंह ने एग्रीकल्चर विषय में ही इंटरमीडिएट कर रखा था. इसलिए इसका लाभ में मिला. 2 शेड्स में प्रशांत सिंह ने 4 महीने के भीतर तकरीबन 70 क्विंटल मशरूम की तैयार फसल को बाजार में बेचा. इससे उन्हें 15,000 रुपये प्रति क्विंटल का लाभ भी हुआ. साथ ही उन्होंने गांव के रहने वाले 36 लोगों को हर महीने रोजगार भी उपलब्ध करवाया. वह भी लॉकडाउन के दौर में जब लोगों के पास रोजगार की कमी थी.
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इस तरह से खेती की हुई शुरुआत
रिटायर्ड फौजी और प्रगतिशील किसान प्रशांत सिंह बताते हैं कि वह आर्मी में अपनी सेवाएं देने के बाद रिटायरमेंट में कुछ करना था, जो रूचिकर हो और बेहतर लाभ भी मिल सके. वह बताते हैं कि उन्होंने मशरूम के बारे में सुना था और इंटरनेट पर इसके बारे में काफी खंगाला भी था. फिर उन्हें मशरूम की खेती सबसे उपयुक्त लगी. फिर 2020 में उन्होंने इसकी शुरुआत की.
लागत के बाद यह होता है लाभ
लागत और फसलों के बारे में बात करते हुए वह कहते हैं कि 30 बाई 50 फीट के दो शेड्स तैयार किए हैं. इसमें जो लागत आई है, वह मुख्य तौर पर बंबूज और पॉली हाउस के निर्माण में आई है. इसके साथ ही मशरूम की खेती के लिए मुख्य रूप से जो कंपोस्ट तैयार किया जाता है, उसमें गेहूं के भूसे, चोकर, यूरिया, कोकोपीट और अन्य खाद इत्यादि लगता है. इन सारी चीजों को तैयार करवाने में तकरीबन साढ़े तीन लाख से चार लाख रुपये का खर्च आया.
उत्पादन की बात करें तो गेहूं का भूसा जितने क्विंटल लेते हैं, उसका 50% से 70% मशरूम का उत्पादन हो जाता है. जैसे 100 क्विंटल भूसे में 70 कुंतल मशरूम का उत्पादन हो सकता है. बाजार में एक क्विंटल मशरूम बड़े आराम से 10 से 15 हजार रुपये में बिक जाता है. मुरादाबाद और आसपास के इलाकों में इसकी बहुत खपत है.
आत्मनिर्भर भारत के तहत मिल रही है सब्सिडी
जिला उद्यान अधिकारी सुनील कुमार बताते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट आत्मनिर्भर भारत अभियान है. इसके जरिए विभाग ऐसे किसानों का चयन कर रहा है, जिनके पास जमीन नहीं है या कम हैं. ऐसे लोगों को सब्सिडी के आधार पर ऐसी खेती के लिए प्रेरित किया जा रहा है, जिसमें वह कम जमीन का उपयोग करते हुए उन्नत खेती कर सकें. अचार, चटनी, मुरब्बा इत्यादि बनाना, मधुमक्खी पालन, अन्य तरह की खेती भी, इस योजना में शामिल है. उन्नत कृषकों को उद्यान विभाग 35 से 50 प्रतिशत का अनुदान उपलब्ध करवाता है.