मुरादाबाद: देश में गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार अधिनियम एक वरदान की तरह है, लेकिन शिक्षा विभाग के अधिकारियों की लाहपरवाही के चलते निजी स्कूल मनमानी पर उतारू हैं. शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत हर निजी स्कूल में पच्चीस फीसदी सीटें गरीब परिवारों के बच्चों के लिए आरक्षित की जाती हैं.
शिक्षा विभाग के अधिकारियों के गैर जिम्मेदाराना रुख के चलते निजी स्कूल गरीब बच्चों को प्रवेश देने से बच रहें हैं. उत्तर प्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष के मुताबिक उनके पास सैकड़ों शिकायते पहुंच रहीं हैं. ज्यादातर मामलों में शिक्षा विभाग का रवैया नकारात्मक नजर आया है.
गरीब छात्रों के पहुंच से दूर प्राइवेट स्कूल
- यूपी बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष विशेष गुप्ता ने आज आरटीई कानून को लेकर शिक्षा विभाग को कटघरे में खड़ा किया.
- विशेष गुप्ता ने कहा कि पिछले कुछ महीनों में उनके पास सैकड़ों शिकायतें आरटीई के जरिये निजी स्कूलों में प्रवेश न देने को लेकर पहुंची हैं.
- ज्यादातर मामलों में शिक्षा विभाग और जनपदों में तैनात बीएसए की भूमिका नकारात्मक पाई गई है.
- विशेष गुप्ता के मुताबिक निजी स्कूलों को कागजी आदेश जारी कर शिक्षा विभाग के अधिकारी कुम्भकर्णी नींद सो जाते हैं.
- शिक्षा विभाग स्कूलों की मॉनिटरिंग नहीं करता, जिसके चलते गरीब बच्चों को एडमिशन नहीं दिया जा रहा.
उत्तर प्रदेश से उन तक पहुंच रहीं शिकायतों से वह शासन को अवगत कराते रहते हैं और खुद भी कई मामलों की जांच करते हैं. कई बार मांगने के बाद भी जनपद के बीएसए अभी तक उन्हें बच्चों के एडमिशन की सूची नहीं दे पाए है.
-विशेष गुप्ता, अध्यक्ष बाल अधिकार संरक्षण आयोग