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मुरादाबाद: इलेक्ट्रॉनिक कचरे ने बिगाड़ी पीतल नगरी की सेहत, प्रदूषण के चलते जीना हुआ मुहाल

यूपी का मुरादाबाद दुनिया भर में पीतल नगरी के नाम से जाना जाता है, लेकिन अब इस शहर को सबसे प्रदूषित शहर कहा जाने लगा है. वजह इलेक्ट्रॉनिक कचरे का धड़ल्ले से जलाया जाना. इलेक्ट्रॉनिक कचरा जलाए जाने से शहर की हवा जहरीली हो चुकी है. नतीजा कि अब शहर भारत के पांच सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल हो चुका है.

प्रदूषण की मार झेलता मुरादाबाद शहर
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Published : Oct 5, 2019, 10:58 PM IST

Updated : Oct 5, 2019, 11:29 PM IST

मुरादाबाद: पूरी दुनिया में पीतल नगरी के नाम से मशहूर शहर मुरादाबाद पिछले कुछ सालों से प्रदूषण की मार झेल रहा है. पीतल भट्टियों और अवैध तरीके से इलेक्ट्रॉनिक कचरा जलाए जाने के चलते शहर में वायु प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है. पिछले साल देश के पांच सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल रहे मुरादाबाद में दूषित वायु के चलते लोगों की सेहत दिन प्रतिदिन बिगड़ रही है.

इलेक्ट्रानिक कचरे ने बिगाड़ी पीतलनगरी की सेहत.

नदी के किनारे बने राख के पहाड़
पीतल के उत्पादों पर शानदार नक्काशी के लिए दुनिया में जाने जाना वाला शहर मुरादाबाद हर साल साड़े आठ हजार करोड़ रुपये का विदेशी राजस्व हासिल करता है. जनपद में पीतल कारोबार में इस्तेमाल होने वाली भट्टियों से निकलने वाले धुंए से जहां शहर में वायु प्रदूषण बढ़ रहा था. वहीं पीतल कारोबार की बदहाली के बाद यही भट्टियां अवैध तरीके से इलेक्ट्रॉनिक कचरा जलाने के काम में इस्तेमाल की जाने लगी हैं. अवैध तरीके से लाया जाने वाला इलेक्ट्रॉनिक कचरा जलाकर उसकी दूषित राख को रामगंगा नदी के किनारे फेंका दिया जाता था, जिसकी वजह से यहां राख के पहाड़ खड़े हो गए. एनजीटी के आदेश के बाद इस प्रदूषित राख को हटाया गया है, लेकिन कचरा जलाने पर प्रतिबंध के बाद भी देहात क्षेत्रो में अब भी कचरा जलाया जा रहा है.

जन्तु विहीन बन गई रामगंगा नदी
अवैध तरीके से लाये और जलाए जा रहें इलेक्ट्रॉनिक कचरे से जहां वायु प्रदूषण में बढ़ोत्तरी हुई है, वहीं इसके जहरीले रासायनिक तत्वों के चलते मिट्टी और पानी भी दूषित हुआ है. रमगंगा नदी में खतरनाक रासायनिक तत्वों के चलते नदी जहां जीव विहीन हो चुकी है, वहीं नदी के आस-पास की जमीन में जहरीले तत्वों की उपस्थिति पाई जा रही है. जानकारों के मुताबिक देश के बड़े महानगरों से भी ज्यादा वायु प्रदूषण होने के पीछे सबसे बड़ा कारण इलेक्ट्रॉनिक कचरा का जलाना है. जिसकी वजह से इसके जहरीले तत्व लोगों की सेहत से खिलवाड़ कर रहें है.

मरीजों को देख हैरान हैं डॉक्टर
मुरादाबाद जिला अस्पताल के आंकड़े भी बढ़ते वायु प्रदूषण की पुष्टि करते हैं. जिला अस्पताल के आंकड़ों के मुताबिक अस्पताल की ओपीडी में हर दिन ढाई से तीन हजार मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं, जिनमें से ज्यादातर मरीज सांस और फेफड़ों के संक्रमण से परेशान रहते हैं. जिला अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टर के मुताबिक उनके अपने कैरियर में आज तक सबसे ज्यादा प्रदूषण के शिकार मरीज मुरादाबाद में ही इलाज के लिए पहुंच रहें है. वर्तमान में वायु प्रदूषण से बचने के लिए मॉस्क का इस्तेमाल आवश्यक हो गया है.

प्रशासन के प्रतिबंध के बावजूद उठ रहा जहर का धुआं
इलेक्ट्रॉनिक कचरे पर प्रशासन द्वारा धारा-144 के तहत प्रतिबंध लगाया गया है. बावजूद इसके अभी भी शहर के कुछ हिस्सों में कचरे को जलाना चिंतित करता है. उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्य की सीमा से लगे मुरादाबाद में एयर क्वालिटी इंडेक्स का आंकड़ा सर्दियों में पांच सौ के पार हो जाता है, जो इंसानी स्वास्थ्य के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक है. आम दिनों में जब एक प्रदूषण रहित शहर वायु शुद्धता सूचकांक में 100 के आस-पास होता है. उस वक्त मुरादाबाद में तीन सौ का आंकड़ा पर करना जानकारों को भी हैरान कर देता है. शासन प्रशासन के दावों के बीच आम आदमी सजग रहकर ही अपना बचाव कर सकता है.

मुरादाबाद: पूरी दुनिया में पीतल नगरी के नाम से मशहूर शहर मुरादाबाद पिछले कुछ सालों से प्रदूषण की मार झेल रहा है. पीतल भट्टियों और अवैध तरीके से इलेक्ट्रॉनिक कचरा जलाए जाने के चलते शहर में वायु प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है. पिछले साल देश के पांच सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल रहे मुरादाबाद में दूषित वायु के चलते लोगों की सेहत दिन प्रतिदिन बिगड़ रही है.

इलेक्ट्रानिक कचरे ने बिगाड़ी पीतलनगरी की सेहत.

नदी के किनारे बने राख के पहाड़
पीतल के उत्पादों पर शानदार नक्काशी के लिए दुनिया में जाने जाना वाला शहर मुरादाबाद हर साल साड़े आठ हजार करोड़ रुपये का विदेशी राजस्व हासिल करता है. जनपद में पीतल कारोबार में इस्तेमाल होने वाली भट्टियों से निकलने वाले धुंए से जहां शहर में वायु प्रदूषण बढ़ रहा था. वहीं पीतल कारोबार की बदहाली के बाद यही भट्टियां अवैध तरीके से इलेक्ट्रॉनिक कचरा जलाने के काम में इस्तेमाल की जाने लगी हैं. अवैध तरीके से लाया जाने वाला इलेक्ट्रॉनिक कचरा जलाकर उसकी दूषित राख को रामगंगा नदी के किनारे फेंका दिया जाता था, जिसकी वजह से यहां राख के पहाड़ खड़े हो गए. एनजीटी के आदेश के बाद इस प्रदूषित राख को हटाया गया है, लेकिन कचरा जलाने पर प्रतिबंध के बाद भी देहात क्षेत्रो में अब भी कचरा जलाया जा रहा है.

जन्तु विहीन बन गई रामगंगा नदी
अवैध तरीके से लाये और जलाए जा रहें इलेक्ट्रॉनिक कचरे से जहां वायु प्रदूषण में बढ़ोत्तरी हुई है, वहीं इसके जहरीले रासायनिक तत्वों के चलते मिट्टी और पानी भी दूषित हुआ है. रमगंगा नदी में खतरनाक रासायनिक तत्वों के चलते नदी जहां जीव विहीन हो चुकी है, वहीं नदी के आस-पास की जमीन में जहरीले तत्वों की उपस्थिति पाई जा रही है. जानकारों के मुताबिक देश के बड़े महानगरों से भी ज्यादा वायु प्रदूषण होने के पीछे सबसे बड़ा कारण इलेक्ट्रॉनिक कचरा का जलाना है. जिसकी वजह से इसके जहरीले तत्व लोगों की सेहत से खिलवाड़ कर रहें है.

मरीजों को देख हैरान हैं डॉक्टर
मुरादाबाद जिला अस्पताल के आंकड़े भी बढ़ते वायु प्रदूषण की पुष्टि करते हैं. जिला अस्पताल के आंकड़ों के मुताबिक अस्पताल की ओपीडी में हर दिन ढाई से तीन हजार मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं, जिनमें से ज्यादातर मरीज सांस और फेफड़ों के संक्रमण से परेशान रहते हैं. जिला अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टर के मुताबिक उनके अपने कैरियर में आज तक सबसे ज्यादा प्रदूषण के शिकार मरीज मुरादाबाद में ही इलाज के लिए पहुंच रहें है. वर्तमान में वायु प्रदूषण से बचने के लिए मॉस्क का इस्तेमाल आवश्यक हो गया है.

प्रशासन के प्रतिबंध के बावजूद उठ रहा जहर का धुआं
इलेक्ट्रॉनिक कचरे पर प्रशासन द्वारा धारा-144 के तहत प्रतिबंध लगाया गया है. बावजूद इसके अभी भी शहर के कुछ हिस्सों में कचरे को जलाना चिंतित करता है. उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्य की सीमा से लगे मुरादाबाद में एयर क्वालिटी इंडेक्स का आंकड़ा सर्दियों में पांच सौ के पार हो जाता है, जो इंसानी स्वास्थ्य के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक है. आम दिनों में जब एक प्रदूषण रहित शहर वायु शुद्धता सूचकांक में 100 के आस-पास होता है. उस वक्त मुरादाबाद में तीन सौ का आंकड़ा पर करना जानकारों को भी हैरान कर देता है. शासन प्रशासन के दावों के बीच आम आदमी सजग रहकर ही अपना बचाव कर सकता है.

Intro:एंकर: मुरादाबाद: पीतलनगरी के नाम से पूरी दुनिया में मशहूर मुरादाबाद पिछले कुछ सालों से प्रदूषण की मार झेल रहा है. पीतल भट्टियों और अवैध तरीके से इलेक्ट्रॉनिक कचरा जलाए जाने के चलते शहर में वायु प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है. पिछले साल देश के पांच सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल रहें मुरादाबाद में दूषित वायु के चलते लोगों की सेहत बिगड़ रही है और अस्पतालों में मरीजों की तादात हर दिन बढ़ रही है. एनजीटी के आदेश के बाद शहर में प्रदूषण के लिए जिम्मेदार इलेक्ट्रॉनिक कचरे को लेकर अभियान चलाए जा रहें है लेकिन जनपद के देहात क्षेत्रो में अब भी यह कचरा जलाया जा रहा है.


Body:वीओ वन: पीतल के उत्पादों पर शानदार नक्काशी के लिए दुनिया में जाने जाना वाला शहर मुरादाबाद हर साल साड़े आठ हजार करोड़ रुपये का विदेशी राजस्व हासिल करता है. कारोबारी दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाने वाले इस शहर को अब इस चमक की कीमत भी चुकानी पड़ रही है. मुरादाबाद जनपद में पीतल कारोबार में इस्तेमाल होने वाली भट्टियों से निकलने वाले धुंए से जहां शहर में वायु प्रदूषण बढ़ रहा था वहीं पीतल कारोबार की बदहाली के बाद यहीं भट्टियां अवैध तरीके से इलेक्ट्रॉनिक कचरा जलाने के काम में इस्तेमाल की जाने लगी. दिल्ली से लाया जाने वाला इलेक्ट्रॉनिक कचरा जलाकर उसकी दूषित राख को रमगंगा नदी किनारे फेंका जाता था जिसकी वजह से यहां राख के पहाड़ खड़े हो गए. एनजीटी के आदेश के बाद इस प्रदूषित राख को हटाया गया है लेकिन कचरा जलाने पर प्रतिबंध के बाद भी देहात क्षेत्रो में अब भी कचरा जलाया जा रहा है.
बाईट: अजय शर्मा: क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी
वीओ टू: अवैध तरीके से लाये और जलाए जा रहें इलेक्ट्रॉनिक कचरे से जहां वायु प्रदूषण में बढोत्तरी हुई वहीं इसके जहरीले रासायनिक तत्वों के चलते मिट्टी और पानी भी दूषित हुआ है. रमगंगा नदी खतरनाक रासायनिक तत्वों के चलते जहां जलीय जीव विहीन हो चुकी है वहीं नदी के आस-पास की जमीन में जहरीले तत्वों की उपस्थिति पाई जा रहीं है. जानकारों के मुताबिक देश के बड़े महानगरों से भी ज्यादा वायु प्रदूषण होने के पीछे सबसे बड़ा कारण इलेक्ट्रॉनिक कचरा जलाए जाने का है जिसकी वजह से इसके जहरीले तत्व लोगों की सेहत से खिलवाड़ कर रहें है.
बाईट: अनामिका त्रिपाठी: प्रोफेसर हिन्दू कालेज
वीओ तीन: मुरादाबाद जनपद में बढ़ते वायु प्रदूषण की पुष्टि जिला अस्पताल के आंकड़े भी करते है. जिला अस्पताल के आंकड़ों के मुताबिक अस्पताल की ओपीडी में हर दिन ढाई से तीन हजार मरीज इलाज के लिए पहुंचते है जिनमें से ज्यादातर मरीज सांस और फेफड़ों के संक्रमण से परेशान रहते है. जिला अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टर के मुताबिक उनके अपने कैरियर में आज तक सबसे ज्यादा प्रदूषण के शिकार मरीज मुरादाबाद में ही इलाज के लिए पहुंच रहें है और हर दिन यह तादात बढ़ती जा रही है. डॉक्टरों के मुताबिक वर्तमान में वायु प्रदूषण से बचने के लिए मॉस्क का इस्तेमाल आवश्यक हो गया है.
बाईट: डॉक्टर प्रवीण शाह: सीनियर फिजिशियन


Conclusion:वीओ चार: इलेक्ट्रॉनिक कचरे पर प्रशासन द्वारा धारा-144 के तहत प्रतिबंध लगाया गया है वावजूद इसके अभी भी शहर के कुछ हिस्सों में कचरे को जलाना चिंतित करता है. उत्तराखंड जैसे हिमालयी राज्य की सीमा से लगे मुरादाबाद जनपद में एयर क्वालिटी इंडेक्स का आंकड़ा सर्दियों में पांच सौ पार हो जाता है जो इंसानी स्वास्थ्य के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक है. आम दिनों में जब एक प्रदूषण रहित शहर वायु शुद्धता सूचकांक में 100 के आस-पास होता है उस वक्त मुरादाबाद में तीन सौ का आंकड़ा पर करना जानकारों को भी हैरान कर रहा है. शासन प्रशासन के दावों के बीच आम आदमी सजग रहकर ही अपना बचाव कर सकता है जिसकी सलाह डॉक्टर भी दे रहे है.
भुवन चन्द्र
ईटीवी भारत
मुरादाबाद
9634544417
Last Updated : Oct 5, 2019, 11:29 PM IST
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