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लॉकडाउन में खेवनहार बनी 'मनरेगा', रोजगार पाकर खिल उठे मजदूरों के चेहरे - laborers got work in mnrega scheme

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में प्रवासी मजदूरों को मनरेगा के तहत रोजगार दिया जा रहा है. इससे मजदूरों के आर्थिक स्थिति को सुधारने में मदद मिल रही है और मजदूरों को घर बैठे ही रोजगार मिल रहा है.

काम करते प्रवासी मजदूर.
काम करते प्रवासी मजदूर.
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Published : May 4, 2020, 1:00 PM IST

Updated : Sep 10, 2020, 12:19 PM IST

मिर्जापुर: लॉकडाउन में कामकाज ठप होने से बाहर से प्रवासी मजदूरों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता था. काम न मिलने से अधिकांश गरीब ग्रामीणों के सामने दो वक्त की रोटी का संकट पैदा हो गया था. ऐसे में मनरेगा से संबंधित काम शुरू हो जाने से प्रवासी मजदूरों को गांव में ही रोजगार मिलने लगा है. मजदूरों को तत्काल जॉब कार्ड बनाकर उन्हें गांव में ही काम दिया जा रहा है. पुरुषों के साथ महिलाओं को भी काम मिलने लगा है. इससे जहां एक तरफ गांव के विकास कार्यों को मनरेगा से गति मिल रही है तो वहीं आर्थिक तंगी झेल रहे मजदूरों के हाथों में भी रोजगार मिल रहा है, जिससे उनका परिवार चल रहा है.

जानकारी देते प्रवासी मजदूर.

38 हजार श्रमिकों को मिला काम
सीडीओ अविनाश सिंह ने बताया कि जनपद के 809 ग्राम पंचायतों में युद्ध स्तर पर काम शुरू हो गया है. इसमें तकरीबन 38 हजार श्रमिक काम कर रहे हैं. श्रमिकों को काम देने के मामले में मिर्जापुर का प्रदेश में छठवां स्थान है. जिले में प्रवासी मजदूरों को तत्काल कार्ड बनाकर गांव में ही रोजगार दिया जा रहा है, जिससे गांव के विकास कार्यों को मनरेगा से गति मिलेगी.

बेरोजगारों के हाथों में रोजगार
कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए लागू लॉकडाउन से कई मजदूर बेरोजगार हो गए हैं. उनके सामने खाने-पीने और रहने की समस्या खड़ी हो गई है. ऐसे समय में आर्थिक तंगी झेल रहे मजदूरों को काम मिलने से उनका जीवनयापन चलने लगा है. प्रवासी मजदूरों ने बताया कि पहले वे बाहर काम करते थे, जिससे वह परिवार से दूर रहते थे. बड़ी परेशानियों का सामना करते थे, लेकिन अब गांव में ही रोजगार मिलने से उन्हें बाहर नहीं जाना पड़ेगा.

मनरेगा बना मजदूरों का सहारा
लॉकडाउन में 'मनरेगा' मजदूरों के लिए आशा की किरण बनता जा रहा है, जहां एक तरफ देश में लॉकडाउन के चलते लाखों मजदूर बेरोजगार हो गए तो वहीं गांव में 'मनरेगा' के तहत कई मजदूरों को रोजगार मिलने लगा है. इससे उनका परिवार चल रहा है. लॉकडाउन में तमाम लोग देश के कई राज्यों में फंसे हुए हैं. प्रवासी मजदूर धीरे-धीरे घर वापस लौट रहे हैं, लेकिन उनके सामने रोजगार की समस्या खड़ी हो गई है.

200 रुपये मिल रही मजदूरी
मजदूरों को 200 रुपये प्रतिदिन मजदूरी मिल रही है. इनका हाल चाल जानने के लिए मुख्य विकास अधिकारी गांव-गांव पहुंच रहे हैं. मजदूरों से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवा रहे हैं और सुरक्षित रहने के लिए मास्क दे रहे हैं.

प्रवासी मजदूरों की संख्या ज्यादा
मुख्य विकास अधिकारी अविनाश सिंह ने बताया कि लॉकडाउन के चलते बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर देश के कोने-कोने से आ रहे हैं. आर्थिक मंदी से परेशान मजदूरों के पास सबसे बड़ी समस्या रोजगार की होती है, जिसे गांव में ही उपलब्ध कराया जा रहा है. इससे गांव के विकास में तेजी मिलेगी. उन्होंने बताया कि सभी ग्राम पंचायतों में युद्ध स्तर से मनरेगा के तहत काम कराया जा रहा है. इससे मजदूरों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी.

इसे भी पढ़ें- मिर्जापुर: सोशल डिस्टेंसिंग की उड़ाई जा रही धज्जियां, डर के साए में काम कर रहे रेलवे कर्मचारी

जो भी मनरेगा के तहत काम करना चाहता है, उसे काम दिया जा रहा है. इस बीच सोशल डिस्टेंसिंग का खासा ख्याल रखा जा रहा है.
-अविनाश सिंह, सीडीओ

मिर्जापुर: लॉकडाउन में कामकाज ठप होने से बाहर से प्रवासी मजदूरों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता था. काम न मिलने से अधिकांश गरीब ग्रामीणों के सामने दो वक्त की रोटी का संकट पैदा हो गया था. ऐसे में मनरेगा से संबंधित काम शुरू हो जाने से प्रवासी मजदूरों को गांव में ही रोजगार मिलने लगा है. मजदूरों को तत्काल जॉब कार्ड बनाकर उन्हें गांव में ही काम दिया जा रहा है. पुरुषों के साथ महिलाओं को भी काम मिलने लगा है. इससे जहां एक तरफ गांव के विकास कार्यों को मनरेगा से गति मिल रही है तो वहीं आर्थिक तंगी झेल रहे मजदूरों के हाथों में भी रोजगार मिल रहा है, जिससे उनका परिवार चल रहा है.

जानकारी देते प्रवासी मजदूर.

38 हजार श्रमिकों को मिला काम
सीडीओ अविनाश सिंह ने बताया कि जनपद के 809 ग्राम पंचायतों में युद्ध स्तर पर काम शुरू हो गया है. इसमें तकरीबन 38 हजार श्रमिक काम कर रहे हैं. श्रमिकों को काम देने के मामले में मिर्जापुर का प्रदेश में छठवां स्थान है. जिले में प्रवासी मजदूरों को तत्काल कार्ड बनाकर गांव में ही रोजगार दिया जा रहा है, जिससे गांव के विकास कार्यों को मनरेगा से गति मिलेगी.

बेरोजगारों के हाथों में रोजगार
कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए लागू लॉकडाउन से कई मजदूर बेरोजगार हो गए हैं. उनके सामने खाने-पीने और रहने की समस्या खड़ी हो गई है. ऐसे समय में आर्थिक तंगी झेल रहे मजदूरों को काम मिलने से उनका जीवनयापन चलने लगा है. प्रवासी मजदूरों ने बताया कि पहले वे बाहर काम करते थे, जिससे वह परिवार से दूर रहते थे. बड़ी परेशानियों का सामना करते थे, लेकिन अब गांव में ही रोजगार मिलने से उन्हें बाहर नहीं जाना पड़ेगा.

मनरेगा बना मजदूरों का सहारा
लॉकडाउन में 'मनरेगा' मजदूरों के लिए आशा की किरण बनता जा रहा है, जहां एक तरफ देश में लॉकडाउन के चलते लाखों मजदूर बेरोजगार हो गए तो वहीं गांव में 'मनरेगा' के तहत कई मजदूरों को रोजगार मिलने लगा है. इससे उनका परिवार चल रहा है. लॉकडाउन में तमाम लोग देश के कई राज्यों में फंसे हुए हैं. प्रवासी मजदूर धीरे-धीरे घर वापस लौट रहे हैं, लेकिन उनके सामने रोजगार की समस्या खड़ी हो गई है.

200 रुपये मिल रही मजदूरी
मजदूरों को 200 रुपये प्रतिदिन मजदूरी मिल रही है. इनका हाल चाल जानने के लिए मुख्य विकास अधिकारी गांव-गांव पहुंच रहे हैं. मजदूरों से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवा रहे हैं और सुरक्षित रहने के लिए मास्क दे रहे हैं.

प्रवासी मजदूरों की संख्या ज्यादा
मुख्य विकास अधिकारी अविनाश सिंह ने बताया कि लॉकडाउन के चलते बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर देश के कोने-कोने से आ रहे हैं. आर्थिक मंदी से परेशान मजदूरों के पास सबसे बड़ी समस्या रोजगार की होती है, जिसे गांव में ही उपलब्ध कराया जा रहा है. इससे गांव के विकास में तेजी मिलेगी. उन्होंने बताया कि सभी ग्राम पंचायतों में युद्ध स्तर से मनरेगा के तहत काम कराया जा रहा है. इससे मजदूरों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी.

इसे भी पढ़ें- मिर्जापुर: सोशल डिस्टेंसिंग की उड़ाई जा रही धज्जियां, डर के साए में काम कर रहे रेलवे कर्मचारी

जो भी मनरेगा के तहत काम करना चाहता है, उसे काम दिया जा रहा है. इस बीच सोशल डिस्टेंसिंग का खासा ख्याल रखा जा रहा है.
-अविनाश सिंह, सीडीओ

Last Updated : Sep 10, 2020, 12:19 PM IST
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