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मिर्जापुर की छोटी गया, जहां भगवान राम ने किया था पितरों का श्राद्ध - पितृपक्ष

यूपी के मिर्जापुर जिले में पिंडदान करने के लिए गया के बाद सबसे महत्वपूर्ण स्थान विंध्याचल का रामगया घाट है. कहा जाता है कि, त्रेतायुग में भगवान राम ने यहां अपने पिता का श्राद्ध किया था. इसके बाद यह स्थान श्राद्धकर्म और पिंडदान के लिए जाना जाता है.

पिंडदान करते परिजन
पिंडदान करते परिजन
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Published : Sep 21, 2020, 12:36 PM IST

मिर्जापुर: विश्व प्रसिद्ध विंध्याचल धाम मां विंध्यवासिनी सिद्धपीठ के लिए जाना जाता है. इसके साथ ही पितृपक्ष में यहां पिंडदान कर पूर्वजों का तर्पण करने का भी एक बड़ा केंद्र है, जिसे छोटी गया के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि भगवान राम ने त्रेता युग में वनवास के समय मां सीता के साथ अपने पितृदेवों का मां गंगा के संगम तट पर तर्पण किया था, जिसके बाद से यह परंपरा चली आ रही है. पितृपक्ष के 16 दिनों तक भाद्रपद से अश्वनी की अमावस्या तिथि तक यहां पर निरंतर श्राद्ध कर्म के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. लेकिन अमावस्या के दिन यह खास हो जाता है. इस दिन हजारों की संख्या में लोग दूर-दूर से पहुंचते हैं और अपने पूर्वजों के लिए तर्पण और पिंडदान करते हैं.

मिर्जापुर के रामगया घाट पर पितरों का पिंडदान
राम गया घाट पर भगवान राम ने किया था पिंडदान

पितृपक्ष के आखिरी दिन अमावस्या तिथि पर यहां पिंडदान करने वालों की भारी भीड़ लगी रहती हैं. लोग दिनभर यहां अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करने आ रहे थे. इस स्थान की महिमा का शास्त्रों में भी वर्णन किया गया है. कहा जाता है कि यहां पर पूर्वजों के पिंडदान करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि वनवास के समय पिता दसरथ की मृत्यु के बाद भगवान राम ने भी यहां पर पिंडदान और तर्पण करने के लिए आए थे. इस स्थान भगवान राम ने अपने पिता दशरथ का पिंडदान किया था. भगवान राम के साथ उस समय मां सीता भी थीं. इसके बाद से ही यहां पिंडदान की शुरुआत हुई है.

मिर्जापुर की छोटी गया
पिंडदान करते परिजन

आज भी गंगा के मध्य में स्थित एक शिलापट्ट है, जहां भगवान राम के पिंडदान करने के साक्ष्य मौजूद हैं. कहा जाता है कि यहां पर पिंडदान करने से जीवन मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है. अमावस्या तिथि पर यहां पर मध्य प्रदेश से लेकर बिहार तक के लोग आते हैं. उत्तर प्रदेश के कई जनपदों के लोग भी पहुंचते हैं, जो अपने पूर्वजों के लिए तर्पण करते हैं. श्रद्धालु सबसे पहले आकर मां गंगा में स्नान करते हैं. इसके बाद मुंडन कराते हैं. मुंडन के बाद पिंडदान का संस्कार पंडित से पूरा कराते हैं, फिर दान पुण्य करके वापस घर जाते हैं. श्रद्धालुओं का मानना होता है कि जो गया नहीं जा सकता है, यदि वह यहां पर श्राद्ध और तर्पण करता है तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.

ramgaya ghat
मिर्जापुर के गंगा घाट पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़
भगवान राम ने इन स्थानों पर किया पितरों का पिंडदानमान्यता है कि भगवान राम ने गुरु वशिष्ट के आदेश पर अपने पिता राजा दशरथ को मृत्युलोक से स्वर्ग प्राप्ति के लिए गया के फल्गू नदी पर पिंडदान के लिए अयोध्या से निकलते हैं, जिसके बाद उन्होंने पहला पिंडदान सरयू नदी पर, दूसरा पिंडदान प्रयाग के भारद्वाज आश्रम, तीसरा विंध्य धाम में स्थित विंध्य पर्वत और मां गंगा के संगम के तट पर किया. वहीं चौथा पिंडदान काशी और पांचवा गया में पहुंचकर किया. यह घाट तभी से रामगया घाट से जाना जाने लगा, जिसे आज भी छोटी गया घाट कहा जाता है.
mirzapur news
पितरों का पिंडदान करते परिजन

मिर्जापुर: विश्व प्रसिद्ध विंध्याचल धाम मां विंध्यवासिनी सिद्धपीठ के लिए जाना जाता है. इसके साथ ही पितृपक्ष में यहां पिंडदान कर पूर्वजों का तर्पण करने का भी एक बड़ा केंद्र है, जिसे छोटी गया के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि भगवान राम ने त्रेता युग में वनवास के समय मां सीता के साथ अपने पितृदेवों का मां गंगा के संगम तट पर तर्पण किया था, जिसके बाद से यह परंपरा चली आ रही है. पितृपक्ष के 16 दिनों तक भाद्रपद से अश्वनी की अमावस्या तिथि तक यहां पर निरंतर श्राद्ध कर्म के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. लेकिन अमावस्या के दिन यह खास हो जाता है. इस दिन हजारों की संख्या में लोग दूर-दूर से पहुंचते हैं और अपने पूर्वजों के लिए तर्पण और पिंडदान करते हैं.

मिर्जापुर के रामगया घाट पर पितरों का पिंडदान
राम गया घाट पर भगवान राम ने किया था पिंडदान

पितृपक्ष के आखिरी दिन अमावस्या तिथि पर यहां पिंडदान करने वालों की भारी भीड़ लगी रहती हैं. लोग दिनभर यहां अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करने आ रहे थे. इस स्थान की महिमा का शास्त्रों में भी वर्णन किया गया है. कहा जाता है कि यहां पर पूर्वजों के पिंडदान करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि वनवास के समय पिता दसरथ की मृत्यु के बाद भगवान राम ने भी यहां पर पिंडदान और तर्पण करने के लिए आए थे. इस स्थान भगवान राम ने अपने पिता दशरथ का पिंडदान किया था. भगवान राम के साथ उस समय मां सीता भी थीं. इसके बाद से ही यहां पिंडदान की शुरुआत हुई है.

मिर्जापुर की छोटी गया
पिंडदान करते परिजन

आज भी गंगा के मध्य में स्थित एक शिलापट्ट है, जहां भगवान राम के पिंडदान करने के साक्ष्य मौजूद हैं. कहा जाता है कि यहां पर पिंडदान करने से जीवन मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है. अमावस्या तिथि पर यहां पर मध्य प्रदेश से लेकर बिहार तक के लोग आते हैं. उत्तर प्रदेश के कई जनपदों के लोग भी पहुंचते हैं, जो अपने पूर्वजों के लिए तर्पण करते हैं. श्रद्धालु सबसे पहले आकर मां गंगा में स्नान करते हैं. इसके बाद मुंडन कराते हैं. मुंडन के बाद पिंडदान का संस्कार पंडित से पूरा कराते हैं, फिर दान पुण्य करके वापस घर जाते हैं. श्रद्धालुओं का मानना होता है कि जो गया नहीं जा सकता है, यदि वह यहां पर श्राद्ध और तर्पण करता है तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.

ramgaya ghat
मिर्जापुर के गंगा घाट पर श्रद्धालुओं की भारी भीड़
भगवान राम ने इन स्थानों पर किया पितरों का पिंडदानमान्यता है कि भगवान राम ने गुरु वशिष्ट के आदेश पर अपने पिता राजा दशरथ को मृत्युलोक से स्वर्ग प्राप्ति के लिए गया के फल्गू नदी पर पिंडदान के लिए अयोध्या से निकलते हैं, जिसके बाद उन्होंने पहला पिंडदान सरयू नदी पर, दूसरा पिंडदान प्रयाग के भारद्वाज आश्रम, तीसरा विंध्य धाम में स्थित विंध्य पर्वत और मां गंगा के संगम के तट पर किया. वहीं चौथा पिंडदान काशी और पांचवा गया में पहुंचकर किया. यह घाट तभी से रामगया घाट से जाना जाने लगा, जिसे आज भी छोटी गया घाट कहा जाता है.
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पितरों का पिंडदान करते परिजन
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