मिर्जापुर: विश्व प्रसिद्ध विंध्याचल धाम मां विंध्यवासिनी सिद्धपीठ के लिए जाना जाता है. इसके साथ ही पितृपक्ष में यहां पिंडदान कर पूर्वजों का तर्पण करने का भी एक बड़ा केंद्र है, जिसे छोटी गया के नाम से जाना जाता है. मान्यता है कि भगवान राम ने त्रेता युग में वनवास के समय मां सीता के साथ अपने पितृदेवों का मां गंगा के संगम तट पर तर्पण किया था, जिसके बाद से यह परंपरा चली आ रही है. पितृपक्ष के 16 दिनों तक भाद्रपद से अश्वनी की अमावस्या तिथि तक यहां पर निरंतर श्राद्ध कर्म के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. लेकिन अमावस्या के दिन यह खास हो जाता है. इस दिन हजारों की संख्या में लोग दूर-दूर से पहुंचते हैं और अपने पूर्वजों के लिए तर्पण और पिंडदान करते हैं.
पितृपक्ष के आखिरी दिन अमावस्या तिथि पर यहां पिंडदान करने वालों की भारी भीड़ लगी रहती हैं. लोग दिनभर यहां अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करने आ रहे थे. इस स्थान की महिमा का शास्त्रों में भी वर्णन किया गया है. कहा जाता है कि यहां पर पूर्वजों के पिंडदान करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि वनवास के समय पिता दसरथ की मृत्यु के बाद भगवान राम ने भी यहां पर पिंडदान और तर्पण करने के लिए आए थे. इस स्थान भगवान राम ने अपने पिता दशरथ का पिंडदान किया था. भगवान राम के साथ उस समय मां सीता भी थीं. इसके बाद से ही यहां पिंडदान की शुरुआत हुई है.
आज भी गंगा के मध्य में स्थित एक शिलापट्ट है, जहां भगवान राम के पिंडदान करने के साक्ष्य मौजूद हैं. कहा जाता है कि यहां पर पिंडदान करने से जीवन मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है. अमावस्या तिथि पर यहां पर मध्य प्रदेश से लेकर बिहार तक के लोग आते हैं. उत्तर प्रदेश के कई जनपदों के लोग भी पहुंचते हैं, जो अपने पूर्वजों के लिए तर्पण करते हैं. श्रद्धालु सबसे पहले आकर मां गंगा में स्नान करते हैं. इसके बाद मुंडन कराते हैं. मुंडन के बाद पिंडदान का संस्कार पंडित से पूरा कराते हैं, फिर दान पुण्य करके वापस घर जाते हैं. श्रद्धालुओं का मानना होता है कि जो गया नहीं जा सकता है, यदि वह यहां पर श्राद्ध और तर्पण करता है तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.